सोमवार, 29 अगस्त 2016

बफ्रेक उर्फ़ 'बनारस प्रेम कथा ......'

‪#‎बप्रेक‬ उर्फ़ 'बनारस प्रेम कथा.....'
तीन सौ साल नहीं..बात आज से तीन साल पहले की है.. उस समय सहिष्णुता अपने उच्चतम स्तर को क्रास करने के लिए मचल रही थी..समाजवाद फफा कर पसर रहा था...वामपंथ में दक्षिणपंथ ऐसे घुस गया था मानों बाजरे के खेत में साँड़ घुस गया हो....हाँ संघ अब संघ न रहा था...यहाँ तक कि सभी कामरेड सुबह सुबह गांजा पीने के बाद हनुमान चालीसा अवश्य पढ़ते थे...हिन्दू ,मुसलमान सिक्ख,ईसाई इतने प्रेम से रहते थे कि अल्पसंख्यक बहुसंख्यक को पुनः परिभाषित करने के लिए वाड्रा साहब के खेतों में स्थित पुदीने की बागान में एक सर्वदलीय बैठक बुला ली गयी थी.... देश में दंगा फसाद जैसे शब्दों के मायने लोग टार्च लेकर आक्सफोर्ड डिक्शनरी में खोजते थे....हमारा पीएम जब बोलता था तो लगता था कि इक्कीसवीं सदी में ऐसा महान वक्ता न हुआ न होगा....
पाकिस्तान ने गुलाम काश्मीर ससम्मान वापस देकर भारत सरकार को इस्लामाबाद में चाय बीड़ी,सिगरेट,कमला पसन्द की दूकान खोलने का ऑफर दे दिया था। और साथ ही ये भी कहा था कि यदि वाड्रा साहेब चाहें तो यहाँ के खेतों में भी पुदीने की खेती कर सकतें हैं।
और तो और...बोलने की आजादी इतनी थी कि मेरे मोहल्ले का पिंकुआ तक किसी के भी माँ बहन के नाम का तेज तेज स्मरण करने के लिए प्रेस कांफ्रेंस बुला लेता था।.. 
फ़िल्म रॉ वन को ऑस्कर में छत्तीस पुरस्कार मिले थे..हनी सिंह को शास्त्रीय संगीत में महत्वपूर्ण योगदान के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार दे दिया गया था।
उस वर्ष का नोबेल शान्ति पुरस्कार बराक ओबामा से छीनकर सिरिमती सनी लियोन को देने का फैसला किया गया था।
महंगाई की नानी का इंतकाल हुए दस दिन ही हुए थे...पेट्रोल पांच रुपया में सवा लीटर..आटा पचहत्तर पैसा में पौने तीन किलो..दाल तो नमक खरीदने पर ही फ्री मिल जाती था..और नगरपालिका दिन में दस बजे पानी की सप्लाई की जगह सरसों तेल की सप्लाई करता था. दारु खरीदने पर बीमा हो जाता था....देश में इतना न एफडीआई आ गया था कि सरकार ने देश की सभी सिमावों पर "नो एफडीआई" का बोर्ड लगा लिया था.. देश सोने की चिड़िया बनकर उड़ रहा था...क्यूट से रामराज्य में सभी लोग सुख शान्ति पूर्वक खेल रहे थे।
इसी भयंकर प्रेममय और रोमांटिक माहौल में एक अद्भुत घटना हुई....
हुआ क्या कि हमारे चनमन बाबू अपने बागी जिला बलिया पुत्तर प्रदेश से पीटाकर पढ़ने के लिए बनारस जिला में पधारे।
आपको बता दें चनमन बाबू के पापा सीरी बाबू जलेला उर्फ़ छनमन सिंग सभी मिडिल क्लास पापावों की तर्ज पर अपने बेटे को बीटेक्स करा के इंजीनीयर बनाना चाहते थे...लेकिन चनमन बाबू विद्रोही स्वभाव के...उन्हें बीटेक्स से घोर एलर्जी थी...एक दिन संयोग से वो सरस सलिल पढ़े और उनका झुकाव हिंदी साहित्य में हो गया...सो उन्होंने आगे चलकर साहित्य अकादमी प्राप्त लेखक बनने का सपना देखा....वो बहुते क्यूट थे..इतने प्यारे और भोले थे कि उनको देखकर कोई नहीं कह सकता था कि ये लौंडा अपने मम्मी पापा के मनोरंजन मात्र का रिजल्ट है... 
