• मेरी डायरी का वो आखिरी पन्ना-1
वो चाँद की मध्यम
रोशनी में भी मेरे चेहरे पर आने बाले हर भावों को पहचान गयी थी ... वो मेरे साथ
बैठ गयी और बोली – मैं पिताजी को मना नही कर सकती .... तुम खुद को मैनेज कर सकते
हो ..
हा सही है शायद
.....
(मेरे ये शव्द बड़े
ही दावे हुए स्वर में थे )
उसने मुझे गले लगा
लिया ... हमारी भावनाएं बह सकती थी मगर हममें से कोई भी कमजोर नही जो अपने आप पर
काबू न कर सके बस इसलिए शायद आँख में भरा हुआ सैलाब नही फूटा और हम रो नही सके
|मगर कहीं न कहीं तो वो जज्वात जाग चुके थे ... मैंने उसके गालों पर दो जोरदार
चुम्बन लिए और फिर खामोश हो गया |उसने भी मेरे किये का अनुसरण किया और चुपचाप वहां
से चली गयी .... मेरे लिए रत भले ही बीरन हो मगर आज की रात नही क्यूंकि आज तो उसके
गालों पर मिला एक नर्म और सुखद एहसास मुझे बैसे भी रात नही सोने दे सकता था |मैं
भावनात्मक रूप से कमजोर नही हूँ मगर भावनाओं की वहुत कद्र करता हूँ शायद यही वजह
है की मैं हर एहसास को जिन्दा रखने के लिए उसे इतनी बार याद करता हूँ की बस यही
लगता है जैसे की अभी की ही घटना हो |
मेरी किस्मत किसी जहाजरानी के कारखाने की पैदाईश भले ही न
हो मगर हमने भावनात्मक रूप से समन्दरों के फासले नापे हैं |अगले दिन २३ मार्च थी यानी शहादत
दिवस |वहुत सारे कार्यक्रम थे कुछ में हमें जाना भी पड़ा शाम गुजर गयी ... न खाने
का होश रहा न पीने का बस घर जाने की जल्दी थी मगर फिर भी काफी देर हो गयी और आज
हमारी किस्मत हमारे साथ नही थी आज हमारी गाडी भी हमको धोखा दे गयी ... जिसकी वजह
से हम समय पर न पहुँच सके |वहुत सारे काल आ चुके थे घर से सोनल के भी थे मगर हमने
किसी का रिसीव नही किया |करीबन १२ बजे जब
हम पहुंचे तो सब जाग रहे थे .. सब नाराज थे सिर्फ एक को छोड़कर और वो थी मेरी
प्रियतमा .... वो शायद सब समझती थी और समझ भी रही थी |
“तमन्नाओं पर भारी है वक़्त की नजाकत ,
दूर जा रही है मुझसे मेरी चाहत ||
*******
वो अपना सामान लगाने में व्यस्त थी और उससे बात
करने के लिए बैचेन हुआ जा रहा था जब भी उसके पास जाता कोई न कोई उसके पास जरुर
होता |मैं उससे मिलने के लिए प्रयास करने लगा |ऊँगली पर लगा हुआ बेन्देड भी हमने
हटा दिया था |आखिर चाहने बाले को क्या क्या नही मिल जाता मुझे भी मिल गया |जैसे ही
मौका मिला मैं अंदर पहुँच गया और दरवाजा बंद कर दिया ..वो अपने काम में मग्न थी
|जब उसने मुझे देखा तो चौक गयी
आप यहाँ ??
हा ...! क्यूँ यहाँ
नही होना चाहिए ??
नही नही बस यूँ ही
......
मैंने सोचा चलो कुछ
पैकिंग में मदद कर दूँ ....(मैंने पास ही पड़ा हुआ एक पैकिट उसकी तरफ बढाया )
ये तुम पर काफी जचता
है इसलिए इसे जरुर पहनना |
हाँ ,.....(उसने
दबे स्वर में कहा )
मैं उसके पास जाकर
बैठ गया और उसके बैग को चैक करने लगा ....
