गुरुवार, 8 अक्तूबर 2015

जिंदगी_अब_भी_बाकी_है..

जिंदगी_अब_भी_बाकी_है..
एक समय मेरे लिए ‪#‎परफेक्ट‬ जगह सिर्फ ‪#‎लाइब्रेरी‬ हुआ करती थी. मैं अपने पसंदीदा ‪#‎घर‬ में एक ऊंची सी लाइब्रेरी बनाना चाहता था जिस तक पहुँचने के लिए सीढ़ी हो और मैं अपने दिन किसी कम्फर्टेबल ‪#‎सोफे‬ में धँसा हुआ किताबें पढ़ता रहूँ. किताबों को पढ़ना भी मजाक नहीं था. मुझे आज तक की पढ़ी हुई फ़ेवरेट किताबों के पन्ने पन्ने ‪#‎फोटोग्राफ‬ की तरह याद हैं. कुछ यूँ भी कि उन्हें कहाँ पढ़ा था.. किस समय पढ़ा था. ‪#‎मोमबत्ती‬ में पढ़ा था या ट्यूबलाईट में पढ़ा था. वगैरह.. नयी किताब के पन्नों की खुशबू ‪#‎पागल‬ कर देती थी उन दिनों. मगर अब बदल गयी हैं ‪#‎चीज़ें‬..
अब मैं क्या करूँ, एक समय था कि बिना रात को एक ‪#‎किताब‬ ख़त्म किये नींद नहीं आती थी. एक समय मैं सिर्फ तीन घंटे सोता था, लेकिन रोज़ की एक किताब का कोटा हमेशा ख़त्म करता था. एक समय मुझे पढ़ने से ज्यादा अच्छा कुछ नहीं लगता था. एक समय मेरे लिए "अच्छा महसूस होना" का मतलब होता था ख़ूब सारी ‪#‎धूप‬...भीगे हुए बाल...गले में लिपटा ‪#‎ईयरफोन‬ और एक अच्छी किताब. एक समय मुझे वे लोग बहुत आकर्षित करते थे जिन्होंने बहुत पढ़ रखा हो.. जो घड़ी घड़ी रेफरेंस दे सकते थे. उन दिनों मैं भी तो वैसा ही हुआ करता था.. कितने ‪#‎कवि‬.. कितने सारे नोवेल्स के ‪#‎कोट्स‬ याद हुआ करते थे. उन दिनों गूगल नहीं था. किसी को लव लेटर लिखना है तो याद से लिखना होता था. तभी तो मैं ‪#‎दोस्तों‬ का फेवरिट हुआ करता था चिट्ठियां लिखने के मामले में.
अगर तुझे लिखी चिट्ठियों को लव ‪#‎लेटर‬ ना कहा जाए और ये कहना शायद तुझे अब पसंद भी ना होगा.. तो ये और बदनसीबी रही कि कमबख्त ‪#‎जिंदगी‬ में एक भी.. एक भी.. ‪#‎लव‬ लेटर, किसी को भी नहीं लिखा. इस हादसे पे साला, डूब मरने को जी चाहता है. ‪#‎बहरहाल‬.. जिंदगी, बाकी है...!!

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