मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

मैं अहसासो की धरती पर, फसल उगाता फिरता हुँ, एक कवि हुँ छोटा सो, अलख जगाता फिरता हुँ, जहाँ सो गई मसाले, हवन हुऐ राख के ढेर है, उन राखो के ढेरो में, आग जलाता फिरता हुँ, अपने उर उमंगो के सपनो से, नभ को रचता फिरता हुँ, जहाँ भूल गये लोग, अमर शहीदो के वलिदानो को, उनको याद दिलाता फिरता हुँ, बन एकता का दूत, जाति-धर्म भुलाता फिरता हुँ, में हुँ इस महान राष्ट्र का बासी, अमन की बात करता हुँ, अपने मन मन्दिर के भावो को, कागज पर लिखता हुँ, गौरव दीक्षित

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अंतर्द्वंद

मेरी सोची हुई हर एक सम्भावना झूटी हो गई, उस पल मन में कई सारी बातें आई। पहली बात, जो मेरे मन में आई, मैंने उसे जाने दिया। शायद उसी वक्त मु...