अतीत के पन्नों के हिसाब से मैं आने बाले भविष्य में खुद को स्थापति करन चाहता था एक नाम के साथ बस उसी के लिए मुझे मेहनत करने की जरुरत थी और मैं आज तक वाही करता आया लेकिन मुझे नही मालूम की मुझे कब किस रास्ते पर अबसाद ने आकर घेरना शुरू कर दिया जिसके चलते मुझे आज ये दिन देखने पड़ रहे हैं |लेकिन किसी महापुरुष ने कहा था की आपके जीवन में आने बाले अवसाद आपको या तो महँ बना देंगे या फिर आपको खत्म कर देंगे ..मुझे नही मालूम महानता तक जाने के लिए किसकी जरुरत होती है लेकिन इतना जरुर मालूम है की मुझे अवसादों से लड़ना है और वो भी पूरी ताकत से ताकि उन पर जीत दर्ज करके खुद के जीवन को बचाया जा सके |बेशक आज में खुद को स्वार्थी महसूस कर रहा हूँ क्यूंकि मुझे लग रहा है की मैं अपने अवसाद से लड़ने की वजह से वहुत से लोगों की भावनाओ के लिए काम नही कर रहा हूँ ......उनके जीवन के लिए काम नही कर रहा हूँ ....लेकिन वैद पुराण भी यही कहते आये हैं की अपनी जान बचाना आपका धर्म भी है और कर्तव्य भी आपका बीच रण से भागना आपको कायर सिध्द कर देगा .........मैं कायर नही हूँ और न बनना चाहता हूँ बस मैं तो इतना जनता हूँ की कुछ कार्य करने होते हैं खुद की बेहतरी के लिए जिनमे दुनिया का कोई रोल नही होता है लेकिन उस हालत से निबटने का बाद दुनिया को एक हीरा मिलता है जिसकी चमक से और वेल्यु दोनों ही बड़ी होती है | हमारे लिए ये खुद को साबित करने का मौका होता है हा ये बात सच है की सब लोग नही मानते और एस तरह से नही देखते हैं|लोग यह नही देख पाते की उनके अन्दर भी एक योध्धा छुपा होता है या ये कहूँ की वो लोग ये नही देख पाते की जिस बायरस(अवसाद )से वो ग्रसित हैं दरअसल उसका एंटी वायरस उन्ही के शारीर के अन्दर उपस्थित हैं |लाखों बार लोग कहानियों में सुनते हैं की कस्तूरी मृग आजीवान कस्तूरी की खोज करता है लेकिन खुद के अन्दर है इस बात से अन्भिघ रहता हैं हम सब भी एक कस्तूरी मृग ही हैं जो दुनिया में आने के बाद एक लम्बी रेस के घोड़े बन्ने के प्रयास में मशीन बनकर रह जाते हैं और हम अपनी क्षमताओं को भुला बैठते हैं |
लोग यह नही देख पाते हैं की वो अपनी वर्तमान जगह से ऊपर उठकर एक दुनिया की मनचाही वास्तु कोप्राप्त कर सकते है वो तो सिर्फ रोज मर्रा की जिन्दगी में घुलते पिटते रहते हैं और अवसाद से ग्रस्त होने के बाद धीरे धीरे खुद को खत्म कर लेते हैं मगर उन्ही में से कुछ लोग होते हैं जो अपने अन्दर के योध्धा को जगाकर अपने मन और दिल दोनों को प्रोह्त्साहित करते हुए वापस विकास और प्रगति के मार्ग को अपना लेते हैं |
बेशक व्यक्तिगत विकास के लिए एक अच्छे माहोल की जरुरत होती है लेकिन वो माहौल उन्हें खुद ही बनाना पड़ता है और जैसा वो अपने आस पास का माहौल बनाने में सफल होते हैं उनकी सफलता का प्रितिशत उतना ही बढ़ जाता हैं |वहुत कम लोग होते हैं जो खुद को आईने के सामने खड़ा करके सच बोल पाते हैं मगर जो लोग बोल सकते हैं वो आंगे जाकर अपनी दुनिया खुद ही बनाते हैं| सेर रात तक काम करते रहना आपको मेहनतकाश कम बल्कि बौधिक स्टार पर कम साबित जयादा करता है हाँ ये बात अलग है की आप पर कितना लोड है ??अगर आप पर सामान्य लोड पर भी देर रात तक्क काम कर रहे हैं यानी आप कहीं न कहीं खुद के साथ इन्साफ नही कर पा रहे हैं जो आंगे जाकर आपको अवसाद से ग्रस्त कर सकता है |मैं भी एक सामान्य कर्मचारी की तरह कार्य करने बाला हूँ लेकिन मेरे अवसाद का कारन मेरा काम था जो पचास तरह से घिरा हुआ था ...बेशक आप कह सकते हो की हर किसी को अपना काम ज्यादा लगता है तो हो सकता है मुझे भी ज्यादा लग रहा हो मगर सच्चाई यही थी | मेरा अधिकांश समय सम्मेलनों और कार्यक्रमों में भाषण देने में बीत जाता था इसलिए मेरी दफ्तर से दूरियां अक्सर बनी रहती थी जिसकी वजह से काम पेंडिंग में पद जाता था और बाद में ये अवसाद बनकर मेरे सामने आ गया है |
किसी ने कहा था “ हम तो इस रंगमंच की महज कठपुतलियां है लेकिन हमारी डोर दुसरे के हाँथ में होने के बाबजूद भी वहुत से काम हम अपनी मर्जी से कर सकते हैं हम अपने मालिकों का चयन कर सकते हैं अपनी पसंद का काम कर सकते है,अपनी एक निजी सोच रख सकते हैं ..............इसके बाद भी अगर हम सिर्फ काठ के बने रह जाएँ तो वो शव्द सही बैठ जाते हैं |
हमें अपने अवसादों से एक योध्दा बनकर लड़ना है न की कायर बनकर आत्म समर्पण करना है |
दाऊ जी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें