"सबसे खतरनाक होता है इश्क़ का नॉन रिस्पोंसिव हो जाना,
ब्वॉयफ्रेंड शुदा लड़की से मोहब्बत होना और तड़प का बढ़ते जाना"
पाश अगर विद्रोह की जगह इश्क के कवि होते तो ऐसे उद्गारों से युवाओं के प्रेम की पीर को प्रकट कर देते। टूटे दिलों वाले आशिकों को पाश के यहां ठौर मिलता तो नए नए पनप रहे मोहब्बतबाज लड़के सतर्क हो जाते। IMA (इंडियन मोहब्बत एकेडमी) के तराने ऐसी कविताओं से ही गुलजार होते और युवाओं के 'प्रेम की पीर' इश्क से विद्रोह में बदल जाती।
नॉन रिस्पोंसिव इश्क़ आशिकी का वो दौर है जिसमें सामने वाला ध्रुव (G) दूसरे ध्रुव (B) की तरफ झांक कर भी नहीं देखना चाहता, जबकि दूसरे ध्रुव (B ) की निगाह सामने वाले ध्रुव (G) पर ठीक वैसी ही होती है जैसी नरेगा लाभार्थियों की ग्राम प्रधान पर।
नॉन रिस्पोंसिव इश्क भी कई तरह का होता है। पहला, वो जिसमें सामने वाला ध्रुव (G ) भावना शून्य हो माने मुन्नाभाई MBBS के व्हीलचेयर वाले आनंद जी टाइप... सब्जेक्ट के दिमाग तक सिग्नल जाता जरूर है लेकिन रिस्पॉन्स निल बट्टा सन्नाटा।
दूसरा, वो जिसमें सामने वाला ध्रुव (G ) पहले ही किसी और में अपना ध्रुव तारा (C ) ढूंढ चुका होता है। चूंकि मोहब्बत द्वि ध्रुवीय ही अच्छी लगती है, इसमें तीसरा पहिया जुड़ते ही जुगाड़ू टम्पू बन सकता है जो इधर उधर जाकर सबको ठोकता ही रहता है। अत: सामाजिक कल्याण हेतु मोहब्बत को द्विध्रुवीय तक सीमित रखने भी इश्क नॉन रिस्पोंसिव हो जाता है। इसमें सबसे बड़ा योगदान रहता है ध्रुव तारे (C) का, जिसकी इनसिक्योरिटी , बैटर ऑप्शन सर्च और कंपीटिशन को तोड़कर मेरिट का गला घोंट देती है और ये ध्रुव तारा (C ) 'पहले आओ, पहले पाओ' योजना के तहत मोहब्बत में आरक्षण पा जाता है। इस ध्रुव तारा (C) का शिकार आदमी (B) अपने ध्रुव (G) से ही डिलीट या ब्लॉक हो जाता है। इज्ज़त के बचे खुचे चीथड़े समेटकर भागने के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं रहता।
तीसरा, नॉन रिस्पोंसिव इश्क़ मर्यादा और सामाजिक बंधनों का है जो आज के हाई टेक दौर में एलियनवादी कल्पनाओं से अधिक कुछ भी नहीं। पुराने दौर में साहित्य भी २ प्रकार का होता था - प्रकट साहित्य जिसे प्रकट रूप से पढ़ा जाता था और गुप्त साहित्य, जिसका गुप्त रूप से सेवन किया जाता था। आज के हाई टेक दौर में ये भेद समाप्त हो चुका है। प्रकट साहित्य अब अप्रकट हो रहा है तो गुप्त साहित्य इच्छाधारी नागिन की तरह वेश बदलकर हर साहित्य के बीच घुसकर प्रकट होता जा रहा है। गुप्त और प्रकट का भेद समाप्त करते कैमरावादी युग में किसी सामाजिक दबाव से उपजा नॉन रिस्पोंसिव इश्क कलिकाल की अद्भुत फैंटेसी ही लगता है।
एक नॉन रिस्पोंसिव इश्क ऐसा भी है जिसमें सामने वाले ध्रुव (G) को दूसरे ध्रुव (B) में कोई शहूर ही नजर न आए और उसे वो अपने सामने से ऐसे गायब करना चाहे जैसे शाहजहां ने कारीगरों के हाथ गायब करवा दिए थे।
खैर, नॉन रिस्पोंसिव इश्क को अगर नॉन रिस्पोंसिव असेसी मान लें तो बच्चों को ऐसे केस में आनंद आता है, वे जैसा तैसा उठाकर अरेंज मैरिज की तरह 'मटेरियल ऑन रिकॉर्ड' देखकर जल्दी से मामला निपटा देते हैं। दिक्कत वहां होती है जब असेसी नॉन रिस्पोंसिव हो जाए और मटेरियल ऑन रिकॉर्ड में बस कोरे पन्ने हों, सारी सूचनाएं थर्ड पार्टी से मांगनी पड़े और थर्ड पार्टी वही इनसिक्योरिटी कॉम्प्लेक्स से पीड़ित ध्रुव तारा (C) निकल आए। नॉन रिस्पोंसिव असेसी का इलाज तब भी है, लेकिन ऐसे नॉन रिस्पोंसिव इश्क का इलाज कहीं नहीं।
अब जरूरी है आशिकों को आम सहमति से एक SOP बना लेनी चाहिए, IMA (इंडियन मोहब्बत एक्ट) पारित कर देना चाहिए, इश्क के दौर में C जैसे ध्रुव तारों का आरक्षण खत्म कर खुली प्रतियोगिता खोल देनी चाहिए और जल्दी से सुलटा देना चाहिए ये non responsive इश्क :
"कैसे तोडूं, कैसे छोड़ूं तुझको ऐ नॉन रिस्पोंसिव इश्क!,
गूंगा हुआ तो क्या हुआ, तू इश्क तो है"

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