.लव (.Love)
दिनांकः- शुक्रवार, 16 अक्टूबर, 2015
समयः- सुबह के 11 बजकर 57 मिनट और 33.....34....35 सेकेण्ड.......!
स्थानः- स्वीडिश एकेडमी, स्टॉक होम, स्वीडेन।
आज का दिन ऐतिहासिक होने वाला था। जो भी घटना घटने जा रही थी उसका साक्ष्य बनने के लिये सूचना, संचार व समाचार विभाग से जुड़े बहुत सारे लोग स्वीडिश एकेडमी में आज इकट्ठा हुये थे। जिसमें नोबेल मीडिया, विकीपीडिया, ऐनसाइक्लोपीडिया, बी.बी.सी न्यूज, टाइम्स मैगज़ीन, वर्ड न्यूज़, गूगल न्यूज़ व फेसबुक और ट्यूटर जैसी चर्चित सामाजिक जालतंत्र विभाग(सोशल नेटवर्किंग साइट) से जुड़े लोग भी आज अपने छायाचित्र(फोटोग्राफिक) व चलचित्र(वीडियोग्राफिक) कैमरों के साथ अगले कुछ ही मिनटों में जारी की जाने वाली सूचना को संकलित करने को तत्पर थे। हर साल की तरह आज भी स्वीडिश एकेडमी साहित्य के लिये नोबेल पुरस्कार के विजेता का नाम घोषित करने वाली थी। सभी के कैमरों व माइक्रोफोन का केन्द्र उस बंद दरवाजे की तरफ था जो कभी भी खुलकर उनके सक्रिय होने का सांकेतिक कारण बन सकता था। हॉल में टंगी घड़ी की सूइयाँ सेकेण्ड दर सेकेण्ड सरकती जा रही थी।
'टिक्क्.....टिक्क्....टिक्क्.....'
किसी एक टिक्क् की आवाज पर सभी की उंगलियाँ हरकत में आ सकतीं थीं। इस बात की गणना करना काफी रोमांचक था कि वो कौन सा सेकेण्ड होगा जिस पर दरवाजे की चिड़चिड़ाहट की सर्वप्रथम ध्वनि सुनाई पड़ेगी। हॉल में बातचीत की फुसफुसाहट व सुगबुगाहट हर बीतते क्षण के साथ और भी पैनी और धारदार होती जा रही थी। जब घड़ी की सूईयों के अनुसार 12 बजने में कुछ ही सेकेण्ड शेष थे, उस वक्त हॉल में सिर्फ एक ही चीज की मध्यिम सी ध्वनि उभर रही थी-
'टिक्क्.....टिक्क्....टिक्क्.....'
इधर सेकेण्ड वाली सूई 12 पर विश्राम कर रही मिनट वाली समय सूचिका की पीठ पर एक सेकेण्ड के लिये रुकी और उधर-
'चईऊऊउ........'
मौनता में विलय होती हुई मध्यिम सी आवाज गूँजी।
स्वीडिश एकेडमी के लोग वाकई समय के बहुत पाबन्द थे। पहले से घोषित किये गये समय पर ही दरवाजा खुला।
काले रंग के लिबास में एक स्वीडिश अधिकारी प्रकट हुआ। उसके हाथ में सफेद रंग का एक लिफाफा था।
यही वो क्षण था जब हॉल में मौजूद हर व्यक्ति सक्रिय हो उठा।
चलचित्र चलने लगे, छायाचित्र बार-बार रोशनी का फव्वारा फेंकने लगे। रोशनी इतनी तेज और चमकदार थी मानों आसमान से बिजली की चकाचौंध फिसल रही हो। माइक्रोफ़ोन के स्पीकरों में मानों विधुत की सनसनाहट दौड़ पड़ी हो।
एकेडमी के बाहर खड़ी सैटेलाइट गाड़ियाँ विधुत-चुम्बकीय तरंगों का संप्रेषण करने में सक्रिय हो उठीं थीं।
विश्व के तमाम न्यूज चैनलों पर इसका सीधा प्रसारण देखा जा सकता था। एकेडमी के भीतर गूँजने वाली आवाज मानों पूरे विश्व के कण-कण को कम्पित करने लगी हो।
"नोबेल कमेटी के सर्वसम्मति से सन् 2015 का साहित्य का नोबेल पुरस्कार जाता है..................."
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3 अप्रैल से मई के बीच का कोई समय, 2015.
स्थानः- स्वीडिश एकेडमी, स्टॉक होम, स्वीडेन।
ये वो समय होता है जब एकेडमी में नामांकरण के लिये सम्पूर्ण विश्व से भेजे गये सैकड़ों नामों में से प्राथमिक विचारार्थ के तौर पर 15 से 20 नामों का चयन किया जाता है। इस बार साहित्य के लिये भेजे गये 240 नामांकरण में से प्राथमिक 17 का चुनाव किया गया। जिसमें अमेरिका, आस्ट्रेलिया, ग्रीस, ईजिप्ट, जर्मनी, न्यूजीलैंड, स्वीडेन, भारत, आयरलैण्ड, चीन, जापान, रूस, इटली, साउथ कोरिया, ब्राजील, डेनमार्क के साहित्यकारों का नाम चयनित किया गया था। इस बार अमेरिका से स्क्वायड रसल व डार्क वाइटमैन ये दो नाम प्राथमिक विचारार्थ के तौर पर चुने गये थे। ये थोड़े से विवाद का विषय इसलिये बना क्योंकि स्वीडिश एकेडमी के 18 सदस्यों में इस बार चार लोग संयुक्त राष्ट्र के थे। हर साल साहित्य के नोबेल पुरस्कार के चयन पर आलोचकों द्वारा बहस होती रही थी। इसका तात्कालिक प्रभाव ये पड़ा की कुछ प्रमुख देशों ने इस बार कोई नामांकरण नहीं भेजा। इसमें साइप्रस, नार्वे, पेरू व पोलैंड प्रमुख थे। स्वीडेन के राजा के लिये ये काफी क्षोभ का विषय था। नोबेल कमेटी विवादों से मुक्त होकर निष्पक्ष रूप से विजेता का चयन करें इसके लिये सभी 18 सदस्यों को राजा की तरफ से एक अनुरोध पत्र भेजा गया था। स्वीडिश एकेडमी के लिये ये काफी महत्वपूर्ण व गंभीरता की बात थी आखिरकार पुरस्कारों का आबंटन स्वयं राजा के हाथों से ही किया जाता था। उनके इस अनुरोध पत्र ने अंतिम निर्णय पर काफी गहरा प्रभाव डाला।
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मई का आखिरी सप्ताहांत, 2015.
स्थानः- स्वीडिश एकेडमी, स्टॉक होम, स्वीडेन।
चुने गये 17 प्राथमिक नामांकरण में से 5 नामों का चुनाव किया गया। चार नाम प्रमुख थे अमेरिका के स्क्वायड रसल, रूस के नाइस कोवेन्सकी, आस्ट्रेलिया के ब्राउन बैटमैन व भारत के वलय वैष। पांचवा नामांकरण था स्टॉकहोम में जन्मी एक स्वीडिश कवियित्री नियांशी नेबुल फेडोरा का। इनके नाम के चयन पर भी एक बहस बनी रही। लेकिन इसका निस्तारण विषयों के गहन अध्ययन के बाद किये जाने का फैसला लिया गया।
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सितम्बर के प्राथमिक 2 सप्ताह का कोई एक दिन, 2015.
स्थानः- स्वीडिश एकेडमी, स्टॉक होम, स्वीडेन।
एकेडमी के सदस्यों की आपसी मंत्रणा में चयनित लेखकों के द्वारा लिखे सभी पुस्तकों का गहन रूप से अध्ययन व विश्लेषण करने के पश्चात उनका मूल्यांकन करके प्राथमिकता तय की गई। ये प्राथमिकता ब्रिटेन की राष्ट्रीय पत्रिका द्वारा घोषित लेखकों की सूची व उनके द्वारा लिखी गई सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तकों की सूची से मिलती थी।
पहले नम्बर पर थे अमेरिका के स्क्वायड रसल। जिनके द्वारा लिखी गई 50 से अधिक पुस्तकों में से सबसे चर्चित पुस्तक थी 'लव इज़ अ अनलॉजिकल थिंग'। जिसका हिन्दी में मतलब है- प्यार एक कुतर्क (गैर जरूरी या न समझ में आने वाली चीज) है। इसमें एक वैज्ञानिक के प्रेम जीवन का चित्रण था जो अपने आविष्कार के लिये अपनी सुन्दर बीवी को इसलिये त्याग देता है क्योंकि कामुक भावनाओं के अधीन उसका दिमाग अपने कार्य से भटक जाता है। एकाकी अवस्था में वो अपना सम्पूर्ण समय अपनी खोज को समर्पित कर देता है। अंततः जब वो सफल होता है तब उस खोज का नाम अपनी बीवी के उपनाम पर रखता है- सिकोन। लेकिन अब वो इस दुनिया में नहीं थी। उसने वो हासिल किया जो वो हासिल करना चाहता था लेकिन इसकी कीमत उसे चुकानी पड़ी। उसे लगा कि उसने मानवता कि भलाई तो की, लेकिन एक मानव की बलि चढ़ा कर। उसके प्रेम का तिरस्कार करके। मानवता उसे उसके आविष्कार के लिये कभी-कभार याद कर लेगी लेकिन जिसकी यादों में वो हर पल बसता था आज वो खुद उसके लिये सिर्फ एक याद बन चुकी थी। आप जीवन में किये गये एक चुनाव को अपने किसी दूसरे चुनाव के लिये नहीं छोड़ सकते। जिस चीज को आप निभा न सको उसका चुनाव करने का आपको हक नहीं। सिकोन मेरा पहला चुनाव थी। दूसरा चुनाव था मानवता के लिये मेरा आविष्कार। दूसरे चुनाव की महत्वपूर्णता मेरे पहले चुनाव को त्यागने का अधिकार मुझे नहीं देती। क्या मेरे आविष्कार को आप खूनी आविष्कार नहीं कहेंगे? क्या मैं एक अपराधिकी मानसिकता का वैज्ञानिक नहीं हूँ? क्या मुझे फाँसी पर नहीं चढ़ा देना चाहिये? अंततः वो एक मुकदमा दायर करता है, स्वयं खुद पर, अपनी पत्नी के हत्यारा होने का। अदालत ये कहकर उसे मुक्त कर देती है कि तुम्हारी बीवी की हत्या का कारण उसकी कमजोर मानसिक अवस्था थी। अंत में अपराध बोध से ग्रस्त होकर अपने आविष्कार से प्राप्त सम्पूर्ण धन राशि को ऐसी स्त्रियों के लिये दान कर देता है जो पुरूषों के द्वारा किसी वजह से त्याग दी गई थी।
दूसरे पायदान पर थे रूस के नाइस कोवेन्सकी जिनके द्वारा लिखी गई 42 पुस्तकों में से सबसे चर्चित पुस्तक रही 'किल योर सेल्फ विफोर यू किल समवन', जिसका हिन्दी में मतलब है किसी को मारो उससे पहले खुद को मार दो। इसमें रूस के एक अज्ञात राजा लाउद वेतनोविक की कहानी थी। जो पूरे रूस पर शासन करने के लिये कई राजाओं, राजकुमारों व सामंतों को मौत के घाट उतार कर उनके राज्य को अपने में विलय कर लेता है। अंत में उसे अहसास होता है कि साम्राज्य तो बढ़ता जा रहा है लेकिन उसके चाहने वाले निरन्तर घटते जा रहे हैं। अपने विशाल साम्राज्य में अपने ही लोगों के बीच वो खुद को तन्हा पाता था। अंत में उसके मंत्रियों की साजिश से उस पर देशद्रोह का आरोप लगाकर उसे कारागार में बंद कर दिया जाता है। स्वयं को तन्हा और बेबस पाकर उसे इस बात का ज्ञान होता है कि जिस भावना और महत्वाकांक्षा के अधीन वो साम्राज्य का विस्तार करता जा रहा था। उसी तरह उसके साथ रहने वाले मंत्रियों की महात्वाकांक्षायें व क्षमतायें बढ़ती जा रहीं थीं। जो अंततः उसके लिये घातक सिद्ध होतीं हैं। किसी लालच में आकर जब आप कोई चीज हासिल करते हैं तब आपके साथ जुड़े लोग भी उस लालच से संक्रमित हुये बिना नहीं रह सकते। अतः सावधान! अपनी लालच और महत्वाकांक्षा के अधीन किसी की जान लेकर अपने साथ जुड़े लोगों के गुप्त मनो भावों को उकसाने से बेहतर है स्वयं अपनी हत्या कर लो। आप किसी एक की हत्या करेंगे लेकिन उस हत्या से प्राप्त फल का लालच आपके साथ जुड़े 100 लोगों को हत्या करने के लिये प्रेरित करेगा। जिसका शिकार आप भी हो सकते हैं। आप जो कृत्य करके साधन जुटाते हैं लोग वहीं कर्म करने के लिये स्वतः प्रेरित हो जाते हैं। इसलिये आपको क्या करना है इसका चुनाव आपको दूरगामी प्रभाव देखकर करना चाहिये। न कि तात्कालिक और क्षणिक साधनों को देखकर। इसी दौरान वो अपने अनुभवों को कलम बद्ध करके एक पुस्तक को अस्तित्व देता है- 'किल योरसेल्फ बिफोर यू किल समवन'। किताब के आखिरी पृष्ठ को समाप्त करने के पश्चात वो लेखनी को अपने दिल में घुसा कर अपने प्राण हर लेता है।
