मंगलवार, 17 नवंबर 2015

तुम्हे न फिर से पाऊंगा

चाहे कितने आशु बहां लूँ
तुम्हें न वापस ला पाऊंगा।
चाहे कितना प्यार जता लूँ
तुम्हें न फिर से पा सकूँगा ।

मेरे प्राण भटक कर अब तो
इस दुनियां में रह जाएंगे
चाहें कितनी दुआ मना लूँ
तुम्हे न जीवित कर पाऊंगा।

पता नही यह मिलन हमारा
किसने जल जल कर देखा था
पता नही किसके शापों का
हमने ऐसा फल भोगा था ।

मेरा जीवन जिसमें बसता
पास नही वह बदन रहेगा
पता नही क्यों सृजन तुम्हारा
बस, इक मीठा सा धोखा था ।

चित्र तुम्हारे सिर्फ बचे हैं
तुम्हें न चित्रित कर पाउँगा
दिलों दिमाग में बसी हुई हो
भुला तुम्हे मैं न पाउँगा ।

हो सकता है कोई मूरत
गढ़ जाये अब इन हाथों से
हो सकता है तेरी सूरत
बन जाये अब इन हाथों से।

ताजमहल जब बन जाता है
हाथ कटाने ही पड़ते हैं
हो सकता है ताजमहल भी
बन जाये अब इन हाथों से।

चाहें कितनी बार मिटूँ मैं
तुम्हें न विस्मरत् कर पाऊंगा
जब ताकुंगा सुना नभ मैं
तुम्हें बही पर मैं पाउँगा ।

यह जीवन है एक पहेली
मृत्यु जिसकी अगम सहेली
किस्मत से ही हम मिलते हैं
किस्मत से ही दुनिया दहली

जाने कब हो मिलन हमारा
टूट रहा है नभ का तारा
जिसने देखा उससे पूंछो
हो जाती क्यों पलकें गीलीं

पिघल पिघल कर बह जाऊँगा
तुम्हें न वापस ला पाउँगा
चाहे कितना प्यार जता लूँ
तुम्हें न फिर से पा सकूँगा ।।

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