वहुत बार सुन चुका था कि ये आत्मायें रात के बारह बजे के बाद ही सक्रिय होती हैं।अभी तो वही समय ही हुआ था।मन में अब लालसा सी होने लगी थी की और एक उम्मीद जग चुकी थी कि अगर ये आत्मा वगैरह सच होती हैं तो निश्चित तौर पर आज मुझको दिखेगी।अब तो मैं वेसब्री से नज़र गढाये हुए देखता रहा मगर मुझे कुछ न दिखा। आखिरकार हमने गाडी की लाईट बन्द कर दी।और आराम से सोने की कोशिश करने लगें।आँखें नींद को पहले ही भरे हुए थीं,एक दम झरझरा पडी और हम..ट......
कानो में कुछ आवाजें सुनाई दी ,झट से आँख खुल गई ,एक पल के लिए तो चौंक गया।कार की खिडकी को कोई खटखटा रहा था।अभी भी अंधेरा ही था मगर चेहरा समझ में आ रहा था।था तो कोई इंसान का ही बच्चा। हमने कॉच को नीचे किया।देखा करीबन 6 फुट काभरा पूरा जवान था वो रंग अंधेरे में तो समझ मे नही आया मगर जो भी था ठीक था।
हमने अपनी आँख मलते हुए बोले - क्या बात है???
कि बात है बाबूजी गाडी पंचर हो गई का.....
अरे नही बस रास्ता खराब था इसीलिए
अरे सहाब जी भली चलाई रस्ता की ये ससुरा पन्द्रह साल से ऐषो ही पडो है अब तो वहिन के टकन ने और ही खोद दाओ
किनके यहाँ जाय रहो है??
(उसने एक ही भाव और लय के साथ सबकुछ कह दिया,)
मेरे मुँह से हसी निकल गई उसकी बात सुनकर ।घडी देखी तो सुबह के पाँच बज रहे थे।हम घाडी से उतरकर उसके पास खडे हो गये।और उसके कान्धे पर हाथ रखकर पूँछा - तुम यहाँ कहाँ से??
अरे साहब पास ही के गाँव के हैं हमतो वोहि सामने बाले गाँव के पास ही में अपने खेत हैं वहीं मचान पर रात को लेटे थे वहीं से देखे कि कोई सफेद कलर की कोई गढिया खडी है,सोचा कोनऊँ समस्या रह होगी सुबह पूँछेगें।...
अरे यार कोई समस्या नही थी बस नींद जोर की लगी थी इसीलिए यहीं खड़ी करके सो लिए।(मैं उसे सच नही बताना चाहता था बस इसीलिए झूठ कह दिया)
मैंने गाड़ी में देखा तो पानी की वोतल खत्म हो चुकी थी ।
का हुआ साहेब ??
अरे कुछ नही यार पानी खत्म हो गया है।
अरे सहाब लाओ बोतल हम अभी लाये देत हैं पास ही में ट्युब बैल लगा है जी।
हमने उसे खाली वोतल दे दी।
और वो लेकर चला गया।
मुझे वो आदमी कुछ अच्छा लगा,स्वाभाव से भी अच्चा सा लगा।मैंने सोचा चलो कोई तो मिला इस अकेले का साथी।
वो पानी लेकर आ गया था।
मैंने वोतल ली और उसे शुक्रिया कहकर मुँह को धोने लगा।
सहाब जी कहाँ से हैं आप??
अरे यार हम तो कानपुर से हैं,पर यार तुमने अपना नाम नही बताया
अरे सहाब जी हमार नाम हमार नाम तो श्याम हैं श्याम प्रजापति।
वाह अच्छा नाम है आपका,वैसे तुम मुझे ये सहाब जी सहाब जी न कहा करो,मेरा नाम जी.आर.दीक्षित हैं,या तो नाम लो या फिर दाऊ जी कह सकते हो।
ये दाऊ जी??
(उसने सवालिया निगाहों से सवाल दागा)
मुझे सब इसी नाम से बुलाते हैं।
अच्छा लगा सहाब जी,का करते हैं आप सहाब जी??
फिर सहाब जी, अरे कुछ खास नही बस इस समाज के हित के लिए कार्य करता ूँ।
अच्छा लगा जानकर सहाब जी,
फिर सहाब जी मैंने उसकी तरफ कुछ क्रोध से देखा।
अरे सहाब जी नाराज काहे होत हो,आप तो ठहरे बडे आदमी,और जात में भी हमसे बडे हो ।
मैं उसके शब्दों से छिपे दर्द को समझ चुका था।
मैंने बडे प्यार से उसके काँधे पर अपने हाथ जमा कर कहा - ये जाति धर्म हम नही मानते ,हमारे लिए तो तुम भी मेरे जैसे हो ,रही बात बडे होने की तो आदमी सिर्फ दो में बडा होता है पहला उम्र में और दूसरा संस्कार और ज्ञान में।
वो हस दिया ।
भाई अब हम चलत हैं ,घर जाना है दुहनी वुहरी करना है। और वो चुपचाप खेतों की तरफ चला गया।
सुबह की पहली किरण आसमान से उतरकर आने बाली ही थी चिडियाँ चहकने लगीं थी।जल्द ही आवागमन शुरु हो सकता था।ओंस की बूँदे घास पर इतरा रहीं थी गाडी भी पूरी ओस से भींग चुकी थी।मेरा रुकने का अब कोई औचित्य अब नही रह गया था।मैं चुपचाप गाड़ी में वैैठा और वापस करके अपने मित्र के यहाँ चल दिया।मेरी आज की सारी रात बर्बाद गई थी ...ट. कुछ लब्ज थें जिन्हें गुन गुना कर कविता बनाने का प्रयास कर रहा था।
चाँदनी रातों में अकेला था मैं,
किसी के आने के इंतजार में,
वो आया नही,मैं राह तकता रहा,
उस अनजाने का,इंतजार करता रहा,
सर्द हैं रातें,मगर विस्वास अटल है,
वो परछाई ही सही,मगर आस है,
वो सच है या फिर फरेब,
मगर मैं खाली हाथ नही,
इतना विस्वास है हमें,
बस इसीलिए इंतजार करता रहा।
-----द-------**
मैं श्याम से कुछ सवाल करना चाहता था मगर पहली मुलाकात में ये सवाल करना मुझे उचित नही लगा था इसीलिए मैं खामोश रहा था।मगर ये सवाल जिनके जबाब जरुरी थे मेरे लिए।मुझे भी तब तक चैन कहाँ मिलना था जब तक ये पहेली सुलझ नही जाती पूरी तरह से।खैर हमतो प्रयास करेगें ही ।चाहें परिणाम जो भी हो।
दाऊ जी
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