तीसरे नम्बर पर थे आस्ट्रेलिया के ब्राउन बैटमैन जिनके द्वारा लिखी गई 37 पुस्तकों में से सबसे प्रभावित करने वाली किताब थी-- 'हाउस ऑफ कलर्स'। कहानी ब्रिटेन के एक चित्रकार की थी। जिसका नाम था मिस्त्री फ्राउस लिवान्स। वो इंसान रंगों को महसूस करता था। जो रंग उसे महसूस नहीं होते थे उनका वो अपनी चित्रकला में प्रयोग नहीं करता था। लाल व पीले ऐसे दो रंग थे जिनको उसने पिछले 15 सालों से महसूस नहीं किया था। इन दोनों के पीछे एक बड़ी ही करुण और मार्मिक कहानी छुपी थी। लाल रंग के प्रति उसकी संवेदनशीलता इसलिये खत्म हो गई थी क्योंकि उसका बड़ा बेटा थामस लिवान्स, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान मारा गया था। अपने बेटे की छत-विछत लाल खून से सनी लाश देखकर, वो बेहोश हो गया। जब वो होश में आया तो लाल रंग के प्रति उसकी अनुभूति खत्म हो चुकी थी। पीले रंग के पीछे भी ऐसी ही एक हृदय विदारक कहानी थी। वो जिस समाज में रहता था वहाँ के लोग कट्टर कैथोलिक थे और उससे और उसके परिवार से इसलिये क्रोधित थे क्योंकि उसने अपनी एक चित्रकला में भगवान ईशा मसीह को उल्टा लटका हुआ चित्रित किया था। इसके पीछे फ्राउस ने ये तर्क दिया था कि इस चित्र की रचना उसने अपने एक स्वप्न से प्रेरित होकर की थी। जिसमें प्रभु ईशु उससे ऐसा करने के लिये कहते हैं। जिसका सांकेतिक मतलब ये था कि प्रलय आने वाली है। तब उसे ये नहीं पता था कि वो प्रलय दूसरे विश्व युद्ध से पहले स्वयं उसके जीवन में आ जायेगी। एक रात जब वो एक प्रदर्शनी से वापस लौटा तब अपने घर और उसमें रहने वाली अपनी वीबी और शेष बची एकलौती संतान को जलते हुये देखा। अग्नि की पीली लपट उसके दिमाग में मूर्छा की तरह छा गई। होश में आने पर वह पीले रंग के प्रति अपनी अनुभूति भी खो चुका था। लेकिन इस घटना ने उसकी ईशा मसीह की उल्टी लटकी चित्रकला को बहुत अधिक मशहूर बना दिया। जिसे खरीदा महारानी विक्टोरिया के पौत्र जार्ज पंचम ने और उसे स्थापित किया वहाँ, जहाँ उनकी दादी माँ ने सबसे पहले निवास किया था यानि बकिंघम पैलेस। लेकिन एक दिन वो पेंटिंग चोरी हो गई। कहाँ गई? किसी को नहीं पता, बस एक अफवाह उड़ी कि वो आखिरी बार हिटलर के निवास स्थल 'बेरगोफ' के 'ग्रेट हॉल' में देखी गई थी। अपनी अद्भुत चित्रकलाओं से उसने जो भी धन अर्जित किया उससे उसने सुनसान राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे एक सुन्दर सफेद रंग का विशाल घर बनवाया। घर के भीतर काले रंग का एक विशाल डायनिंग हॉल था। जिसमें हर चीज काले रंग की थी। कुर्सियाँ, मेज, मूर्तियाँ, घड़ी इत्यादि सब कुछ आबनूस की काली लकड़ी से बने हुये थे। छत पर टंगे झूमर में काले रंग के क्रिस्टल लगे थे। दिवालों पर काले रंग के पेन्ट। फर्श पे काले रंग का इटालियन मार्बल। इस विशाल हॉल में जो कुछ भी था वो सब काले रंग का था लेकिन अकेले रहने के बावजूद उसने ऐसे 12 कमरों का निर्माण करवाया जो बिल्कुल एक जैसे थे। फर्क सिर्फ उनके रंग का था। हर कमरे का रंग अलग-अलग था। जैसे- नारंगी, गुलाबी, मेहरून, नीला, आसमानी, हरा, धानी, कत्थई इत्यादि। कारण था क्यों? ये भी उसके एक स्वप्न पर आधारित था। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान एक दिन उसी राजमार्ग से गुजरते हुये कुछ लोगों का एक दल उसके घर में शरण के लिये आता है। ये संयोग की बात थी कि उनकी संख्या भी 12 ही थी। उन लोगों की ये बातें सुनकर कि कल सुबह जनसभा को सम्बोधित करने के दौरान महाराजा जार्ज-VI की हत्या की जाने वाली है, फ्राउस ने एक कठोर निर्णय लिया। उन सभी को अपने घर का एक-एक कमरा ठहरने के लिये दिया। रात को जब वो लोग सो गये तो बाहर से कमरों को बंद करके उसने पूरे घर को आग लगा दी और खुद को काले रंग के विशाल हॉल में बंद कर लिया। काश की कोई जान पाता कि फ्राउस ने इस घटना के कुछ संकेत अपने स्वप्न में कई साल पहले से ही देख लिये थे। उसने सिर्फ आज के दिन के लिये ही इस घर का निर्माण करवाया था। सुबह तक वो घर जल कर एक खण्डहर में बदल चुका था। ये बात किसी को नहीं पता चल सकी कि रंगों से इतना प्रेम करने वाले एक सच्चे देशभक्त ने अपने जीवन के आखिरी समय में चुना भी तो स्याह काला रंग जिसे रंगहीन माना जाता है, लेकिन अपने अंतिम क्षणों में उसने काले रंग के कफन में देश पर छाने वाली कालिमा को समेट लिया था।
चौथी श्रृंखला पर थे भारत के वलय वैष। जिनकी अभी तक कुल 11 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकीं थीं। लेकिन स्वयं के जीवन को इंगित करने वाली उनकी पहली किताब थी 'इनटेलीजेन्स इज़ नाट अ की फॉर सक्सेस'। जिसका हिन्दी में मतलब था- बुद्धिमत्ता या तर्क ही सफल होने की कुंजी नहीं है। जो अभी तक सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तकों की श्रेणी में सबसे ऊपर थी। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि आने वाले कुछ ही सालों में बिक्री को लेकर उसका नाम गिनीज़ बुक ऑफ वर्ड रिकार्ड में आ जायेगा। इसमें एक ऐसे इंसान की कहानी थी जो हर कार्य अपने तरीके से और अपने तर्कों पर करना चाहता था। वो चाहता था वो जो कुछ भी करें उसके साथ उसका नाम अवश्य जुड़ा हो। वह अपने तर्कों से हर गलत चीज को भी सही ठहरा देता था। जिन्दगी के ऐसे ही कुछ साल संघर्ष करते हुये बीते। उसने हर वो काम करके देखा जो उसे आत्मिक रूप से संतुष्टि प्रदान करते थे। लेकिन उसमें उसे कोई सफलता नहीं मिल सकी। ये वो अवस्था थी जब अपना मनचाहा काम करके किसी हद तक वो संतुष्ट तो था लेकिन सफल नहीं। अंततः उसके जीवन में प्रेम का पदार्पण होता है। प्रेम की एक कढ़वी सच्चाई ये है कि वो आपसे आपके विचारों की स्वाधीनता छीन लेती है। दूसरे के विचार आपके फैसलों को प्रभावित करने लगते हैं। लेकिन प्रेम के मखमली अहसास को भुगतने के लिये लोग ऐसा करते हैं। उसने भी यही किया। अपने जीवन के फैसलों और विचारों को बदल कर एक नये सिद्धान्त पर जीवन को बहने के लिये छोड़ दिया। अभी तक स्वाधीनता से अपने मन के मुताबिक काम करने वाला इंसान अब एक कम्पनी में एक नौकर की हैसियत से था। यहाँ पर हर वो चीज उसे मिली जो एक इंसान को चाहिये जैसे- पैसा, कार, घर और जीवन को सरलता से जीने के लिये हर सुख-सुविधा और ऐशो आराम। बस एक ही चीज नहीं थी, उसका नाम नहीं था। उसके काम करने की आजादी नहीं थी। उसके विचारों की स्वतंत्रता खो चुकी थी। उससे जुड़ा रहने वाला हर इंसान उससे खुश था। उसकी प्रेमिका, उसके घर वाले, यार-दोस्त सभी। लेकिन वो खुश नहीं था। ये उस इंसान की दूसरी अवस्था थी जब वो सफल तो था लेकिन अपनी सफलता से संतुष्ट नहीं। ये सफलता उस व्यक्ति को नहीं मिली थी जो वो था बल्कि उसके भीतर छिपे ऐसे व्यक्तित्व को मिली थी जिसे वो पसंद नहीं करता था। अपने अस्तित्व को बदल कर प्राप्त की गई सफलता किस काम की। जीवन उसका था लेकिन वो किसी और की खुशियों के लिये जी रहा था। क्या ऐसा कोई साधन नहीं था, ऐसा कोई तरीका इस ब्रह्माण्ड में नहीं था जिससे स्वयं भी खुश रहे, उससे जुड़े लोग भी और सम्पूर्ण मानवता भी। आखिरकार उसके प्रेम ने ही उसे इस दुविधा से मुक्त करवाया। उसे ये विचार देकर कि उसे अपने अनुभवों को कलम बद्ध करना चाहिये। इस प्रोत्साहन से प्रेरित होकर उसने अपने सारे अनुभवों को शब्द रूप में लिखकर एक पुस्तक की रचना की। 'इनटेलीजेन्स इज़ नाट अ की फॉर सक्सेस' इसी प्रोत्साहन की उपज से ही अस्तित्व में आया था। जिसका आधार था कि सिर्फ तर्क आपको सफलता की संतुष्टि नहीं दिला सकते बल्कि आपके तर्कों का अनुभव में बदलना जरूरी है। ऐसा तभी होता है जब आप कई जगह अपने तर्कों को परास्त होते हुये और कुतर्कों को मुस्कुराते हुये देखते हैं। आपको सच का एक ऐसा रूप दिखता है जहाँ पूरी दुनिया तर्कों के आवरण में घिरी तो रहती है लेकिन समाज की कार्य-प्रणाली में कुतर्क मजबूत धागों की तरह गुंथे हुये हैं। पूरी तरह तर्क पर आधारित दुनिया एक काल्पनिक दुनिया है। जहाँ सफलता सिर्फ उन्हीं को मिलती है जो वाकई में उसके हकदार हैं। कुतर्की लोग सफल तो हैं लेकिन वो संतुष्ट नहीं है। पर वो सफल भी क्यों है? इसका जवाब पाना बहुत ही मुश्किल है। तब आपको भाग्य नामक एक विचित्र और समझ में न आने वाले शब्द का सहारा लेना ही पड़ता है। बस गनीमत ये है की कर्म से आप इस न समझ में आने वाले भाग्य को परास्त करने का प्रयास कर सकते हैं। यही आपके पास आखिरी और एकलौता माध्यम है। कर्म से तर्क अनुभव में बदलता है और वही आपको सफलता और संतुष्टि दोनों दिला सकता है। तब उसे पता चला की सफल होना बस एक भ्रम है। अपने अनुभवों के साथ जीना ही अपने अस्तित्व के साथ जीना है और वही जीवन का लक्ष्य है। ऐसे कठोर अनुभवों से परिष्कृत इस किताब को प्रचारित होने में थोड़ा समय अवश्य लगा। लेकिन पानी की तरह तर्क भी स्वतः ही बहने का रास्ता ढ़ूढ़ लेता है जिसे किनारा देती हैं मानवीय भावनाएं। ये किताब युवा वर्ग ने हाथों हाथ ली। आलोचकों को भी अपनी ओर अकृष्ट किया और अब नोबेल कमेटी में ये किताब छपने के 2 साल के बाद नामांकन के लिये भेजी जा चुकी थी। इस किताब में किसी भी युवा की सोच को सकारात्मक दिशा में ले जाने की पूरी काबिलियत थी।
इसके अतिरिक्त पाँचवी दावेदार थी स्टॉक होम में जन्मी एक स्वीडिश कवियित्री नियांशी नेबुल फेडोरा। जिनकी 30 से अधिक पुस्तकें अलग-अलग भाषाओं में कई देशों में प्रकाशित हो चुकीं थीं। उनकी कविताएँ प्राकृतिक-मानवीय सौन्दर्य वाद और अधि कल्पित सुन्दर आदर्श चरित्रों से भरी रहतीं थीं। उनकी पहली किताब तब प्रकाशित हुई थी जब वो मात्र 17 साल की थीं। किताब में एक घास से बने झोपड़े का जिक्र था जिसे एक सफेद बालों और हरी आंखों वाली लड़की ने इसलिये बनाया था ताकि आते-जाते राहगीर उसमें विश्राम कर सके। ऐसी ही चिलचिलाती गर्म धूप में एक दिन सफेद घोड़े पर एक राजकुमार वहाँ से गुजरता है और उस सुन्दर झोपड़े में पूरा दिन गुंजारता है। ये अहसास उसके लिये अद्भुत था। उसने हर किलोमीटर पर इस तरह के झोपड़ों को बनवाने की घोषणा कर दी। पर आज तक उसे ये नहीं पता चला पाया कि उस घास के झोपड़े को बनवाया किसने था? एक दिन उसकी मुलाकात उस लड़की से एक फूलों से भरी वाटिका में होती है। बरसात के दिन थे और उसने उसे फूलों की पंखुड़ियों से चूती हुई पानी की बूँदों में भीगते हुये देखा। उसके मन में उस लड़की को छूने की हसरत पैदा हुई लेकिन जैसे ही वो उसे छूने को हुआ वह ओस में बदलकर घास की पत्तियों पर बिखर गई। एक 17 साल की लड़की की इस अद्भुत परिकल्पना ने नियांशी को आलोचकों की प्रशंसा का पात्र बना दिया। उसके बाद हर किताब वक्त और उम्र की परिपक्वता के साथ-साथ अधिक गंभीर और वैचारिक पूर्ण विषयों पर आधारित होने लगी। लेकिन काल्पनिक चरित्र हर काव्य का अभिन्न हिस्सा अवश्य रहे। नियांशी की सबसे अद्भुत प्रतिभा ये थी कि वो घटनाओं के कथात्मकता को काव्य रूप में बड़े ही सुन्दर और भावनात्मक रूप से चित्रित करतीं थीं। उनके समकालीन ऐसे किसी भी साहित्यकार में ये अद्भुत प्रतिभा नहीं थी। नोबेल पुरस्कार यदि उनको मिलता तो ये उनकी साहित्यिक अभिव्यक्ति को समर्पित होता न कि उनके विषयों को।
लेकिन 8 सितम्बर की आखिरी स्वीडिश एकेडमी की बैठक में सर्वोच्च पाँच की जगह चार का ही नाम चुना गया। जिसमें इनका नाम सभा में उपस्थित लोगों के अधिमत से हटा दिया गया। नोबेल पुरस्कार किसी व्यक्ति की विशेष रचना को नहीं बल्कि उसके द्वारा रची गई सम्पूर्ण रचनाओं को ध्यान में रखकर, लेखक के व्यक्तित्व व उसके मानव हित को समर्पित विचारों को पुरस्कृत किया जाता है। लेकिन अब तक विचारणीय लेखकों की चर्चित पुस्तकों के सामने ये काव्यात्मक अभिव्यक्तियाँ कितनी मानव हितकारी थीं, ये एकेडमी के सदस्यों व आलोचकों के लिये बहस का विषय था।
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तारीख़:- गुरूवार, 10 दिसम्बर, 2015.
समयः- दोपहर के 11 बजकर 15 मिनट,
स्थानः- स्वीडिश एकेडमी, स्टॉक होम, स्वीडेन।
ये एक बड़ा सा भव्य हाल था जिसमें दुनिया के कुछ विशिष्ट और महान लोग उपस्थित थे। अखबार और इलेक्ट्रानिक मीडिया आज होने वाले नोबेल पुरस्कार के वितरण समारोह का फ़िल्मांकन व सीधा प्रसारण करने को उपस्थित थे। अभी तक भौतिकी, रसायन, चिकित्सा शास्त्र, अर्थशास्त्र पर नोबेल पुरस्कारों का वितरण बड़े ही धूमधाम तरीके से किया जा चुका था। स्वीडेन के राजा, रानी व उनकी सुपुत्री अर्थात् राजकुमारी इस सभा में प्रति वर्ष की तरह उपस्थित होकर नोबेल पुरस्कार की गरिमा को बढ़ा रहे थे। प्रत्येक पुरस्कार राजा द्वारा विजेता को समर्पित किया जाता था। जिसमें एक मेडल, व्यक्तिगत डिप्लोमा व सुनिश्चित धनराशि सम्मिलित होती थी। इस दौरान सेक्साफोन, वाइनिल व ओपेरा का मधुर संगीत वातावरण को भव्य व अद्भुत बना देता था। त्रिकोणीय कॉन्सर्ट हॉल की विशालता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता था कि उसमें उपस्थित लोगों की संख्या सैकड़ों में थी। एक तरफ विशाल बैन्ड, दूसरी ओर नोबेल मीडिया का पूरा आधिपत्य ताकि हर क्षण को फ़िल्मांकित करके ऐतिहासिक बना दिया जाय। काले लिबास व शान्त मुद्रा में बैठे वैज्ञानिक, दार्शनिक, लेखक, कवि, वाणिज्यकार, आलोचक, राजनेता इत्यादि विशेष गणमान्य लोग उपस्थित थे। अब शेष था तो आखिरी नोबेल पुरस्कार का वितरण, जो साहित्य के लिये दिया जाने वाला था।
एक संक्षिप्त भाषण में साहित्य के नोबेल पुरस्कार के दिये जाने का कारण प्रस्तुत किया गया-
"हम मनुष्यों ने अपने समय को तीन भागों में बाँट रखा है। भूत, वर्तमान और भविष्य। भूत यानि इतिहास......हमें गलतियाँ करने से रोकता है। ये हमें ज्ञान देता है। अथाह विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव करना सिखाता है। वर्तमान वो प्रयोगशाला है जहाँ हम भविष्य के लिये कुछ उपयुक्त और महत्वपूर्ण की रचना करने में शोध करते हुये व्यतीत करते हैं। हमारी गलतियाँ हमारा भूतकाल बन जाती हैं जिसे हम चाह कर भी बदल नहीं सकते और हमारी उपलब्धि हमारे भविष्य का श्रृजन करती है जिसमें परिवर्तन होने की गुंजायश हमेशा रहती है। भारत के वलय वैष उन लेखकों में से एक हैं जिन्होंने अपने जीवन को प्रतिबंध मुक्त करके उसे 'ऐसा भी करके देखा जाय' इस संदर्भ में एक प्रयोगशाला में परिवर्तित कर लिया। जिसे सतही स्तर पर देखा जाय तो हम कहेंगे जीवन से खिलवाड़ करना। लेकिन इस बात की उपलब्धि ये है कि इन्होंने अपने जीवन में किये गये फैसलों से प्राप्त अनुभवों को संग्रहित करके उसे मानवता को समर्पित किया। ताकि आज के युवा ये जान सके कि ऐसा करके देखने पर क्या हो सकता है? प्रत्येक अनुभव का एक मूल्य है। कुछ मूल्य चुकाये जा सकते हैं और कुछ नहीं। मुझे व्यक्तिगत रूप से एक बात ने बहुत प्रभावित किया है कि जीवन तर्क से ही शुरु होता है, समाप्त भी तर्क पर ही होता है लेकिन तर्क पर ही जिया गया जीवन मृत जैसा है। हम जीवित ही इसलिये हैं कि अपने विचारों से तर्क का विरोध कर सकते हैं। जीवन में लिये गये कुछ गलत फैसले इस बात का संकेत हैं कि हम मशीन नहीं बल्कि भावनाओं से संचालित एक इंसान हैं। प्रेम उनमें से एक है। ये वलय वैष द्वारा प्रमाणित व खोजे गये जीवन के कुछ अमूल्य सिद्धांतों में से एक हैं। इन्होंने जो कुछ भी लिखा है हम उसे मानवीय जीवन का सैद्धांतिक साहित्य कह सकते हैं। सरकार ने विज्ञान के प्रत्येक पहलू का परीक्षण करने के लिये प्रयोगशाला बनवाई हैं लेकिन जीवन के प्रत्येक फैसले का भविष्य में क्या परिणाम प्राप्त होगा इसे जानने का कोई साधन उपलब्ध नहीं करवाया। वलय वैष की सभी पुस्तकें जीवन की प्रयोगशाला में हर निर्णय का भविष्य पर पड़ने वाला व्यापक प्रभाव दिखलाती है। आने वाली युवा पीढ़ी अवश्य ही इन निष्कर्षों से बहुत कुछ सीखेगी एवं बेहतर चुनाव करने में उनकी मदद करेगी। साहित्य का ये नोबेल पुरस्कार जीवन में प्रत्येक अनुभव के शोध, संकलन व परिष्करण के लिये सम्मानित व समर्पित किया जा रहा है। मैं अनुरोध करता हूँ कि वो ब्लू कार्पेट पर चलते हुये नोबेल सर्कल तक आये और स्वीडेन के राजा के हाथों से ये सम्मान ग्रहण करें। "
प्रत्येक व्यक्ति अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ। तालियों के कम्पित कोलाहल के मध्य काले परिधान में वलय वैष नीले कार्पेट पर चलते हुये सफेद रंग के वृत्त में बने अंग्रेजी के 'N' अक्षर तक पहुंचे इसी समयान्तराल में राजा भी उस वृत्त के क्षेत्रफल में उपस्थित हो चुके थे। इधर हाथ मिले उधर मधुर संगीत का भव्य ओज उमड़ा। छायाचित्रों ने इस क्षण को अपने में स्मृत कर लिया। हिन्दी साहित्य की आज पुनः जीत हुई थी। भाषा की नई परिभाषा को सृजित किया था इस पुरस्कार ने। शब्द-शिल्पी होने का सबसे बड़ा सम्मान। वैश्विक स्तर पर मानवीय अस्तित्व की सकारात्मकता की प्रामाणिकता सिर्फ इसी पुरस्कार से ही हो सकती थी। साहित्य का नोबेल पुरस्कार। हर साहित्यकार का अंतिम दिवास्वप्न।
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समयः- सोमवार,7 सितम्बर, 2015.
