मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

इश्क कभी मरता नही -2

एक गाँव की समस्या 14 हजार लोगो के बीच की रुकावट बनी हुई थी।सरकारी पैसा मेरे किसी काम का नही था मगर हम सिर्फ उतना काम करना चाहते थे जितना उतने लोगों की समस्या हल हो सके। अगले दो हफ्तों के अन्दर वहाँ कन्स्ट्रक्शन से जुड़ा हुआ सामान वहाँ पहुँचा दिया गया मगर काम शुरु न हो सका। पहले दिन ड्राईवर बीमार हो गया,दूसरे दिन रोड रोलर का चक्का टूट गया।लगातार तीन चार दिन कुछ न कुछ होता ही रहा ।मुझे इस बात पे अक्रोश आ रहा था।आखिर मैंने खुद ही तय कर लिया की हो न हो मुझे ही उसकी शुरुआत करनी होगी।जो डर कर्मचारियों के बीच पैदा हो गया था उसे किसी भी तरह से खत्म करना था।इसलिए अगले ही दिन हमने खुद ही शुरुआत करते हुए उदघाटन कर दिया।गाँव बाले डर रहे थे ।डर क्या रहे थे बल्कि वो और कर्मचारियों में डर पैदा कर रहे थे।उसी शाम हम एक हादसे का शिकार हो गये।और कुछ दिनो के लिए विस्तारासीन हो गये।कर्मचारी काम छोड़कर भाग खड़े हुए।कच्चा माल गाँव बालों ने भर लिया।ब हम दो हफ्ते बाद वापस आये तो नजारा बदला हुआ था हम जैसा छोड़ कर गये थे उसके ठीक उल्टा वहाँ वहुत सार गढ्डे हो चुके थे।गाँव के कुछ लोग अधिक बीमार हो गये थे।वो लोग इस घटना को भी हमसे जोड कर देख रहे थे।हमारे हाथ फिर से निराशा लगी थी ।जानने पर ज्ञात हुआ कि वो परछाई अब वहुत सितम ढाने लगी है कल दिन दोपहर रास्तें से लोगों को नही निकलने दिया।अब तो हर शाम छ: के बाद ही उसका कहर छाने लगा था। मालूम नही ये कहानी मनगढत थी या सच ।लेकिन हम सच जरुर जानना चाहते थे बस इसीलिए हमने तय किया अब आज से रोज हम नियत समय पर उस स्थान पर आयेगें और खुद ही निरीझण करेगें। ------------*******-द-------------- ईटावा में अपने एक उदय को कॉल किया।उसे सारी घटना बताई और उसके घर पर रुकने का कार्यकृम तय किया।शाम को 6 बजे हमने उस गाँव की तरफ गाड़ी दौडा दी।स्वाभावगत अकेले ही सफर तय करने की आदत की बदौलत मुझे नही लगा कि किसी को हमें साथ लेकर चलना चाहिए बस इसीलिए मैं अकेला ही चल दिया।मैं वहुत ही शान्त स्वाभाव के लिए परिचित हूँ शायद इसीलिए मैं कभी असलाहों में विश्वास नही रखता ।इसीलिए हमने अब तक कोई हथियार न तो कभी खरीदा है और न ही कोई लाईसेंस ही बनबाया।मुझे पहले ही सचेत कर दिया गया कि दीक्षित सहाब ये यादव वहुल क्षेत्र है यहाँ दिन दहाड़े लूट हो जाती है इसलिए कभी खाली हाथ न चलें।मगर हमें अपने आप पर यकीन था।फिर भी हमने उनकी बात को मानते हुए मैंने टालीवर को अगली सीट पर रख लिया। मैं कोई तान्त्रिक नही हूँ और न ही किसी भी प्रकार की तंत्र विज्ञा का ज्ञान रखता हूँ लेकिन फिर भी मैं जा रहा था उससे मिलने जो अबरोध था।मुझे तो अब तक वो कुछ लोगों की साजिश ही लगती थी।कोई मनगढत कहानी सी।मेरा आज तक किसी से वास्ता नही पडा था शायद इसीलिए मुझे उतना यकीन नही था।शाम को 6 बजे हमने ईटावा से गाडी दौडा दी संध्या हो चुकी थी।अंधेरा घिर चुका था गाड़ी अपनी तेज रफ्तार से आंगे बढती रही।रास्ते में एक दो जानवरों की वजह से ब्रेक भी लगाने पडे मगर जल्द ही हम वापस उसी गति को प्राप्त करने में सफल रहे। मैं तयशुदा स्थान पर पहुँचा ।अजब सी शान्ति छायी हुई थी वहाँ।बस छींगुरों की आवाज।बगल में तेज रफ्तार में बहती नहर से आती पानी की आवाज।जो आंगे अवरोधक लगे होने की वजह से आ रही थी।वृक्ष पर रहने बाले पंक्षी वापस आ चुके थे। हम काफी वक्त तक गाड़ी के अन्दर बैठे रहे मगर हमारा किसी से कोई दीदार न हुआ।ऊपर चाँद की रोशनी में चमकते पीपल के पत्ते।और उसकी आकृति भयानक रुप में जरुर थे मगर इतने नही कि मेरा मन विचलित कर सकें।मैंने गाडी बन्द करदी और चुपचाप गाडी की रोशनी के सहारे सहारे कुछ दूरी तक पैदल चला और उसके बाद वापस आकर गाडी में बैठ गया। गाडी को साईड में लगाकर उसकी लाईटें बन्द करके खुद की आँखो को अंधेरे में देख सकने लायक अभ्यस्त करने लगा।लगभग दो घण्टें बीतने को हो गये।मगर मुझे कुछ भी समझ में नही आया। मैं काफी वक्त तक और इंतजार करता रहा,मगर मुझ पर भी नींद का असर छाने सा लगा था,मन वहलाव के साधन नही उपयोग कर सकता था शायद इसीलिए ऊब सी होने लगी थी।मैं खुद को जगाये रखने का प्रयास करने की कोशिश करने लगा।मगर सब नाकाम थी और मालूम नही कब नींद का झौंका आया और ......... मैं सो गया। अचानक एक तेज आवाज हुई आस -पास के पेड़ो से पक्षी जोर -जोर से आवाज करने लगा।मुझे लगा कुछ हुआ है ।इसलिए तेजी से गाडी की लाईट चालू की और उतर कर बाहर आ गया मगर सामने भी सुनसान रास्ता और अगल-बगल भी।तब तो शंका कुछ बढी सी मगर हम वहुत वक्त तक इंतजार करते रहे।मगर मुझे कुछ न दिखा और हम चुपचाप आकर गाडी में बैठ गये। समय देखा तो 12 बजकर चार मिनट हुए थे। दाऊ जी

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