तो तुम जा रही हो
>>>???(मेरी आवाज में भारीपन आ गया था )
हा (उसने भी संछिप्त
ही उत्तर दिया )
तुम्हे मेरी याद नही
आएगी..... ( मैंने बैग चैक करने के बहाने चेहरे के भावों को छुपाने के प्रयास से बिना
आँखों में आँख डाले अपनी बात कही थी )
वो चुपचाप आकर मेरे
पास बैठ गयी ...अपने नाजुक हांथों से मेरे गले में हार बनाकर बोली –
तुम्हे लगता है मैं
तुम्हारे बिना जी सकती हूँ.......??(उसके शव्द भी कुछ भरे हुए थे ...)
मैं रोना नही चाहता
था बस इसलिए मैंने माहौल बदलने का प्रयास किया .....
अब मेरी ऊँगली किसके
लवों पर घूमेगी ......(मैंने मुस्कुराने का प्रयास करते हुए अपनी बात कही थी )
ओह... बैसे कैसी है
आपकी ऊँगली ... (उसने मेरा हाँथ अपने
हाँथ में लिया ,और ऊँगली को देखने लगी ) ये तो ठीक हो गयी है ... शुक्र है ...*(उसने
राहत की साँस ली )
इसको हुआ ही क्या था
.....??(मैंने हस्ते हुए कहा )
मतलव .....( वो चौंक
गयी मेरी बात सुनकर )
हा हा हां अ ह सच
इसको कुछ नही हुआ था ..... वो सब नौटंकी थी ...
सच .......
हा जी सच ....
बस इतना सुनना था की
उसने पास में पड़ा हुआ तकिया उठाया और मुझे मारने लगी मैं भी अपने चेहरे को बचाकर
हांथो पर बार सहने लगा और हसता जा रहा था
..... मैंने तकिया छीन लिया तो उसने आस पास के सारे कपडे मेरे उपर पटक
दिए..... मैं हस रहा था और वो बाद बड़ा रही थी ....
मुझे पागल बनाते
हो... मुझे द्र दिया ,.... दुष्ट आज मैं तुम्हे नही छोडूंगी.... ..ऊसकी इन हरकतों
में इतना प्यार था की बस हम आनन्द ले रहे थे उसका |मैं विस्तर से उठकर खड़ा हो गया
...उसने मुझे पकड लिया विस्तर की तरफ धकेलने लगी मैंने उसके हाँथ पकड लिए .....जब
मैं गिरा तो उपर से वो भी आ गिरी मगर उसका गिरना इतना अप्रत्याषित था की उसका सर
मेरी नाक से टकरा गया |मैं अपनी नाक को पकड़कर लेता रहा और वो वार वार दिखाने को
बोलने लगी
बाबू दिखाओं न प्लीज
.......बाबू दिखाओं न ....
दर्द कम था मगर मैं
उसको लेकर उसके चेहरे पर दर्द नही देखना चाहता था ..बस इसलिए मैंने मौके का फायदा
उठाया और उसे अपनी बाहों में जकड लिया ... वो छूटने को मचलने लगी ... और मैं
प्रयास करने लगा उसके गालों पर अपने लवों की छाप छोड़ने की |वो सब समझ गयी थी इसलिए
अपने चेहरे को छुपाने का प्रयास कर रही थी |मैंने कई बार प्रयास किया मगर उसके
हांथो के कवच को भेद न पाया वो एक जल बिन मछली की तरह छटपटा रही थी मगर जोर नही
लगा रही थी ......न वो मुझसे छूटना चाहती थी और न हमारा काम आसां होने देना चाहती
थी |अचानक उसका विरोध शून्य हो गया और वो शांत हो गयी .... मगर उसने अपने मुंह से
अपने हाँथ नही हटाये......जब मैंने हाँथ हटाये तो देखा पूरा चेहरा आंशुओं से भींगा
हुआ था ... आशु गालों तक पहुँच चुके थे .... उसकी प्यारी प्यारी गोरी भूरी से नाक
लाल हो गयी थी |उसके आसू नयनो से उतरकर सीधे रास्ता बनाते हुए लवों तक आ गये थे
.... मैं विरोध के निस्तेज होने की वजह जान छुका था |उसके आंशुओं ने मेरे अन्दर का
मजबूत बाँध भी ढहा दिया और उसके बाद तो मानो एषा लगा जैसे बस सुनामी से आ गयी हो
.....|मुझे पहली बार मालूम हुआ था की हां मेरे अन्दर भी आसुओं का एक गुब्बार हैं
|इतने आंसू .... की कुछ कहा नही जा सकता ... हम दोनों एक दुसरे से लिपटकर अपने दिल
को तस्सली पहुंचाते रहे |वहां दोनों दी दर्द भरे हुए थे कोई सांत्वना देने बाले
नही था ... जब कोई रोकने बाला न हो तो दौर कुछ लम्बा हो ही जाता है .... हमने वक़्त
नही देखा मगर इतना जरुर तय था की वुत सारा वक़्त लगा |और वो रुकता भी नही अगर
दरवाजे पर आहाट नही होती ... बहार से आवाज आ रही थी ... उसने ही बोलने का प्रयास
किया –
एक मिनट खोलती हूँ
..........