स्थानः- स्वीडिश एकेडमी का नोबेल लैक्चर हॉल, स्टॉक होम, स्वीडेन।
आज से ठीक तीन दिन बाद सभी नोबेल विजेताओं को स्वीडेन के राजा के हाथों से नोबेल पुरस्कार भेट किया जाने वाला था। ये वो समय है जब सभी नोबेल विजेताओं का नाम घोषित किया जा चुका है। साथ ही सभी आज एक नोबेल भाषण के लिये इस सभा में उपस्थित हुये हैं। एक तरफ महिलाओं का पूरा समूह वाध-यंत्रों के साथ उपस्थित था। एक मधुर संगीत के साथ इस सभा की शुरुआत की गई। पियानो वादन का एक संक्षिप्त दौर चला। फिर स्वीडिश एकेडमी के स्थाई सेक्रेटरी ने एक सम्बोधन भाषण दिया। एक-एक करके सभी नोबेल विजेताओं से अपनी इस उपलब्धि पर एक भाषण देने को कहा गया। शुरुआत हुई भौतिकी के नोबेल पुरस्कार विजेता से। फिर रसायन, शरीर विज्ञान व वाणिज्य के नोबेल विजेताओं ने अपना भाषण समाप्त किया। तालियों का शोर जब थमा तो यही अनुरोध साहित्य के नोबेल पुरस्कार विजेता वलय वैष से भी किया गया। जिसको अपना सम्मान मानते हुये उन्होंने कहना शुरू किया-
"जब से ये घोषित हुआ है कि इस साल का नोबेल पुरस्कार मुझे दिया जायेगा तब से एक बड़ी भारी जिम्मेदारी मैं स्वयं व अपने शब्दों के प्रति महसूस करने लगा हूँ। एक अजीब सा डर मुझे सताने लगा है कि कहीं सम्मानित किये जाने से पहले किसी सभा में मेरे मुँह से कुछ ऐसा न निकल जाय जिसके किसी नोबेल विजेता के मुँह से निकलने की सम्भावना काफी काम हो। इतनी बड़ी जिम्मेदारी मैंने अपने जीवन में कभी महसूस नहीं की। ऐसा प्रतीत होने लगा है कि मेरे मुँह से निकला हर एक शब्द साहित्य समझ लिया जायेगा। घोर दुविधा है। मेरे मुँह से गुस्से में कोई गाली निकाल गई तो? गालियों को साहित्य की श्रेणी में देखना और सोचना काफी विवादास्पद होगा। जिस चीज की रचना आपने न की हो भला वो आपका साहित्य क्यों कहा जायेगा।"
महिलाओं के साथ पुरूषों का कंठ भी हास्य ध्वनि से कम्पित हो उठा। इसे किसी की शरारत कहाँ जायेगा या व्यंग्य भाव को श्रद्धान्जलि कि किसी एक सामूहिक वादक की वायलिन बज उठी। सब की निगाहें उधर ही उठ गई। वादक थोड़ा सा सहमा। लेकिन थहाकों की एक और किस्त ने उसको मुस्कुराने पर बाध्य कर दिया।
"सबसे ज्यादा प्रश्न मेरी सबसे अधिक चर्चित किताब 'इनटेलीजेन्स इज़ नाट अ की फॉर सक्सेस' के बारे में पूछा जाता है। बहुत सारे लोग ये जानना चाहते हैं कि तर्क का वास्तविक मतलब क्या है? भावनाएं तर्क से अलग कैसे हैं? मैं जो अभी बोलने जा रहा हूँ इसे कहीं न कहीं मैं अपने किताब के नये संस्करण में ज़रूर सम्मिलित करुंगा।"
"अपनी किताब की विक्री बढ़ाने की ये आपकी साजिश जान पड़ती है। हर संस्करण में आप कुछ नया लिखेंगे ताकी लोग फिर से आपकी किताब खरीदे।"- भौतिकी के नोबेल पुरस्कार विजेता ने एक व्यंग्य बाण छोड़ा।
"मैं उम्मीद करता हूँ कि आप मेरी इस साजिश का शिकार नहीं बनेंगे। वैसे ऐसा करके मैं आपके भौतिक सिद्धान्त की पुष्टि ही करुंगा की ब्रह्माण्ड फैल रहा है। ऐसे में यदि मेरी किताब में एकाध पन्ने बढ़ जायेंगे तो आपको तो प्रसन्न होना चाहिये। "
हॉल में इस बार जबर्दस्त कहकहों का शोर उभरा। विद्वानों की सभा का एक सबसे बड़ा गुण ये हैं कि हर बात व्यंग्य का कारण बन जाती है और हर प्रतिवार विद्वता की छाप। मूर्खों का इस सभा में रहना भी निषेध है। जो जितना हंसे वो उतना बड़ा विद्वान। फिर भला कौन पीछे रहने वाला था?
"हाँ...तो इस छोटे से हास्य-विनोद में सहभागिता देने के लिये आप सबका धन्यवाद। मैं जहाँ था वहाँ से आगे बढ़ता हूँ।.........तर्क वो हल है जो किसी समस्या का सबसे छोटा और सिर्फ एक निश्चित समाधान है। पहले से उपलब्ध ज्ञान के आधार पर हम जो सटीक व तात्कालिक फैसले लेते हैं वही तर्क है। तर्क एक विमीय वो संरचना है जो सिर्फ एक ही दिशा में आगे बढ़ती है। तर्क वो निष्कर्ष है जो प्रत्येक परीक्षण में एक ही परिणाम देता है। तर्क का परिणाम बिन्दुवत् परिभाषित होता है। जैसे- 1+1=2 अर्थात् एक में एक आप चाहे जितनी बार जोड़ेंगे आपको हमेशा दो ही प्राप्त होगा। 3, 4, 5, 6 इत्यादि के प्राप्त होने की सम्भावना शून्य है। मशीनें व कम्प्यूटर तर्क पर संचालित होती हैं। मशीनों द्वारा लिये गये सारे निर्णय हाँ और न में लिये जाते हैं। यानि मशीनों की भाषा में 1+1 का हल सिर्फ 2 के लिये हाँ होगा बाकी सब यानि 3, 4 ,5.... के लिये न। इंसानों के लिये 1+1~2 जिसका मतलब है कि एक में एक जोड़ने पर हमारे लिये सिर्फ 2 प्राप्त होने की एक सम्भावना है। यानि किसी निर्णय के लिये 100 प्रतिशत स्योर न होना ही हम इंसानों को मशीनों से अलग करता है। अब प्रश्न ये उठता है कि वो कौन सी चीज है जो हमारी निश्चितता को सम्भावना में बदलती है। सम्भावना का दूसरा रूप ही है इंसानी भावना। रोबोटिक्स में काम करने वाले लोगों के लिये मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगा कि यदि वो मशीनों को सोचना सीखाना चाहते हैं तो प्रोग्रामिंग करते वक्त हर समस्या का कोई निश्चित समाधान न देकर सम्भावित समाधानों की पूरी सूची डाले और हर एक की प्राथमिकता प्रतिबंधों के अंतर्गत तय करें। इससे मशीनें किसी समस्या का निश्चित हल न प्रस्तुत करके उनके सम्भावित हल को प्रतिबंधों के अंतर्गत प्रस्तुत करेंगी। इसी को ही सोचना कहते हैं। भावनाएं ही हमें सोचना सीखती हैं।"
"लगता है अगले साल आपको कृत्रिम बुद्धिमत्ता की खोज के लिये भौतिकी के नोबेल पुरस्कार के लिये फिर से बुलाया जायेगा।....."
एक भौतिक विज्ञानी की ईर्ष्या साहित्यकार के तार्किक प्रवचन सुनकर फुसफुसा पड़ी।
"अगर आप इस बात की पुष्टि कर सकने में कामयाब रहे तो एक तर्क की भविष्यवाणी मैं अभी कर सकता हूँ कि ब्रह्माण्ड एक न एक दिन अवश्य नष्ट होगा। आप साक्ष्य खोजिये मैं नोबेल पुरस्कार ग्रहण करने आ जाऊंगा।"
"पुरस्कार खोज के लिये दिया जाता है अनुमान के लिये नहीं।"- भौतिकी के नोबेल पुरस्कार विजेता को तर्क बाण फेंकने का मानों निशाना मिल गया।
"खोज करने से पहले अनुमान ही लगाया जाता है। विज्ञान के इतिहास में खोज करने वालों से ज्यादा अनुमान लगाने वाले मशहूर हुये हैं। जैसे की अल्बर्ट आइंसटीन।"
"लेकिन तभी जब अनुमान सच निकले।"
"इसकी पुष्टि के लिये तो हम सभी को ब्रह्माण्ड के नष्ट होने की प्रतीक्षा करनी होगी।"
एक छोटा सा मौन जैसे ही व्याप्त हुआ कहकहों को बीच में ससकने की मानों जगह मिल गई हो।
"खैर ब्रह्माण्ड जब नष्ट होगा तब होगा, मैं इंसानी भावनाओं की बातें कर रहा था। भावनाएं ही हमें सोचना सिखाती हैं। प्यार भी उन भावनाओं में से एक है। प्यार वो भावना है जो आप द्वारा पहले से तय किये गये सभी फैसलों की प्राथमिकता बदल देती है। जिसका प्रभाव आपके अंतिम चुनाव पर पड़ता है। एक प्रेम में डूबे इंसान का फैसला काफी व्यापक होता है। क्योंकि वो सभी हलों को अपने उत्तर में सम्मिलित करना चाहता है। जबकि एक प्रेम मुक्त इंसान के फैसले काफी सटीक व निश्चित होते हैं। प्रेम में न पड़ा हुआ इंसान किसी कपड़े की दुकान में ख़रीददारी जल्दी व सस्ता करेगा जबकि प्रेम में पड़ा हुआ इंसान विभिन्न रंग व डिजाइन के कपड़े खरीदने के चक्कर में ज्यादा समय व पैसा दोनों ही खर्च करेगा। इसीलिए एक हँसने की बात मैं ये कहना चाहूंगा की प्रेम फकीरों के लिये नहीं है बल्कि अमीरों के लिये हैं। प्रेम प्रदर्शन चाहता है और प्रदर्शन पैसों से ही किया जा सकता है। पर जैसा की मैंने कहा कि हम इंसानों के लिये कुछ भी निश्चित नहीं है। अतः हर इंसान के प्रेम में पड़ने की सम्भावना है। किसी के लिये कम तो किसी के लिये ज्यादा। स्वयं मेरे लिये इसकी सम्भावना काफी कम थी लेकिन फिर भी मुझे प्रेम हुआ और वो तब जब मैं एक असफल और अभावग्रस्त अवस्था में था। लेकिन ये प्रेम ही है जिसकी वजह से आज मैं यहाँ आप लोगों के सामने उपस्थित हूँ।"
सभा में एक पल के लिये मौन पसरा रहा। लेकिन वो अलसाये उससे पहले ही स्वर की गुदगुदी ने उसे भगा दिया-
"ऐसा मुझे प्रतीत होता है कि जितने भी नोबेल पुरस्कार विजेता हुये हैं उन्होंने ज़रूर किसी न किसी से अवश्य प्रेम किया होगा। ये प्रश्न मैं माननीय भौतिकी के नोबेल पुरस्कार विजेता से पूछना चाहूंगा। उन्होंने किससे प्रेम किया?"
सबकी नजरें और कान उधर ही केन्द्रित हो गये।
न चाहते हुये भी इस प्रश्न का उत्तर देना ही पड़ा-
"अपने शोध से...."
"ये कितना सुन्दर हो यदि हम जिस विषय पर शोध कर रहें हो उसी नाम वाली प्रेमिका हमें प्रेम करने के लिये भी उपलब्ध हो। कम से कम हम भरी सभा में उसका नाम तो ले पायेंगे। हमारा शोध ही हमारा प्रेम बन जायेगा। ये अलग बात है कि इसमें शर्तिया 9 महीने बाद परिणाम मिलने की निश्चितता है।"
भौतिकी के नोबेल पुरस्कार विजेता को सम्भावना सिद्धान्त से अलग किसी निश्चित जवाब का मानों इंतजार ही था।
"इस बारे में निश्चितता क्यों?....सम्भावना क्यों नहीं?"
सभा में थोड़ी देर के लिये मौन पसर गया। पर आखिरकार स्त्रियों को परिहास करने लायक जवाब मिल ही गया।
"शायद आपने अभी तक अपने सम्भावना की गणना नहीं की। मैं कर चुका हूँ इसीलिए परिणाम मिलने की निश्चितता है। हाँ, इस बारे में यदि आप पुष्टि की बात करेंगे तो मैं शर्तिया तैयार हूँ।"
स्त्रियों के हास-परिहास का मधुर संगीत पुरूषों की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही लयबद्ध हो उठा। इस बार ठहाकों व कहकहों ने समाँ को रोशन कर दिया।
"एक बात मैं और कहना चाहूंगा....व्यक्ति की रचनात्मकता को लेकर। हम सभी एक अच्छी किताब पढ़ने के बाद लेखक से मिलने को उत्सुक हो उठते हैं। मधुर संगीत सुनकर संगीतकार से एक मुलाकात की लालसा पैदा होती है। भौतिकी का कोई सिद्धान्त जानकर उसके सत्यापित कर्ता से प्रश्न पूछने की जिज्ञासा हो उठती है। रचनात्मक चीजें इंसान की एक विशेष मनः स्थिति में सृजित होती है। इसलिये हो सकता है जब आप किसी लेखक, संगीतकार या वैज्ञानिक से मिले तो उसके उस व्यक्तित्व से साक्षात्कार करने का मौका न मिल सके। मिलने पर आपको ऐसा भी लग सकता है कि ये तो एक साधारण इंसान ही है लेकिन उसकी असाधारणता उसके इसी व्यक्तित्व का एक हिस्सा है। जब वो सक्रिय हो उठता है तब वो साधारण नहीं रहता। तब वो रचनात्मक हो उठता है। ऐसा तभी होता है जब एकाकी और एकांत में वो चिंतन करता है, अपने उस व्यक्तित्व से स्वयं साक्षात्कार करता है। हर व्यक्ति के भीतर एक रचयिता है। प्रश्न ये उठता है कि आपने कभी उसे खोजने का प्रयास किया या नहीं। जिस दिन आप खोज लेंगे उस दिन ऐसे ही किसी एक पुरस्कार के अधिकारी आप भी हो सकते हैं।.......इस पृथ्वी पर उपस्थित सभी रचनात्मक मनुष्यों को मेरा प्रणाम और उन सभी को जिन्होंने मेरी रचना को पसंद किया बहुत-बहुत धन्यवाद।"
शायद ये भाषण का समापन होता यदि किसी ने ये न पूछा होता-
"....तो आपकी किताब 'इनटेलीजेन्स इज़ नाट अ की फॉर सक्सेस' का मुख्य पात्र आप स्वयं हैं?....और किताब में जितनी भी घटनाओं का उल्लेख किया गया है वो सभी वास्तविक हैं?...."
