रविवार, 17 मार्च 2024

अंतर्द्वंद

मेरी सोची हुई हर एक सम्भावना झूटी हो गई, उस पल मन में कई सारी बातें आई। पहली बात, जो मेरे मन में आई, मैंने उसे जाने दिया। शायद उसी वक्त मुझे कह देना चाहिए था। शायद नही कहा तो भी ठीक किया। फिर दूसरी बात आई, फिर तीसरी, इस तरह जाने कितनी बातें। वो सब बातें घुमती रही और मैं उनमे डूबता रहा। कोई भी बात पूरी हो नही पाई और कितनी बातें तो मैं भूल भी गया।
मैंने इतना सोचा लेकिन फिर भी मैं सच के आसपास तक नही था। मेरी सोच एक झूट से शुरू होती और कितने ही और झूटों के साथ जिन्दा रहती। और आखिर में कुछ और नये झूटों के साथ मर जाती।
झूट की मौत ने मेरी ख़ामोशी को बढ़ा दिया। सब लिखा हुआ झूट हो गया। सोचा हुआ सब झूट हो गया। जब टुकडो में झूट खत्म हुआ, और सच ने अपनी मोजुदगी दर्ज करवाई। बहुत दर्द हुआ, दर्द के बाद सुकून और सुकून के बाद ख़ामोशी। अब मुझे आदत हो गई हैं, चुप रहने की। मेरे शब्द खो गये और मैं उन्हें बाहर ढूंढने लगा। पर यहाँ कई और झूट मिले। वो भी झूट थे, बस मेरे नही थे।
जब पहली बार मैंने अपने झूट को मरते देखा था तो तुमसे कहा क्यों नही ? काश कह दिया होता तो तुम बस एक झूट बोलकर उनकी उम्र बढ़ा सकती थी। या हो सकता था तुम बोलती सच और मैं झूट की लाशे भी न देख पाता।
जो मैं अभी सोच रहा हूँ, हो सकता हैं कल झूट हो जाये। मेरी झूटी सम्भावनाओ की मौत के बाद भी मैं सोचना बंद नही करूँगा।
मैं अब भी तुम्हारे सच के आधार पे कुछ सम्भावनाये और देखता हूँ, सोचता हूँ और फिर चुप हो जाता हूँ। वैसे अब ठीक हूँ मैं। लेकिन मन में कई सारी बातें अब भी आती हैं। शायद ये सब सच के आसपास भी ना हो, पर फिर भी आती हैं।
जाने कितने झूट मरे होंगे, जब पहली बार मैंने सच को महसूस किया। वो झूट जो अगर जिन्दा रहते, तो महसूस होने को जिंदा रखते। माना की जिंदा तो अब भी हैं, क्यों की जान नही ली जाती खुद की। लेनी भी नही चाहिए। अभी जी लेते हैं झूट। सोच लेते हैं जितना सोच सकते हैं, की फिर एक रोज मरते देखेंगे, झूट को।
इसलिए कई झूट बनते हैं, बनते रहेंगे। टूटते रहेंगे। मरते रहेंगे। और जीते भी रहेंगे..a

अंतर्द्वंद

मेरी सोची हुई हर एक सम्भावना झूटी हो गई, उस पल मन में कई सारी बातें आई। पहली बात, जो मेरे मन में आई, मैंने उसे जाने दिया। शायद उसी वक्त मु...