दाऊ वहां है क्या
???
मैंने उसकी ताराफ
देखा ... वो मुझे विस्मित सी देखने लगी
आखिर मैं ही बोल [पड़ा – हाँ,आ रहा हूँ ,कोई काम है क्या ??
उधर से आवाज आई –
नही बस तुम्हारा फोन नही लग रहा था ...इसलिए ... कोई काम नही .... और वो चले गए ..
मैंने राहत की सांस
ली और फिर उसकी तरफ देखा .... उसने आंसू पोंछ लिए थे ... वो मेरे पास आई और अपने
हांथों में मेरे गालों पर आ चुके आसुओं को हटाने के लिए ज्योंही उसने अपना हाँथ
बढाया मैंने उसे पकड़ लिया |और न में सर हिलाया वो मेरा इशारा समझ चुकी थी .....
मगर वो उसे पूर्ण नही कर सकी क्यूंकि दरवाजे पर फिर से आहट थी |
मैं चुपचाप खड़ा हुआ
चेहरा पोंछा और मुस्कुराने का अनचाहा प्रयास करने लगा मेरा ये प्रयास व्यर्थ ही था
मगर क्या करें सबके सामने अपना सच थोड़े ही बयाँ कर सकते थे |हम चलने लगे तो उसकी
आवाज आई - आप पिता जी से बात कीजिए न ?
मैंने न चाहते हुए
भी मुस्कुराने की कोशिश करने लगा ....... बस इतना ही कह सका – संभव नही है अभी तो
.... जीने की कोशिश करेगें आपके बिना ...
शाम को मिलेगें इतना
कहकर हम दरवाजा खोलकर चुपचाप निकल लिए जहाँ से मैं छत पर आया अपनी डायरी निकाली
और उसके आखिरी पन्ने पर लिख दिए ये वो
शव्द जिन्हें मैं किसी से कह नही सकता था |उसका दूर जाना मेरे लिए वहुत नुकसान देह
था अब तक के सफर में हम लोग कभी भी नही बिछड़े थे दस दिन के लिए भी नही . और अब तो
बात वहुत लम्बी थी |मैंरी शर्ट आसुओं से भींग चुकी थी ... और उस वक़्त मेरे जेहन
में सिर्फ दो ही पंक्तिया आ रही थी वो भी मुझे नही मालूम किसकी थी_
हमतो सुखो लेंगे दामन ,कुछ ओढ़ कर,कुछ पहनकर
चलो कुछ तो हल्का हुआ गम,जरा आसूं बहाकर ||
शाम के वक़्त सब चलने
की तैयारी करने लगे वो सबसे मिली हमसे भी मिली लेकिन हमसे बाय और अपना ख्याल रखना
के सिवा कुछ न कह सकी |हम उन्हें स्टेशन पर बिठाने गये मगर हिम्मत न हो सकी कुछ भी
कहने की |हमारी कहानी भले ही सबको मालूम थी मगर हम मर्यादा से बदहे हुए थे बस
इसलिए खामोश थे |हमारी खामोशी दोनों पर ही कहर बन गयी और हम लोग एक दुसरे को सिर्फ
हाथ हिलाके ही एक दुसरे को विदा कर सके |
हमने एक दुसरे से विदा लेली और २४ मार्च हमारे लिए एक एषा
दिन हो गया जहाँ से हमारे बिछड़ने की शुरुआत हो गयी |
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