ये प्रश्न किसी ने भी पूछा होता इससे कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ने वाला था।
महत्वपूर्ण था इसका उत्तर जिसे वलय वैष ने काफी गंभीरता से दिया-
"घटनाएँ वास्तविक हैं या काल्पनिक एक लेखक के लिये इस रहस्य का उद्घाटन करना थोड़ा सा व्यावसायिक स्तर का विषय हो जाता है। आज कल वास्तविकता ज्यादा बिकती है। लेकिन सम्पूर्ण वास्तविकता लिखना काफी कठिन और डराने वाला काम है। इसके लिये काफी हिम्मत चाहिये। इसलिये ये मैं पूरी तरह से पाठकों पर छोड़ता हूँ कि उनको ये घटनाएँ वास्तविक लगती हैं या काल्पनिक। यदि वास्तविक लगे तो अपना समझिए अन्यथा मेरी कल्पना का कमाल जानिए की मैंने उसको तर्कों पर गढ़ लिया है।....लेकिन मैं ये कदापि कहलाया जाना नहीं पसंद करुंगा कि मैं एक काल्पनिक घटनाओं का व्यवसायी हूँ। ऐसी कल्पना के लिये भी आपको अनुभव चाहिये और अनुभव की परख वास्तविकता में ही होती है। तो आप इसे काल्पनिक-कम-वास्तविक घटनाओं का संग्रह कह लीजिये या सम्पूर्ण वास्तविकता ही समझ लीजिये। महत्वपूर्ण ये है कि मैंने जो लिखा वो सत्य है। इसकी पुष्टि आप वास्तविक जीवन में स्वयं कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त मैं इस विषय पर और अधिक नहीं कह सकता। क्योंकि प्रकाशक के साथ मेरा कुछ शर्तों पर अनुबंध है जिसमें ये भी शामिल है कि मैं कभी अपने मुख से इस बात की पुष्टि न करूँ। स्वयं पाठक निर्णय ले यही उचित है। जहाँ तक बात है मैं स्वयं इसका मुख्य पात्र हूँ या नहीं तो मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि ये मेरी आत्मकथा नहीं है। क्योंकि किसी भी व्यक्ति की आत्मकथा स्वयं उसके नजरों में महत्वहीन होती है और महत्वहीन विषयों पर लेखनी चलाना मुझे पसंद नहीं। हाँ कोई और चलाना चाहे तो सहर्ष ऐसा कर सकता है। जितनी भी सहायता मुझसे हो सकेगी मैं करूँगा।"
"यानि आप ये चाहते हैं कि कोई आपकी आत्मकथा लिखे।"
"यदि आपके लिये किसी की आत्मकथा मनोरंजन व प्रेरणा का एक साधन बन सके तो क्यों नहीं।.......ये आप लोगों को तय करना है....मुझे नहीं। "
"आप अपने जीवन में घटी प्रेम घटनाओं के विषय में क्या कहेंगे?"
"क्या इस प्रश्न का जवाब आप सिर्फ इसलिये सुनना चाहती हैं क्योंकि इस वर्ष साहित्य के नोबेल पुरस्कार से मुझे सम्मानित किया जायेगा। यदि कारण यही है तो मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि नोबेल पुरस्कार की घोषणा से पहले किसी ने मेरे व्यक्तिगत प्रेम संम्बधों की पूछताछ नहीं की। इसलिये मैं ये कह सकता हूँ कि नोबेल पुरस्कार आपके प्रेम-संम्बधों से कतई प्रभावित नहीं है। अन्यथा इस साल का पुरस्कार मुझे नहीं मिल रहा होता। मेरे इस जवाब से आप अनुमान लगा सकते हैं कि मेरे जीवन में घटी प्रेम घटनाएँ कभी भी उच्च स्तरीय नहीं रहीं। इस वक्त हम स्वीडिश एकेडमी में है तो मैं आशा करता हूँ कि हम जिस भी विषय पर बात करेंगे उसका स्तर उच्च होना चाहिये।.....एकेडमी के बाहर किसी अन्य सभा में यदि आप इसका उत्तर जानना चाहें तो मैं कुछ एक घटनाओं का उल्लेख करके आपकी जिग्यासा को शान्त करने का प्रयास कर सकूँगा। अभी के लिये क्षमा करें।"
"वो कौन सी घटना है जिसने आपको ये पुस्तक लिखने के लिये प्रेरित किया?"
"ये किसी एक घटना की उपज नहीं है बल्कि घटनाओं के एक विशेष समूह का परिणाम है जिसने मुझसे इस किताब में लिखे प्रत्येक शब्द को अस्तित्व में लाने के लिये प्रेरित किया। सबसे पहली घटना थी अपने निर्णयों व इच्छाओं की परख। जो मैं स्वेच्छा से चुनना चाहता हूँ यदि चुन लूँ तो सम्भावित परिणामों में से कितना कुछ आपको प्राप्त हो पाता है एवं कितना कुछ काल्पनिक व अति इच्छाओं का प्रभाव सिद्ध हो जाता है। जो मिलता है वही सिद्ध होता है, वही अनुभव बनता है और परिपक्वता लाता है। जो नहीं मिलता वो बालावस्था की कल्पना जान पड़ती है। समझने के लिये इस तरह से मैं कह सकता हूँ कि जब लड़कपन पीछे छूट जाता है तब एक अनुभवी व ज्ञानी पुरुष का जन्म होता है। आप कितने जल्दी अनुभवी व परिपक्व बनेंगे ये सिर्फ इस बात पर निर्भर करता है कि आपको आपके चुनाव की कितनी स्वतंत्रता मिली है। स्वनियंत्रण में जीने वाला मनुष्य ही अनुभवी और ज्ञानी बन पाता है। दूसरों के नियंत्रण में जीने से स्वयं का विकास रुक जाता है। स्वयं को स्वतंत्र कराना ये मनुष्य का सबसे पहला उद्देश्य होना चाहिये। किन-किन चीजों से आप स्वयं को स्वतंत्र कराना चाहते हैं इसकी प्राथमिकता आपको तय करनी है। ये मेरी लेखकियता को प्रेरित करने वाली सर्वप्रथम घटना है। दूसरी घटना थी अपनी स्वनियंत्रणता की परख। ये कदापि भी आवश्य नहीं कि अपने नियंत्रण में जीने वाला मनुष्य सदैव सही ही निर्णय ले। लेकिन हर गलत निर्णय उसके लिये एक अनुभव बनता है। उसके तर्कों और स्वयं की सोच की परख होती है। स्वयं निर्णय लेने वाली घटना में कदम रखने वाले इंसान के गलत चुनाव करने की सम्भावना अधिक होती है। परन्तु ये स्थिति स्थाई नहीं होती। आपने अपने जीवन में कितने गलत चुनाव किये हैं उनसे प्राप्त अनुभव आपका है। वो आपके अस्तित्व का एक हिस्सा बन जाता है। फिर अपने अस्तित्व को सही सिद्ध करने के लिये आप चुनाव करने से पहले उसकी कठोरता से जाँच करते हैं। इस परीक्षण का परिणाम ये होता है कि चुनाव के सही होने की सम्भावना बढ़ जाती है। स्वयं को सामाजिक बंधनों से आजाद कराने के बाद ये दूसरी घटना थी जिसने मेरी लेखकियता को प्रभावित किया यानि सही चुनाव करने की परिपक्वता। कठिनता तब पैदा होती है जब सही चुनावों के बीच किसी एक का वरण करना होता है। यानि उच्च में से सर्वोच्च का चुनाव। सिर्फ यही एक ऐसा चुनाव है जो आपको सफलता और आत्मसंतुष्टि दोनों दिला सकता है। इन तीन घटनाओं के एकीकृत प्रभाव ने मुझसे इस पुस्तक की रचना करवाई।"
"आपके बचपन में कुछ ऐसी घटनाएँ ज़रूर घटी होंगी जिसने आपके भीतर छिपे लेखक को उकसाया होगा?"
"आप ये जानना चाहते हैं कि मेरे भीतर का लेखक बचपन में कैसा था? या बाल्यावस्था में मेरे लेखन की शुरूआत कैसे हुई?.........वर्तमान क्षण में जो घटना मुझे याद आ रही है शायद वो आपके प्रश्न का वांछित उत्तर दे सके। मैं उस घटना के विषय में अवश्य बताऊँगा परन्तु मैं चाहता हूँ आप सभी अपनी कल्पना शक्ति से उस घटना और उसके वातावरण का अनुभव करें।.......तो बात उन दिनों कि है जब मैं इंजीनियरिंग कालेज का छात्र था और............ "
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लगभग 13 साल पहले,
बी.बी.यस. कालेज, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
इंजीनियरिंग कॉलेज में ऐसे कितने छात्र होंगे जो कम्युनिकेशन स्किल की क्लास को गम्भीरता से लेते होंगे। लेकिन आजकल जितनी भीड़ इस क्लास में नजर आती है मैकेनिकल और इलेक्ट्रोनिक्स के प्रोफेसर आश्चर्य और ईर्ष्या की नजरों से देखते हैं।
"क्या जबाना आ गया है। दिन-प्रतिदिन इंजीनियरिंग छात्रों की गुणवत्ता गिरती जा रही है।"- इस वाक्य को आप मैकेनिकल और इलेक्ट्रोनिक्स के प्रोफेसरों का रूदन प्रलाप कह सकते हैं।
अब इन लोगों को कौन समझाये कि छात्र उसी क्लास में जाना पसंद करते हैं जहाँ उनको अपनी मनमानी करने की पूरी आजादी हो। इसके लिये कम्युनिकेशन स्किल की क्लास से बेहतर कोई विकल्प नहीं।
प्रोफेसर विशुध मारतन्डे हर विभाग में कम्युनिकेशन स्किल की क्लास लेते थे। उनके व्यक्तित्व में बहुत अधिक अनियमितता थी। वो कभी बहुत ही खुश नजर आते थे कभी धीर-गम्भीर। कब उनका मूड एक अवस्था से दूसरी अवस्था में चला जायेगा इसकी गणना क्वान्टम मैकेनिक्स के जटिल समीकरणों से भी नहीं की जा सकती थी। हाँ कुछ एक बातें ऐसी हैं जो उनके खुशगवार मूड को निःसंकोच प्रभावित करती हैं। जैसे उनकी कक्षा में छात्रों की भीड़। इसके पीछे कोई चमत्कार नहीं बल्कि विषय को तार्किक रूप से पढ़ाने का उनका तरीका और हर छात्र को अपने स्वतंत्र विचारों को अभिव्यक्ति करने की पूरी आजादी थी।
इंजीनियरिंग कॉलेज का हर छात्र कभी न कभी उनकी कक्षा में जरूर नजर आया होगा। सिवाय एक को छोड़कर।
वलय वैष!
इलेक्ट्रोनिक्स की क्लास रोज सुबह कम्युनिकेशन स्किल से ही शुरू होती थी।
ठीक साढ़े नौ बजे। जो खत्म होती थी 50 मिनट बाद यानि 10 बजकर 20 मिनट पर।
आईये चलते हैं हॉस्टल के भीतर और देखते हैं वलय वैष की महानता।
इस वक्त 9 बजकर 40 मिनट हो रहे थे। ये वो समय होता था जब किसी की मजाल नहीं होती थी हॉस्टल में रुकने की। वार्डन से लेकर मेस का खानसामा सब बड़े सीधे थे। सभी को हर महीने की आखिरी तरीख को मिलने वाली पगार से ही मतलब होता था। इसलिये कोई जानबूझकर छात्रों से पंगा लेने का प्रयास नहीं करता था। डर था तो कॉलेज के डायरेक्टर का। जो बिना किसी पूर्वामान के कभी भी आ धमकता था। उस वक्त जो भी छात्र सामने पड़ जाता समझ लो की उसकी शामत आ गई। कुछ एक छात्रों के लिये ऐसे ही आज का दिन कुछ बुरा गुजरने वाला था।
मेस में एक छोटा सा लड़का काम करता था। मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि छोटा शब्द से मेरा मतलब उसकी लम्बाई से नहीं बल्कि उसकी उम्र से है। उसकी उम्र अभी सिर्फ 14 साल की थी। हॉस्टल के छात्र उसको सायरन के नाम से बुलाते थे क्योंकि जब भी डायरेक्टर हॉस्टल और मेस को चेक करने आता था तो ये खबर कुछ मिनट पहले ही चीख-चीख कर हॉस्टल में गूंजने लगती थी।
उस वक्त एक सीनियर नीचे के फ्लोर पर बाल्टी लेकर बाथरूम की तरफ प्रस्थान कर रहा था। जब सायरन चिल्लाया-
"डाक्टर सर् आ रहे हैंSSSSSSSSSS"
सीनियरों ने उसे लाख समझाने की कोशिश की थी कि डायरेक्टर बोला कर लेकिन लाख प्रैक्टिस के बावजूद उसे डाक्टर ज्यादा समझ में आता था और जो चीज इंसान को समझ में आती है उसे ही याद रख पाता है।
हाथ में बाल्टी लिये और कंधे पर तौलिया रखे सीनियर की हालत खराब हो चली।
"हे सायरन...जल्दी से मुझे कमरे मं बंद कर..."
