कोई अहसास नही की दर्द छोड़ चुका है
तू मुझसे मिलने का चलन छोड़ चुका है,
कभी गाफिल न रहा तेरी हाज़िरी से जो,
कहता है वही दिल तू जिसे तोड़ चुका है।
कुछ तो है याद गुजरे हुये लम्हे सनम ,
कसक बाँकी है अभी मुंह मोड़ चुका है।
तेरी राहों में बिछाते थे जो कल तक कांटे
उन्हीं पत्थर के बुतों से नाता जोड़ चुका है।
जुबां पे झूठ जब आया उसे मैंने दबा दिया,
कहा फिर भी नही कि तू मुझे छोड़ चुका है।
अश्क आँखों में न बाकी रहे नमी है फकत,
एक एक कतरा रक्त का पहले निचुड़ चुका है।
बखाने-शान उसकी मेरे दिल में थी कहीं
वरना कहता न कभी वो मुझे छोड़ चुका है ।
मेरी हिम्मत को परखने की गुस्ताखी न हो
पहले भी कई तुफानो का रुख मोड़ चुका है ।
कभी शिकवे किसी से भी मैं करता न था ,
बात दीगर है ये गम मुझे तोड़ चुका है ।।
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