उस दिन मौसम अपेक्षाकृत शान्त था । पर आकाश में घने काले बादल छाये हुये थे । जिनकी वजह से सुरमई अंधेरा सा फ़ैल चुका था । अभी 4 ही बजे होंगे । पर गहराती शाम का आभास हो रहा था । उस एकान्त वीराने स्थान पर एक अजीव सी डरावनी खामोशी छायी हुयी थी । किसी सोच विचार में मगन चुपचाप खङे वृक्ष भी किसी रहस्यमय प्रेत की भांति मालूम होते थे ।
मैंने ने एक सिगरेट सुलगाई । और वृक्ष की जङ के पासमोटे तने से टिक कर बैठ गया । सिगरेट । एक अजीव चीज । अकेलेपन की बेहतर साथी । दिलो दिमाग को सुकून देने वाली । एक सुन्दर समर्पित प्रेमिका की तरह आपके दिलों दिमाग पर छा जाती है।
प्रेमिका तो शायद मना भी कर दे लेकिन आपकी सिगरेट आपके साथ पूरी दिल्लगी निभाते हुए आपके लवों के बींच में पूरी तल्लीनता के साथ विराजित होकर आपके नर्म नाजुक लवों को एक प्यारा सा चुम्बन दे जाती हैं। एक सुन्दर समर्पित प्रेमिका सी । जो अन्त तक सुलगती हुयी सी प्रेमी को उसके होठों से चिपकी सुख देती है । कितना प्यारी होती है न वो और कितनी समर्पित के अपनी प्रेमी के मन के अहसासों को समझ उसके अधरों से चिपक कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर देती हैं।
एक पतंगा दीपक की लौ से जितनी मुहोब्बत करता हैं शायद वही मुहोब्बत सिगरेट को भी अपने पाने बाले से हो जाती है ।जो खुद तो खत्म हो जाती है मगर अपने अवशेष मात्र से तुम्हारे दिलो दिमाग से छा जाती हैं। वैसे भी अजीब कहावत है कि
''मुहोब्बत का नशा बिना धुँए के द्रव्य के चढता हैं और आखिर तक रहता है'' ।मगर सिगरेट का नशा तो बस धुँए से चढता है जो आपके मन मन्दिर से लेकर आसपास तक अपने अहसास को अंकित कर जाती हैं।
हीर राझाँ और रोमियो जूलियट के प्रेम की तरह इसका अमर प्रेम तो नही है लेकिन ये जरुर है कि इसने न जाने कितने प्यार में ठोकर खाये हुए,गमजदा लोगों को अपने दिलकश चुम्बनो से सहारा दिया है ।उन्हें कुछ पल के लिए उस अवसाद से उबारा है। मैंने अपने थरथराते लवों पे सुलगती सिगरेट को रख कर एक हल्का सा कश लगाया । और उससे निकले धुँए को अन्दर ले जाने का प्रयास किया ।मगर वो तो साला छाती में ही अटक गया।और मुजे जोर जोर से खाँसी आ गईछ साला जिन्दगी में पहली बार व्यवसनो को हाथ लगाया था और ये हाल हो गया ।
साला हराम खोर प्रेम ,तुझे यही जहर मिला था मुझे देने को।साला बोलता था कि सुकून मिलेगा।अरे घण्टा सुकून साला इसने तो दिमाग की बत्ती ही बुक्षा दी।साले मिल तू अब तेरे को बताता हूँ।एक ही साँस में म जाने कितनी गालियाँ मैंने प्रेम को देदी थी।मैंने सिगरेट बुझा कर फैंक दी और उदास निगाहों से सामने देखने लगा । सामने । जहाँ टेङी मेङी अजीव से बल खाती हुयी नदी मुझसे कुछ ही दूरी पर बह रही थी । मैंने जिन्दगी में पहली बार सिगरेट को पीना चाहा था अपने दर्द-ए-दिल को भुलाने और अपनी प्रेमिका के लव छूने के अहसास को दुबारा पाने के लिए।मगर यहाँ तो उल्टा ही हो गया था।
मैं खामोश सा ,शान्त सा उसी मोटे तने पर बैठा कोई ठोस निर्णय लेने पर विचार कर रहा था। मेरे ठीक सामने ही मेरी सिगरेट पडी हुई थी।बिल्कुल एक रुठी हुई दुतकारी हुई प्रेमिका के समान।बिल्कुल वेजान सी।निरीह मासूम सी। मैं उसे बार -बार न चाहते हुए भी देखने लगा। जैसे चातक अपने प्रेम चाँद को ताकते रहकर ही सारी जिन्दगी गुजार देता है वैसे ही मेरे कुछ पल उसी को देखते हुए कट रहे थे ।
मुझसे रहा न गया।मैंने उसे वापस उठा लिया और उसे साफ करने लगा।बिल्कुल इस तरह जैसे कोइ छोटा बच्चा रुढ कर जमीन पर लेट जाता हों और उसके इस वात्सल्य पर प्रेम उमड आता हो।
- कभी कभी कितना अजीव सा लगता है सब कुछ ।उसने सोचा - जिन्दगी भी क्या ठीक ऐसी ही नहीं है । जैसा दृश्य अभी है । टेङी मेङी होकर बहती उद्देश्य रहित जिन्दगी । दुनियाँ के कोलाहल में भी छुपा अजीव सा सन्नाटा । प्रेत जैसा जीवन । इंसान का जीवन और प्रेत का जीवन समान ही है । दोनों ही अतृप्त । बस तलाश वासना तृप्ति की । मैं अब उसी वासना की आग को तृप्त करने के लिए सिगरेट का सहारा लेना चाहता था। मैंने लाईटर निकाला।फिर से पहला कश लिया।और धुँआ अन्दर लिए बिना ही छोड दिया।अजीब सा सुकून मिला । ऐषा लगा वर्षों से विछडी हुई मेरी प्रियतमा ने आज आकर अपने नर्म,नाजुक गुलाबी ,गुलाब की कोमल पंखुडियो की तरह नाजुक लवों को लाकर सीधे मेरे लवों से टकरा दिया हो।
इस अहसास के साथ ही ।मेरा शरीर झनझना गया। अब मैं सिगरेट को अपने लवों से लगाता और उसकी छुअन के अहसास में अपनी प्रेमिका को खोजता। अगले कुछ पलों तक ये विनारुकावत के जारी रहा मगर अचानक ये रुक गया क्युँकि अब सिगरेट का सिर्फ ढुढ ही बचा था। और वो भी कभी मेरी ऊँगलिया जला सकता था। मैंने मायूस मन से उसे फैंक दिया।
मगर मुझे वापस अपनी प्रेमिका से मिलना था उसके लवों से फिर अपने अधरों को मिलाना था।बैचेनी मुझ पर हावी होने लगी और ईधर वारिस भी सुरु हो गई।
इस वारिस न विरह वेदना की को जंगल में लगी भयानक आग को हवा देने जैसा काम कर दिया ।
दाऊ जी
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