वो हिंदी साहित्य से एमएम कर चुके थे.....आगे जब करने को कुछ नहीं बचा ,न ही करने को कुछ मिला तो परम्परा के अनुसार सोचा कि क्यों न पीएचडी कर लिया जाय...
वो जानते थे की कुछ न करने से अच्छा है पीएचडी करना। 
एक दिन चनमन बाबू जब बनारस के पक्का महाल में खड़े होकर दूध पी रहे थे तभी एक अल्हड़ सी लड़की इनसे टकरा गयी..उस अल्हड़ को देखकर उनका कुल्हड़ धरासायी हो गया...लड़की का नाम पिंकी था..उस सुंदरी को देखने के बाद लगता था कि मानों उपर वाले ने आलिया भट्ट और श्रद्धा कपूर के साथ काजल अग्रवाल को मिलाकर अपने मिक्सर ग्लाइण्डर आन कर दिया हो....जो भी उसे देखता...देखता ही रह जाता था...चनमन बाबू के मनो मस्तिष्क पर उसका रूप लावण्य इस कदर छा गया था कि जब उसे देखते तो उनके दिल में राष्ट्रगान बजने लगता था.. वो जहाँ रहते खड़े हो जाते थे....
चनमन बाबू का प्यार माउंट एवरेस्ट चढ़ने लगा। .. उन्होंने रामराज्य को याद किया और सोचा क्यों न पीएचडी करने से पहले इस नाजनी से प्रेम कर लिया जाय..... 
सो शोध को रामराज्य के हवाले छोड़कर ढाई आखर प्रेम का पाठ पढ़ने के लिए उन्होंने उस लड़की के कोचिंग में एडमिशन ले लिया...
मितरो जैसा की आप जानते हैं कि आदमी प्यार में राहुल गांधी हो जाता है और जिंदगी कांग्रेस हो जाती है..हमारे चनमन बाबू भी प्यार में पप्पू हो गए थे...... करते कुछ थे हो कुछ जाता था.....बोलना कुछ और चाहते थे और मुंह से कुछ और निकल जाता था...कॉपी कलम किताब में मोदी ही मोदी की जगह सिर्फ पिंकी ही पिंकी दिखती थी....
वो अतवार के दिन भी पढ़ने के लिए कोचिंग पहुंच जाते थे....सजने संवरने के चक्कर में कई बार डियो की जगह रूम फ्रेशनर से भी काम चला लेते थे... प्यार में कालजयी कविता लिखने का प्रयास भी करने लगे थे..
"चले थे पीएचडी करने चनमन
ये तो पिंकी से इश्क कर बैठे..."
मल्लब कि इस दिल-ए-मरिज की हालात सीरिया की हालत से भी ज्यादा गम्भीर हो गयी थी....
पढ़ते पढ़ते छह महीना बीत चूके थे.....लेकिन इस प्यार के शोध प्रबन्ध की सिनाप्सिस ही अधूरी थी....समझ में नहीं आता था कि उस नाजनी से हाल-ए-दिल कहें तो किस तरह कहें.....
एक दिन हिम्मत करके चनमन बाबू घर से निकले और तेज तेज साईकिल चलाकर कोचिंग जरा जल्दी पहुंच गए...... 
और उधर से इठलाती बलखाती आ रही उस उस हुस्न की गाडी के आगे ब्रेक मारके परम रोमांटिकासन में कहा...
"आदरणीय पिंकी जी आपके इस अद्भुत अनुपम दिव्य सौंदर्य को देखकर मुझे रीतिकाल के सारे कवियों पर तरस आता है.....मने आप मुझे इतनी अच्छी लगती है की मन करता है की मैं भी अपना नाम पिंकी रख लूँ"।
बस क्या था पिंकी पिनक गई..और खूब तेज से जबाब देते हुए घर चल दिया...".एकदम आवारा हो..लुच्चे कहीं के..कोई काम नही..घर में माँ बहन नहीं..???"
