पुष्पा भैया पूछते हैं कि ये देश इतना दुख obsessed कबसे हो गया. तेरे नाम के 'राधे भैया' के फेलियर के बाद युवाओं का नया आदर्श सन्दीप भैया कैसे हो गया, बच्चन का मनमौजीपन कहाँ खो गया??
दरअसल हर दौर में मनमौजीपन और 'दुख की बदली' का साथ आगे पीछे रहा ही है. हम बुद्ध के देश हैं और बुद्ध का दर्शन है- 'सर्वं दुःखं दुःखं'। इससे प्रेरणा पाया आदमी दुख ढूंढता रहता है तो दूसरी तरफ चार्वाकों के 'ऋणम कृत्वा घृतं पीबेत' का दर्शन आदमी को मनमौजीपन की तरफ ले जाता रहा है.
वर्तमान में भी यही दोनों चीजें एक साथ या ऊपर नीचे की मात्रा में दिख ही जाती हैं. हालावाद के स्तम्भ बच्चन कहते हैं- " इस पार प्रिये तुम हो, मधु है/ उस पार न जाने क्या होगा." तो विश्वयुद्ध के भय और आजादी के मोहभंग से घिरा दूसरा आदमी कह सकता है- "पर जब सभी कुछ ऊल ही जुलूल है, सोचना फिजूल है."
ये माहौल कोई एक दिन में नहीं बनता, हर तरह के तत्व हर समय दबे दबे से रहते हैं और मौका पाकर बाहर निकल आते हैं. 'मोहब्बतें' के शाहरुख के दुख में दुखी होती पीढ़ी उसी मूवी के 4 छोकरों की मोहब्बत देखकर उमंग से भर जाती है तो 'ग़दर' देखकर किसी सकीना को बचा ले आने के लिए बेताब हो जाती है. 'बेताब' के सन्नी और अमृता सिंह के 'जब हम जवां होंगे' को देखकर न जाने कितने नए नए टीनएजर अपने जवान होने की कई फंतासियों को ओढ़ लेते होंगे. क्या बुरा हुआ ऐसी ही एक पीढ़ी 'तेरे नाम' और एकतरफा मोहब्बत में उजड़ा लड़का राधे भैया का फैन हो गया? राधे भैया का फैन होने के बाद भी लड़का 'पार्टनर' देखना नहीं भूला और कहीं कहीं अपना अक्स गोविंदा में देखने लगा. उसी दौर का लड़का खुद को '3 इडियट्स' का हाफ रेंचो भी समझने लगा, जिसमें किताब न पढ़ने का आधा गुण तो लड़के ने धारण किया लेकिन बिना बैक लगे पास होना भूल गया.
खैर, मूल बात यह है कि हर दौर में कई सारी प्रवृत्ति एक साथ उठती हैं और जनमानस का ट्रेंड जिसे खुद से रिलेट कर पाता है, उसका फर्क ज़्यादा दिखने लगता है. फिलहाल सब दुग्गल साहब लोग सन्दीप भैया को अपना आइडियल बना बैठे हैं क्योंकि युवा जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा इसी प्रतिस्पर्धा में लगा है. यही पीढ़ी बियाह बाद भी दुख से ऐसे ही भरी रही तो एक इनका माइंड सेट कुछ ऐसा होगा-
"अगर कोई जीने की शर्त है तो,
यही आदमी सड़क
का कुत्ता बन जाए या बीवी
का गुलाम या एयर इंडिया
का विज्ञापन."
क्योंकि इस नए युग का मुहावरा होगा- 'फर्क नहीं पड़ता, सर्वं अति दुःखं अति दुःखं
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