आनन-फानन वो सीनियर कमरें में घुसा। सायरन ने बाहर से ताला मारा। फिर जल्दी से बाथरूम की तरफ भागा-
"राजदान सर्......डाक्टर सर् आ रहे हैं....बाहर मत निकलियेगा। मैं बाथरूम का दरवाजा बाहर से बंद कर देता हूँ।"
"उनके जाने के बाद दरवाजा खोल देना मुझे इलेक्ट्रोनिक्स की क्लास अटेन्ड करनी है।"- बाथरूम के बंद दरवाजे के भीतर से एक आवाज गूंजी।
सायरन ने अपनी वफादारी पूरी तरह से निभाई लेकिन इसका क्या करें कि गलती करना हर इंसान की फितरत है। सायरन को अपनी गलती का अहसास जब तक हुआ तब तक देर हो चुकी थी।
डायरेक्टर के साथ-साथ कॉलेज का सिक्योरिटी चीफ भी आ पहुंचा था।
"उफ्....वलय सर् का कमरा तो बाहर से लॉक किया ही नहीं। हे भगवान, दूसरे माले पर डाक्टर सर् का दौरा न पड़े तो बेहतर है वरना आज तो वलय सर् की लगेगी.......वॉट!"- सायरन की इतनी मजाल नहीं थी कि वो डायरेक्टर सर् के सामने पड़ जाय। उसका आखिरी ठीकाना था मेस का स्टोर रूम।
हॉस्टल में डायरेक्टर के पदार्पण से सब से अधिक सक्रियता वार्डन में नजर आई। वह भागता हुआ डायरेक्टर सर् के सम्मुख प्रस्तुत हुआ-
"गुड मार्निंग सर्...."- वार्डन ने गर्मजोशी से डायरेक्टर सर् का अभिवादन किया।
"मोर्निंग...सब ठीक है?"- चश्मे के पीछे छिपी आँखों से चारों ओर का मुआयना करते हुये डायरेक्टर ने गम्भीर आवाज में कहा।
"यस सर्.....नो प्रॉब्लम....."
"कोई यहाँ पर रुका तो नहीं"
"नो सर्....आप चाहे तो चेक कर लीजिये।"
वार्डन और डायरेक्टर के बीच का संवाद बड़ा औपचारिक ही रहा।
बातों-बातों में डायरेक्टर और सिक्योरिटी इंचार्ज ने वार्डन के साथ मेस का दौरा किया।
और इस बीच एक छोटी सी घटना घट गई।
सिक्योरिटी इंचार्ज की नज़र मेस के स्टोर रूम के खुले हुये दरवाजे पर गई-
"स्टोर रूम खुला क्यों पड़ा है?....इसको लॉक कीजिये।"
वार्डन ने तत्काल आदेश का पालन किया। ये बात वार्डन को भी नहीं पता थी कि स्टोर रूम के भीतर सायरन छिपा बैठा है।
इसके बाद डायरेक्टर ने ग्राउन्ड फ्लोर का एक चक्कर काटा।
सभी दरवाजों पर बड़े-बड़े ताले झूल रहे थे। संतुष्ट होने के पश्चात् सीढ़ियों से दूसरे माले पर पदार्पण हुआ।
मुआयना शुरू हुआ।
कमरा नम्बर-30.....गोदरेज का बड़ा सा ताला झूल रहा था।
मतलब पास।
कमरा नम्बर-31.....बेन्शन फोर्स का ताला आरामदेह अवस्था में था।
ये भी पास।
कमरा नम्बर-32.....हाईस्पीड का चौकोर ताला।
इसे भी पास होना ही था।
ऐसा लग रहा था जैसे कमरों का नहीं बल्कि तालों का निरीक्षण किया जा रहा हो।
जब तालो का ही निरीक्षण चल रहा हो तो कमरा नम्बर 33 का ताला कौन चुरा ले गया?
'भड़'-'भड़'
सिक्योरिटी चीफ ने दरवाजे को जोर से भड़भड़ाया।
पहली बार में ही प्रतिक्रिया मिली।
"कौन?"- आवाज में काफी हद तक नींद की बोझिलता थी।
"सिक्योरिटी....दरवाजा खोलो।"- कमरे में जो कोई भी था उसके लिये ये आवाज वज्र के सामान थी।
कुछ ही देर में दरवाजा खुला।
दरवाजा खुलते ही स्पष्टीकरण शुरू-
"एक्चुवली में सर्.....पेट में दर्द था बस इसीलिये नहीं जा पाया।"
वलय का एक हाथ अपने पेट पर था। चेहरे पर हल्के से दर्द और गहरी मासूमियत के भाव। मानों झूठ बोलना उसे आता ही न हो।
"वार्डन को तुमने इन्फार्म किया कि तुम्हारे पेट में दर्द है?"- डायरेक्टर ने कड़ी निगाहों से वलय को घूरा।
"मैंने सायरन से कहा था सर्...शायद वो भूल गया होगा।"- वलय ने गुप्त निगाहों से वार्डन को देखा। वार्डन ने मुन्डी को हिला कर धीरे से आश्वस्त किया।
"सॉरी सर्....वो मैं आपको बताना भूल गया था। मेस में जो लड़का काम करता है उसने मुझे बताया था।"- इतना बोलकर आगे की बागडोर खुद वार्डन ने संभाल ली-"अब पेट दर्द कैसा है तुम्हारा?"
"सीनियर से मांगकर मैंने कुछ टैबलेट खा लिया था सर्। अब काफी हद तक आराम है।"- वलय ने सतर्कता से जवाब दिया।
"पेट का दर्द अगर ठीक हो गया हो तो तुरन्त अगली क्लास के लिये जाओ।...."- डायरेक्टर ने अपना निर्देयी फैसला सुना दिया।
"यस सर्.....बस मैं जाने ही वाला था।"
खैर, ये मामला ज्यादा तूल पकड़ सकता था लेकिन वार्डन की समझदारी से बात संभल गई थी।
वलय आनन-फानन तैयार होकर कॉलेज की तरफ भागा।
आईये अब पुनः चलते हैं मारतन्डे सर् की क्लास में जिसके खत्म होने में सिर्फ 20 मिनट शेष हैं। आज मारतण्डे सर् का मूड बहुत अच्छा था। मारतण्डे सर् का मूड जब अच्छा होता है तो क्लास के भीतर खुद-ब-खुद रोमांश के टेक्निकल वायलिन बजने लगते हैं। आईये क्लास के अदभुद वातावरण का हम लोग भी आनन्द उठाये-
"इलेक्ट्रोनिक्स के बच्चे मुझे बहुत भाते हैं।......क्या कोई मुझसे पूछने की गुस्ताखी करेगा कि क्यों?"
"क्यों?"- किसी छात्र ने ये गुस्ताखी कर ही दी।
प्रोफेसर मारतन्डे की एक आदत थी कि जब वो खुश रहते थे तो चश्मा उनकी आंखों पर नहीं बल्कि सिर पर होता था। उस वक्त छात्रों की हर गुस्ताखी माफ। लेकिन अगर चश्मा आंखों पर आ जाय तो समझ लीजिये की मूड बदल गया है। छात्रों के लिये ये चेतावनी होती थी कि- सावधान! फिलहाल अभी चश्मा सिर के ऊपर था। गुस्ताखी करने की गुंजाइश थी।
"क्योंकि टेक्निकली आप सभी लोग बहुत छोटी-छोटी चीजों पर ध्यान देते हैं। अगर कोई मुझसे ये पूछेगा कि कैसे? तो उत्तर देककर मुझे खुशी होगी।"
"कैसे?"- किसी छात्र ने मारतन्डे सर् को खुश करने की एक छोटी सी कोशिश की।
"इतना सवाल तो आप इलेक्ट्रोनिक्स और मैकेनिकल के प्रोफेसर से भी नहीं पूछते होंगे जितना की मुझसे।....खैर ऐसा परम् सौभाग्य बहुत कम लोगों को मिलता है।....हाँ तो मैं बता रहा था कि आप लोग मुझे इसलिये भाते हैं क्योंकि टेक्निकली आप लोग छोटी-छोटी चीजों पर बरीकी से ध्यान देते हैं जैसे- डायोड, रजिस्टेन्स, कैपासिटर, ट्रान्जिस्टर, आई-सी, इन्डक्टर, लॉजिक गेट्स...."
"ट्रान्सफार्मर तो बड़ा होता है सर्....."- किसी छात्र द्वारा उद्डन्डता की मजाल सिर्फ इसलिये हो सकी क्योंकि चश्मा अभी सिर के ऊपर था। यानि सात खून माफ।
"अच्छा सवाल है.....जिसने भी पूछा हो। लेकिन ये बात मैं क्लियर कर देना चाहता हूँ कि इतनी नॉलेज मुझे भी है कि दो तरह के ट्रान्सफार्मर होते हैं- एक इलेक्ट्रोनिक्स का और दूसरा इलेक्ट्रिकल का। इलेक्ट्रोनिक्स वाला छोटा होता है और इलेक्ट्रिकल वाला बड़ा होता है। इलेक्ट्रोनिक्स वाला रेडियो और यस.यम.पी.यस में लगता है और इलेक्ट्रिकल वाला पावर हाउस में और मैं यहाँ पर इलेक्ट्रोनिक्स वाले ट्रान्सफार्मर की बात कर रहा हूँ।"
क्लास के भीतर मधुर कहकहों का शोर उठा।
वैसे अगर कुछ प्रबुद्ध पाठक नहीं हंस पा रहे हो तो तो चूंकि आपने ये किताब खरीदी है अतः नैतिक और व्योसायिक दोनों रूपों में ये मेरी जिम्मेदारी है कि आपको हर समझदार चीज पर हंसी आये और समझदारी तभी बढ़ती है जब थोड़ा सा ग्यान पास में होता है। अगर कोई आप से पूछे कि कुत्ते कितने तरह के होते हैं? और आप बोले की दो तरह के, एक भौंकने वाला और दूसरा काटने वाला। इस बात पर आपको इसलिये हंसना चाहिये क्योंकि दोनों ही कुत्ते एक ही हैं। बस आपका नजरिया दो है। क्या भौंकने वाला काटता नहीं या काटने वाला भौंकता नहीं? आपका नजरिया सिर्फ इसलिये जुदा है क्योंकि कभी भौंकने वाले कुत्ते ने आपको काटा नहीं। अगर काटा होता तो प्रोफेसर मारतन्डे की तरह आप विद्वता नहीं झाड़ रहे होते। इलेक्ट्रोनिक्स विभाग का कोई भी छात्र अगर परीक्षा में प्रोफेसर मारतन्डे का जवाब लिखकर आ जाता तो शर्तिया इलेक्ट्रोनिक्स के पेपर में उसका बैक लगना तय था।
मधुर कहकहों का कारण बस इतना सा था।
"और मेरा मानना है कि जो इंसान छोटी-छोटी चीजों पर ध्यान देता है वो अपने जीवन में गलतियाँ बहुत कम करता है। अगर गलतियाँ कम होंगी तो बेशक आप एक सफल इंसान बनेंगे।"
"लेकिन सर् दुनिया का सबसे सफल इंसान तो बिल गेट्स है। वो तो इलेक्ट्रोनिक्स इंजीनियर नहीं था।"- गुस्ताखियों का बाजार थोड़ा गरमाने लगा था। कमरे में सरगोशियों और फुसफुसाहटों का शोर बढ़ चला।
ये वो क्षण था जब प्रोफेसर मारतन्डे का चश्मा उनके सिर से सरक कर उनकी आंखों पर आ ठहरा। मानों कोई चमत्कार हुआ हो। कमरे का शोर पैने सन्नाटे में बदल चुका था।
लेकिन बस कुछ एक क्षण के लिये क्योंकि अगले ही पल चश्मा पुनः सिर के ऊपर था। कमरे के शोर को मानों किसी ने सुई चुभो कर गुदगुदा दिया हो।
"इसके पीछे का कारण ये हैं क्योंकि एक कम्प्युटर इंजीनियर और भी छोटी चीजों पर ध्यान देता है?"