चनमन बाबू को घोर निराशा हुई..साला रामराज्य में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार तक नहीं."..हाय...अरमानों के साथ ये मजाक... उन्हें यकीन हो गया की यही हाल रहा तो साल दो साल में फाँसीवाद आ जाएगा.....
लेकिन चनमन बाबू बागी बलिया जिला के बीर..हार नहीं मानने वाले थे...दो चार दिन लगातार उस हुस्न की गाडी का पीछा करने के बाद भी जब कुछ न उखड़ा..तो उन्होंने लड़की का फोन नम्बर जुगाड़ किया... 
और बड़े प्यार से फोन करते हुए कहा..
"पिंकी जी...इतना मैं भगवान के पीछे पड़ा होता तो वो भी आज द्रवित होकर हृदय से लगा लेते....आपको मुझपर दया नहीं आती..?"
पिंकी का दिल पसीजा...और उसने बड़े ही आध्यात्मिक होकर कहा..."देखिये चनमन बाबू मैं बहुत शरीफ लड़की हूँ..मेरे आलरेडी तीन तीन ब्वायफ़्रेंड हैं और तीनों देखने में एकदम रणबीर कपूर...तीनों आपकी तरह घास नहीं छिलते..तीनों बीटेक करतें हैं....
आया न समझ.?...आज से पीछा न करियेगा....मैं उसमें की नही हूँ...बाय..."
हाय....चनमन बाबू का सपना धुंआ धुंआ होकर अब बनारस के आसमान से फैलने लगा..न "खुदा ही मिला न विसाल ए सनम" टाइप फिलिंग लेकर उन्होंने राम राज्य के साथ अपने पिता चनमन सिंग उर्फ़ बाबू जलेला को खूब कोसा..."हाय पापा हम बीटेक्स क्यों न किये"...काहें हम हिंदी पढ़ने लगे..काहें मति मरा गयी थी..."
चनमन बाबू बड़े रोये और उस दिन लगा की रीतिकाल में कवि बोधा ने सही कहा था.......
"ये प्रेम के पन्थ कराल है जू
तरवारि के धार पर धावनो है"..
लिजिये उन्हें रोते हुए देखकर परम चरित्रवान झा जी से रहा न गया उन्होंने चनमन बाबू का उत्साहवर्धन किया और सलाह दे दिया.."अबे देखो वो इंग्लिश स्टाइल है यार...क्या ये सब आदरणीय पिंकी जी. बैकवर्ड कहीं के..अरे यार इंग्लिश में प्रपोज करो..."
चनमन बाबू को झा जी की बात समझ में आ गयी..
बस क्या था...एक दिन पिंकी आती हुआ दिखी....चनमन बाबू के इश्क का हुक्का जल उठा.....
उन्होंने पिंकी से कहा..."आई लभ यू सो मच पिंकी जी"
पिंकी ने हाथ में चप्पल निकाला और चनमन बाबू को दिखाकर कहा कि "आज से दिख गए तो पुलिस बुला लूंगी...आया न समझ..कमीने लुच्चा आवारा....अपना मुंह देखो हो कभी.... क्या समझते हो मुझे तुम...आयं?."
चनमन बाबू को काटो तो खून नहीं...सारा रीतिकाल अब भक्ति काल में बदल गया..चनमन बाबू का दिल टुकड़े टुकड़े हो गये.....राम राज्य से भरोसा उठ गया...उन्हें फाँसीवाद की आहट होने लगी....
वो खूब रोकर रामराज्य की ऐसी की तैसी किये और एक साहित्य अकादमी टाइप कविता लिखी....... जिसे सदी के दस महानतम कवितावों में गिना जाता है...
"महबूबा के हाथ में चप्पल दिखाई देता है
मेरा इश्क अब मुकम्मल दिखाई देता है।।

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