मंगलवार, 31 मार्च 2015

• मेरी डायरी का वो आखिरी पन्ना- 2


मैं दौड़ कर उसके पास गया उसे उठाया और उसको सही करके वापस उसमें उसके कवर को साजोंने लगा| मगर तभी मेरी नजर उसके पिछले हिस्से में लिखी हुयी पंक्तियों पर गयी जिनको पढ़कर अचानक ही मेरी वो डायरी मेरे लिए कितनी खास बन गयी वो पंक्तियाँ भले ही कोई श्लोक या गीता के किसी संबाद का अर्थ लिए नही थी मगर वो मेरे जिन्दगी के लिए काफी जरुरी थी एक वर्षों पुरानी डायरी जगह जगह से अपनी चमक खो चुकी हुयी मगर उसके अंदर की हर बात आज भी एक तजा फूल की तरह एक अनोखी सुगंध छोड़ रही थी |मैंने कभी किसी भी भाव से उसके नर्म कागजों पर कुछ भाव लिख दिए थे और वो देखो कितनी शालीनता से उसे कितनी म्हणत से उन्हें आज भी जिन्दा रखे हुए थी|कभी मेरी कलम किसी क्रोध को उसमें उतार गयी तो कभी प्रेम को ताकि मेरे अन्दर का भाव न मर सके और देखिये उसके अन्दर लिखा हुआ एक एक शव्द आज भी उसी भाव को  पूर्ण रूप से जिन्दा बनाये रखे हुए है |उस डायरी का आखिरी पेज जिसपे आते जाते वक़्त की हज़ार इबारतों का असर था कभी मौषम की मार तो हमारा व्यवहार सभी को सहकर भी खुद को जिन्दा बनाये रखा था |हज़ारों सिलवतें उसमें आ चुकीं थी कुछ तेल के निशान भी थे .... ये बही तेल के निशान थे जब मैंने गुस्से में आकर वो तेल की शीशी शहीद की थी और उसकी कुछ बूंदे आकर मेरी दाग पर पड गयी थीं जो अपनी अमिट छाप  आज भी जिन्दा बनी हुई थी ..... उसमे रह रहकर ही सही मगर वाही तेल की खुशबु अब भी आ रही थी |उसका कुछ हिस्सा चूहे अपना भोजन बना चुके थे ...वो लापरवाही का वहुत ज्यादा शिकार होकर भी अपने कर्त्वों के प्रति समर्पित था |जबकि हम मानव अगर हामारे साथ एक बार कोई गलत कर जाए तो हम उसके खिलाफ हो जाते हैं |उसके बारे में बुरा सोचने लगते हैं फिर भले ही उसने हमारे साथ कितनी भी अच्छेयाँ  क्यूँ न की हों |
हिंदी में एक कहावत है न

"दफ़न करके आरजुओं को हमतो बढ़ चले हैं,एक मुद्दत दूर जाकर याद आया तुम्हे भी छोड़ आये हैं।"
हम मानव खुद को भावनाओं में घिरा हुआ भले ही मानते हों मगर हकीकत में तो हमारे भाव पक्षपात से घिरे हुए होते हैं |वर्षों पुरानी मित्रता वर्षों पुराना प्यार एक छोटे से झटके में हि टूटकर बिखर जाता है और हमारे पास रह जाती हैं सिर्फ यादें जिन्हें हम डायरियों में कैद कर लेते हैं और वो वर्षों तक उन्हें सहेजें रहते हैं |जो बाते हम सार्वजानिक तौर पर कह नही सकते उन्हें उस आखिरी प्रष्ट पर अंकित कर देते हैं और न चाहते हुए भी वो प्रष्ट पूरी डायरी में लिखी हुयी इबारत से ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है |और इस प्रष्ट की सुरक्षा भी बढ़ जाती है क्यूंकि हम इसे छुपाकर लिखते हैं और छुपाकर ही रखते हैं |
हमने भी अपने प्रष्ठ को कुछ इसी तरह बंद किया हुआ था मगर आज देखिये वो अपने आप खुल गया था उसमें लिखे हुए शव्द कुछ इस तरह से थे |
·         आज २४ मार्च है और आज मैं अकेला होने बाला हूँ”
·         “मैं नियति को बदल नही सकता ,शायद यही है”


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