प्रोफेसर मारतन्डे ने अपनी दृष्टि से पूरे छात्र झुण्ड का अवलोकन किया।
"क्या आप लोग बता सकते हैं कि वो छोटी सी चीज क्या है??"
"माउस और की-बोर्ड...."- किसी छात्र ने उत्तर देने की हिमाकत की।
प्रोफेसर मारतन्डे के होंठों पर हल्की सी मुस्कुराहट तैरी। जैसे उनके पास इससे भी बेहतर जवाब मौजूद हो।
"बाइनरी डिजिट...जीरो और वन....सबसे छोटी चीज। एक कम्प्युटर इंजीनियर इन्हीं दो चीजों पर हमेशा अपने ध्यान को फोकस रखता है। छोटी चीजें हमारे ध्यान को केन्द्रित करती हैं और बड़ी चीजें ध्यान को भटकाती हैं।......"
"जैसे स्तन....."- आप उम्मीद कर रहें हो कि किसी छात्र द्वारा बोले गये इन शब्दों से प्रोफेसर मारतन्डे गुस्सा होंगे, भड़केंगे लेकिन ऐसा नहीं है। एक विशेष मानसिक अवस्था में वो छात्रों की साहित्यिक अश्लीलता भी बरदाश्त कर लेते थे।
"अच्छा उदाहरण था लेकिन मैं इससे बेहतर की उम्मीद कर रहा था।.......खैर, समझने के लिये आप किसी भी चीज का उदाहरण ले सकते हैं ध्यान देने वाली बात ये हैं कि यदि आप सफल होना चाहते हैं तो ध्यान को केन्द्रित करने की कला आनी चाहिये। इसके अभाव में आप कोई काम पूरा नहीं कर पायेंगे।"
तभी छात्रों की भीड़ में से किसी ने पूछा-
"सर्, अगर किसी से अपने दिल की बात कहनी हो तो हमें किन चीजों पर ध्यान देना चाहिये। जो हम कहने जा रहे हैं उस पर या जिससे हम कहने जा रहे हैं उस पर........"
प्रोफेसर मारतन्डे को मानों अपना मन माफिक प्रश्न मिल गया था। इस तरह के भावनात्मक प्रश्नों का जवाब देने में उनको बड़ा आनन्द आता था-
"बहुत ही जटिल मगर अच्छा प्रश्न.....इस समस्या से हम सभी को कभी न कभी दो चार होना पड़ता है। आप में से ही बहुत सारे छात्र ऐसे होंगे जो किसी न किसी से अपने दिल की बात कहना तो चाहते होंगे लेकिन संकोच और क्या होगा? इस बारे में सोच कर इस समस्या को स्थगित करते रहते हैं कि आज नहीं, कल....कल से एक और कल....इस तरह कल कल के चक्कर में जिन्दगी बह जाती है, कहीं ठहराव नहीं आ पाता। जब तक हम ठहरने का फैसला लेते हैं तब तक मुकाम पीछे छूट चुका होता है। हम सिर्फ पछताते हैं, खुद पर गुस्सा आता है....आखिर कह क्यों न दिया? या तो हाँ होता या तो न। कम से कम इस उलझन में जिन्दगी न गुजरती कि आज वो मेरी होती पर हो न सकी।....इस सवाल का जवाब देने से पहले मैं ये जानना चाहूंगा कि यहाँ पर ऐसे कितने लोग है जो किसी न किसी से अपने दिल की बात कहना चाहते हैं। प्लीज अपने हाथ खड़े करें........"
कमाल का नजारा दिखाई पड़ा। शुरू में तो इक्का-दुक्का हाथ ही खड़े हुये लेकिन प्रेरण की भावना से धीरे-धीरे हर किसी के हाथ खड़े होते चले गये।
प्रोफेसर मारतन्डे मुस्कुराये बिना न रह सके।
"ऐसा लगता है आप लोंगो की रैकिंग में कुछ कमी रह गई। वरना इंजीनियरिंग के बच्चों को ऐसा संकोच करते हुये मैं पहली बार देख रहा हूँ। देश के कर्णधारों को अब तक ये भी पता न चला कि दिल की बात कैसे कही जाय?.......इस सवाल का जवाब देने से पहले मैं आप लोगों से ये पूछना चाहता हूँ कि कितने लोग अपने दिल की बातों को लेकर सीरियस हैं मतलब उनको लगता है कि वो प्यार करते हैं।"
हाथ अभी भी सब के वैसे के वैसे ही खड़े थे। अगर कोई भी हाथ नीचे करता तो बाकी सब के सामने कैरेक्टर सर्टिफिकेट का बलात्कार होना तय था। एक इंजीनयर से ऐसी बेवकूफी की उम्मीद भला कौन करेगा?
"क्या बात है। सभी प्रेम नामक ज्वर से पीड़ित हैं। ऐसा लग रहा है जैसे हर कॉलेज में लव-सोल्युशन यानि प्रेम निराकरण नाम से एक अलग विभाग बनाया जाना चाहिये।......कृपया सभी अपने हाथों को वहाँ ले जाय जहाँ उनको सहूलियत महसूस हो रही हो।"
कहकहो का शोर उभरा और सभी ने अपने हाथ नीचे कर लिये।
"मेरे ख्याल से हर मरीज को अपना इलाज करवाने से पहले खुद से ये पता कर लेना चाहिये कि उसको बीमारी क्या है? तभी वो सही डाक्टर के पास जाकर कम खर्च में अपना बेहतर इलाज करवा पायेगा। तो आप सभी प्रेम रोगियों से मैं ये पूछना चाहूंगा कि क्या आपको अपनी बीमारी के बारे में कुछ पता है। क्या आप जानते हैं कि प्यार क्या है? जो भी आपको लगता हो मैं चाहूंगा कि आप सभी अपनी नोट बुक में, इस बारे में, कम से कम शब्दों में लिखे। इसके लिये मैं आपको 5 मिनट का समय देता हूँ।......तो अपनी नोट बुक खोल लीजिये, पेन थाम लीजिये क्योंकि आपका समय शुरू होता है....अब...."
इतना बोलते ही प्रोफेसर मारतन्डे ने अपने मोबाइल का स्टॉप वॉच ऑन कर दिया।
छात्रों में इतनी सक्रियता देखना आश्चर्यजनक था। मानों सेमेस्टर का फाइनल इक्जाम चल रहा हो। प्रतियोगिता इस बात को लेकर थी कि शायद उनका जवाब सुनकर वहाँ बैठी लड़कियाँ इम्प्रेस हो जाय। लेकिन कुछ ऐसी ही गर्मजोशी लड़कियों ने भी दिखाई। शायद उनका लिखा हुआ रोमैंटिक जवाब सुनकर लड़के उन्हें अपने ख्यालों की मल्लिका बना ले। एक मनोवैग्यानिक प्रतियोगिता जारी हो गई थी। देखना ये था कि इसमें से कौन अव्वल आने वाला था?
ठीक 5 मिनट बाद,
"मेरे ख्याल से आप सभी लिखते-लिखते थक गये होंगे तो क्यों न अब देखा जाय कि आप में से कौन है प्रेम का ग्यानी या फिर एक टेक्निकल सा फैन्शी नाम रखते हैं.....जैसे की...लव साइन्टिस्ट या शार्टकट में यल.यस। स्टॉप राइटिंग एन्ड जस्ट रिलैक्स...... "
ठीक तभी,
"मे आई कम इन सर्?"- ये आवाज वलय की थी जो दरवाजे पर खड़ा होकर प्रोफेसर मारतन्डे से सम्बोधित था।
प्रोफेसर मारतन्डे की नजर दरवाजे की तरफ घूमी।
"आप हॉस्टल के कमरे में सो रहे थे या रास्ते में कहीं खो गये थे? पर सबसे पहले ये बताईये कि महाशय आप हैं कौन? इस कॉलेज में ऐसा कोई भी छात्र नहीं है जिसके बारे में मुझे पता न हो। क्योंकि हर विधार्थी मेरी क्लास जरूर अटेन्ड करता है।"
तभी छात्रों के झुण्ड में से कोई चिल्लाया-
"सर् ये वलय है......कभी कभार अटेन्डेन्स लगाने आ जाता है। आपकी क्लास के समय हॉस्टल में सोता रहता है।"
क्लास में हंसी और फुसफुसाहटों का शोर उठा।
"तो आज कैसे आना हो गया?.......वो भी नींद हराम करके.....वैसे मुझे खुशी हो रही है कि आप ठीक समय पर पधारे हैं जब की मैं जाने वाला हूँ। अब आये हैं तो विराजिये, स्थान ग्रहण कीजिये। शायद मेरी क्लास के प्रति भी कुछ दयानूभूति उत्पन्न हो और कभी-कभार ही सही अपने दर्शनों से हमें कृतार्थ करें।...आईये। विराजिये।"
ये वलय ही था जिस पर ऐसे व्यंगात्मक बाणों का कोई असर न हुआ। कोई और होता तो ईगो के फावड़े से बेइज्जती की कब्र खोद कर उसमें खुद को दफना चुका होता। पर क्या फर्क पड़ता है? लोग हसेंगे ही तो, हंस लेने दो, कौन सा मैं रोज कॉलेज आने वाला हूँ।
वलय बैठा भी तो एकदम आगे की सीट पर, वो भी शान से। मानों सब का राज खत्म, अब उसी की चलने वाली है।
प्रोफेसर मारतन्डे वापस अपने विषय पर लौटे-
"तो चलिये शुरूवात करते हैं मिस्टर मृगांक से......आपने प्रेम के ऊपर जो कुछ भी लिखा हो कृपया उसे अक्षरशः पढ़े...."
एक गोरा चिट्ठा खूबसूरत लड़का उठ खड़ा हुआ, लड़कियों पर चलायमान दृष्टी डालते हुये सिल्की बालों को धीरे से सवारा, धीरे से खंखार कर गले के अवरोध को साफ किया, तत्पश्चात् अक्षरशः पढ़ना शुरू किया-
"प्रेम से ग्रस्त व्यक्ति में निम्न लक्षण देखे जा सकते हैं। नम्बर एक.....रात को नींद का ना आना, नम्बर दो.....भूख-प्यास न लगना, नम्बर तीन......पढ़ाई-लिखाई में मन न लगना, नम्बर चार.......हर वक्त किसी की याद सताना, नम्बर पाँच.......खुद से ज्याद किसी और की परवाह करना.....दैट्स इट।"
"हूँ....."-प्रोफेसर मारतन्डे ने एक सोचपूर्ण हूंकार भरी-".....मेरे ख्याल से मिस्तर मृगांक ने प्यार के सारे लक्षण गिना दिये।....तो यदि आप ऐसे लक्षणों से प्रभावित हैं तो मतलब आप प्रेम रोगी हैं।.....ऐसे लक्षण कितने लोगों के भीतर हैं...कृपया हाथ उठाये।"
प्यार के लक्षण पर प्रोफेसर मारतन्डे की मुहर लग जाने के बाद किसी की मजाल न हुई हाथ उठाने की। ये तो सरासर पागल पन के लक्षण थे भला कौन अपनी बेइज्जती करवाता हाथ उठाकर?
लेकिन इसके बावजूद एक हाथ उठा। बेशक आप समझ गये होंगे कि वो हाथ किसका होगा?
