गुरुवार, 28 अप्रैल 2016

मुहोब्बत मेरी रग रग में हैं

तू बन गयी हे आसमाँ जमी से मिलन कब होगा
में छुपा हूँ आंसुओं तले मुस्कान तेरी जद में हे
बरसना चाहते बादल जब्त आसमाँ की हद में हे
दूर मुझसे कैसे रहेगी मुहब्बत मेरी रग रग में हे

कदम सोच कर तुम उठाना कांटे पग पग में हे
बेरंग हे ये दुनिया रंग हजारों इस मुहब्बत में हे
भूलजा या याद रख लफ्ज लिखा हर पन्नों में हे
दूर मुझसे कैसे रहेगी  मुहब्बत मेरी रग रग में हे

मंजिल हे बहुत दूर ख़्वाबों के हैं फासले बहुत
हर कदम पे मौत मिलती जिंदगी मुश्किल से हे
जाम कड़वा बहुत हे जान बहकती बोतल से हे
दूर मुझसे कैसे रहेगी  मुहब्बत मेरी रग रग में हे

जब जब सहर होगी कोई जिंदगी सिफर होगी
मौत को गले लगाकर तब ये रूह अमर होगी
मजा कहाँ इस ज़मी पे जो मजा जन्नत में हे
दूर मुझसे कैसे रहेगी  मुहब्बत मेरी रग रग में हे

गुलिश्ता को मेने सींचा आसुओं से नमी देकर
में भी खिल खिलाया  तेरे ओंठों से हंसी लेकर
 बिछड़ना न इस गुलिश्ता से मुहब्बत माली में हे
दूर मुझसे कैसे रहेगी  मुहब्बत मेरी रग रग में हे

अंतर्द्वंद

मेरी सोची हुई हर एक सम्भावना झूटी हो गई, उस पल मन में कई सारी बातें आई। पहली बात, जो मेरे मन में आई, मैंने उसे जाने दिया। शायद उसी वक्त मु...