शनिवार, 8 दिसंबर 2012

जल जाते गर अरमाँ, उनकी नफरत की आग में, गम न होता हमको, अपने न होने का जहाँन में, न रोते आकर मेरी मयियत् पर वो, कम से कम चैन से सोतो सकता था कब्र में, गौरव दीक्षित

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अंतर्द्वंद

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