"हाँ तो मिस्टर......"- प्रोफेसर मारतन्डे ने वलय की तरफ देखकर नाम याद करने की कोशिश की जिसमें मदद की खुद वलय ने।
"वलय वैष.....आज के बाद आप मेरा नाम कभी नहीं भूलेंगे सर्।"
"तुम मुझे चेतावनी दे रहे हो या भविष्यवाणी कर रहें हो?....."- प्रोफेसर मारतन्डे ने विचित्र निगाहों से वलय को देखा।
"मैं सिर्फ एक मनोवैग्यानिक सम्भावना की बात कर रहा हूँ कि यदि आप भूलेंगे भी तो कम से कम आपको इस बात से तो याद आ ही जायेगा कि आपकी क्लास मे हाथ खड़ा करने वाला मैं अकेला था। कोई व्यक्ति यदि किसी विशेष घटना से जुड़ा हो तो हमें उसका नाम आसानी से याद आ जाता है।"
"बात में प्वाइंट तो है......"- प्रोफेसर मारतन्डे इस जवाब से वलय से मन ही मन प्रभावित हुये बिना न रह सके। लेकिन चूंकि ये उनकी क्लास थी अतः स्वयं को ज्यादा विद्वान दिखाना ये उनका उत्तरदायित्व था जिसका निर्वाह करना उन्हें बखूबी आता था-".......कम से कम तुम्हारे क्लास न अटेन्ड करने की वजह तो पता चल ही गई मिस्टर वलय। तो आप इसलिये कॉलेज नहीं आते क्योंकि आप प्रेम रोग से ग्रसित हैं।"
"ऐसा मुझे लगता तो नहीं........वैसे आपने कहा था हाथ उन लोगों को खड़ा करना है जो इन लक्षणों से प्रभावित हो तो मैंने इसीलिये हाथ खड़ा किया था।"- वलय ने अपने नजरिये से बात को सरलता से तो कहा लेकिन समझ में आने से पहले ही चीज उलझ सी गई।
"मतलब तुम ये कहना चाहते हो कि तुम इन लक्षणों से ग्रसित तो हो लेकिन तुमको किसी से प्यार नहीं हैं।"- प्रोफेसर मारतन्डे का चश्मा अब उनकी आंख के ऊपर आ चुका था। मतलब अब इस विषय पर वो हर हाल में अपना प्रभुत्व चाहते थे। किसी लपरवाह छात्र के कुछ एक तर्कों के सामने वो नतमस्तक होने वाले नहीं थे।
"आप जरा खड़े होकर समझायेंगे कि कैसे? "
"बिल्कुल..."- वलय फटाक से खड़ा हो गया- "लक्षण नम्बर एक......मुझे रात को नींद नहीं आती क्योंकि मैं रात को जागकर पढ़ता हूँ इसलिये दिन में सोना मजबूरी है। कुछ लोगों को इसलिये भी रात को नींद नहीं आती क्योंकि उनको अनिंद्रा की बीमारी होती है। जैसे मेरी दादी।.......दूसरा लक्षण......मुझे भूख-प्यास इसलिये नहीं लगती क्योंकि मैं भूख लगने से पहले ही खाना खा लेता हूँ और प्यास लगने से पहले पानी पी लेता हूँ। हमारे मेस का खानसामा पिछले कुछ दिनों से भूख न लगने की दवा करवा रहा है। डाक्टर ने उससे ये नहीं बताया की तुम्हे प्रेम रोग हुआ है बल्कि ये कहा कि ये गैस और अपच की समस्या है।........लक्षण नम्बर तीन......पढ़ने-लिखने में मन न लगना। मेरा कोर्स की किताबें, लेक्चर नोट्स, असाइन्मेन्टस् करने का बिल्कुल भी मन नहीं करता। ये अजीब सी बात है कि मुझे अपने कोर्स की चीजें कम समझ में आती है लेकिन जो मैं खुद से पढ़ता हूँ वो मुझे ज्याद समझ में आता है। इसे मैं पढ़ना नहीं मानता बल्कि जो मुझे पसंद है मैं उसी में जीता हूँ। पढ़ो वही जिसमें मजा आये।.......लक्षण नम्बर चार......हर वक्त किसी की याद सताना। जब से मैंने टाइटेनिक देखी है तब से केट विंस्लेट कि मुझे बहुत याद आती है तो क्या मैं उससे प्यार करने लगा हूँ...नहीं, बल्कि उसकी खूबसूरती में जो आकर्षण था उसके प्रभाव की वजह से ये यादें मेरे जेहन में आती है। यहाँ मैं एक चीज जरूर कहना चाहूंगा कि हर वो चीज जो आपको खूबसूरत लगती है जरूरी नहीं कि आपको उससे प्यार भी हो जाय। क्योंकि प्यार एक घटना है जो कई चीजों से प्रभावित होकर घटते-घटते घटती है।.......लक्षण नम्बर पाँच....जब आप खुद से ज्याद किसी की परवाह करने लगे। सिर्फ इसी एक वाक्य को मैं प्यार के बहुत करीब मानता हूँ। किसी कि खुद से ज्यादा परवाह तभी होती है जब आप उससे प्यार करते हो। मैं परवाह करता हूँ रचनात्मक विचारों की, तर्क की और किसी हद तक अपनी व्यक्तिगत भावनाओं की। लेकिन मैं शर्त लगा सकता हूँ कि मृगांक ने अपने इस लक्षण में इस तरह के वैचारिक प्रेम के बारे में नहीं सोचा होगा। "
क्लास में कुछ एक क्षण के लिये सन्नाटा व्याप्त रहा। मृगांक का मन ही मन वलय पर कुढ़ना स्वाभाविक था। लेकिन वो बेचारा करता भी तो क्या करता। उसको पता था कि वो वलय से तर्कों में कभी जीत नहीं सकता। लेकिन कुछ और भी तरीके थे किसी को हराने के-
"रूम में मास्टर बेसन करना भी ऐसे वैचारिक प्रेम में शामिल है।....क्यों?"- मृगांक की खींझ व्यक्तिगत स्तर पर आ पहुंची थी।
"हाँ, क्योंकि तुम्हारी खूबसूरती मुझे मास्टर बेसन करने के लिये उकसाती है।"- वलय के इस जवाब ने कमरे में मानों सन्नाटा खींच दिया। मृगांक का चेहरा शर्म से एकदम लाल पड़ चुका था। बालों को सवारते रहने वाले मृगांक ने अपने बालों को ऐसा खो लिया था मानों उसको अपनी खूबसूरती पर चिढ़ हो आई हो। पहली बार उसे अहसास हो रहा था कि लड़को की ज्याद खूबसूरती उन्हें संदेह का पात्र बना देती है।
इससे पहले व्यक्तिगत बातों का एक घोर युद्ध शुरू हो जाता प्रोफेसर मारतन्डे को अपना अधिकार दिखाना पड़ा। इस वक्त उनकी आंखें चश्में के पीछे से वलय पर टिकी हुई थीं।
"मिस्टर वलय.....एक तरफ आप जितने तार्किक है दूसरी तरफ उतने बदतमीज भी। ऐसी उदद्दन्डता मैं अपनी क्लास में बरदाश्त नहीं करता और न ही आगे करना चाहूंगा लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि आप आज से मेरी क्लास में नहीं रहेंगे। आप रोज इसी जगह मेरी क्लास में मुझे बैठे हुये दिखने चाहिये।.......और मिस्टर मृगांक आप.....आप अगर जवाब दे तो उसकी आलोचना भी सुनने के लिये मानसिक तौर पर तैयार रहें। मेरी क्लास खत्म होने में अभी कुछ समय शेष हैं मैं चाहूंगा कि प्रेम के ऊपर जो चर्चा हमनें शुरू की थी वो एक स्वीकारात्मक जवाब के साथ खत्म हो।.....अगर किसी और ने मिस्टर मृगांक से कुछ अलग और बेहतर लिखा हो तो पढ़े।"
वैसे तो लोग चाहे अपने फैन्शी जवाबों को पढ़ने की हिमाकत दिखाते भी लेकिन क्लास के टॉपर के जवाब की धज्जियाँ उड़ती देख किसी की मजाल न हो सकी। वलय का इस क्लास में आना अब सारे लड़कों को अखरने लगा था।
"मिस्टर वलय प्रेम के बारे में शायद आप अपनी कोई व्यापक परिभाषा देना चाहे......"- प्रोफेसर मारतन्डे ने क्लास में छाई हुई चुप्पी का कारण भाप लिया था-"....कम से कम शब्दों में और 5 मनट के भीतर आप अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं।....."
"समय और शब्दों की सीमाओं में बंधकर मैं कुछ नहीं कह पाऊंगा सर्...."
"अगर ऐसी बात है तो मैं तुमको इन दोनों से मुक्त करता हूँ। तुम्हारे हिसाब से प्यार की सच्चाई क्या है?"
कमरे में कानाफूंसी और फुसफुससाहटों का शोर बढ़ चला।
तब वलय की गम्भीर और बुलंद आवाज कमरे के शोर पर भारी पड़ी-
"प्यार बिमारियों का कोई बंडल नहीं बल्कि भावनाओं का एक स्तर है.....आप किसी की ज्यादा परवाह करते हैं किसी की कम, किसी को ज्याद पसंद करते हैं किसी को कम, किसी की चोट आपको ज्याद तकलीफ पहुचाती है किसी की कम...प्यार आपको पहले से ज्यादा सक्रिय बना देता है.....क्योंकि भावनाओं को महसूस करने का स्तर बढ़ जाता है।....हो सकता है बारिश में भींगना पहले आपको पसंद न रहा हो लेकिन जिससे आप प्यार करते हैं अगर उसे बारिस में भींगना पसंद है तो आपको भी बारिश में भींगना भायेगा। प्यार वो भावना है जो हमारी पसंद और नपसंद को भी काफी हद तक बदल देता है। जिससे आप प्यार करते हैं वो अगर वेजीटेरियन हो तो उसकी खुशी के लिये आप भी नॉनवेज खाना छोड़ सकते हैं।....प्यार हमारी भावनाओं और अहसास को किसी और तक टेलीपोर्ट करके उसे भी प्रभावित कर सकता है। अगर हम रो रहे हैं तो किसी और को भी रोना आ जायेगा। चोट लगने से अगर हमें तकलीफ हो तो वो तकलीफ किसी और को भी महसूस होगी।"
वलय को पहले ही समय सीमा से मुक्त कर दिया गया था।
"प्यार वो भावना है जिसके माध्यम से आप किसी व्यक्ति विशेष के अच्छे या बुरे दोनों क्रिया-कलापों पर अपना नियंत्रण व प्रभाव देखना चाहते हैं। प्यार ही किसी प्रेमिका को ये अधिकार देता है कि वो प्रेमी के मुँह से सिगरेट छीनकर फेंक दे। गलती करने पर एक माँ ही अपने बच्चे को पीट सकती है। एक बाप अपने बेटे पर हाथ उठा देता है।"
प्रोफेसर मारतन्डे बड़े गौर से वलय के शब्दों को सुन रहे थे।
वलय का जवाब अभी खत्म नहीं हुआ था-
"प्यार वो भावना है जो बिना किसी तर्क के इंसान को सहनशील बना देती है। इसलिये जब प्रेमिका मुँह से सिगरेट छीनकर फेंकती है तो प्रेमी को गुस्सा नहीं आता। मार खाता हुआ एक बच्चा कभी अपनी माँ पर हाथ नहीं उठाता। एक बेटा थप्पड़ खाकर कभी बाप पर पलटवार नहीं करता। सीमा पर तैनात एक देशभक्त हंसते-हंसते अपने सीने पर गोली खा जाता है।"
कमरे में एक गहरा मौन पसर चुका था।
सभी चेहरे पर गम्भीरता कुन्डली मारे बैठी थी।
वलय का जवाब अभी भी जारी था-
"प्यार वो भावना है जो हमें किसी की हर पल परवाह करना सिखाता है। रात को देर से घर न आने पर एक पत्नी अपने पति के लिये चिन्तित हो जाती है। माँ-बाप अपने बेटे के लिये परेशान हो जाते हैं और अंत में प्यार वो भावना है जो अन्य सभी विकृत भावनाओं को शान्त कर देती है। एक बाप का गुस्सा तब शान्त हो जाता है जब उसका बेटा उसके सीने से लग जाता है। एक माँ की सारी शंकायें आशंकायें समाप्त हो जाती हैं जब काम से उसका बेटा सही सलामत घर वापस लौट आता है। एक पत्नी का सारा शक और गुस्सा दूर हो जाता है जब उसका पति प्यार से उसे अपने सीने से लगा लेता है।......और अंत में मेरे व्यक्तित्व पर जो ऊंगली उठाई गई है उसके लिये.......कोई अगर प्रेम के सर्वोच्च बिन्दु को छू ले तो उसे कभी मास्टरबेशन करने की जरूरत महसूस नहीं होगी। क्योंकि प्यार के उच्च स्तर पर पहुंचने वाला इंसान अकारण कामुकता से बचता है और प्रेम के भ्रम में जीने वाला इंसान अति कामुक हो उठता है। इसलिये प्यार हो तो उच्च स्तर का वरना न हो।"
ठीक तभी क्लास के खत्म होने की वेल बज उठी।
"......वलय के इस रोचक जवाब के साथ आज की क्लास समाप्त होती है। उम्मीद करता हूँ मिस्टर वलय आपका इस क्लास में ये आखिरी दिन नहीं होगा।..."
"सर् मैं दबाव में कोई काम नहीं कर पाता लेकिन मैं कोशिश करूंगा।"
"हैव अ नाइस डे ऑल ऑफ यू...."
आज के लिये इस क्लास में उनका समय खत्म हो चुका था।
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