कोई कहानी नही ,कोई दौर नही ,कोई भाषा नही ,कोई शब्द नही ......मैंने म्रत्यु का लगभग साक्षात्कार कर लिया था ... कई बार ऐसा लगा जैसे यमराज मेरे समीप हैं मुझे बुला रहें है ....मैं भी उनसे मिलना चाहता था .रोज उनसे मुलाक़ात तो करता लेकिन कभी उनके साथ जा नही पाता...क्यूंकि हम दोनों के दरमियाँ कोई खड़ा था रोड़ा बनकर ...जिसकी आज तनिक भी चाहत नही है की मैं उससे मिल जाऊं .....
मैं मर जाऊं ये कोई नही चाहता लेकिन मैं अपना काम छोड़ दूँ ये वहुत सारे लोग चाहते हैं ...... मेरा काम ही मेरे लिए जीवन हैं ..इसीलिय खुद ही कहता हूँ मुझे कोई नही मर सकता क्यूंकि मुझे इक्षा म्रत्यु का वरदान प्राप्त है ,.....
मैं जानता हूँ तुम वापस नही आ सकती कभी भी ...सजीव होकर लेकिन फिर भी तुम्हे जी रहा हूँ क्यूंकि तुम मेरी आदत हो और तुमने भी मुझसे वादा लिया था कि हम कभी भूलेंगे नही तुमको ....
पता है आज भी अभी भी ,इस वक्त भी मुस्कुरा रहा हूँ मैं तुम्हें और तमसे जुडी हर बात को याद करके ....याद है तुम्हे ये बंगला जिसकी हर चीज तुमने बड़े करीने से सजा कर अपने हांथों से सम्हाला था ...आज भी उनको स्पर्श कर तुमको मेहसूस कर लेता हूँ ....
वो तुम्हारा आईने के सामने स्टूल पर बैठ बाल बनाना ..... ओंस की गीली बूंदों को समेंटे अपने केशुओं से लहराकर मुझको जगाना सब वहुत याद आने लगा है आज कल ....... याद है तुमको ये बैरी नवम्बर फिर से आ गया है जो फिर से मझे सताने लगा है ....|
तुमको कैसे बताऊं कि क्या चल रहा है मेरे साथ .... मैं कैसे कहूँ कि सब वेहतर है पहले की तरह ...आज खुद से दूर हो गया हूँ ....वो आईने के सामने खड़ा होकर ....मुस्कुराकर ...बालों को सहलाकर तुमसे पूंछना ..कैसा लग रहा हूँ ..?
और तुम्हारा मुस्कुराकर हर बार बाला जबाब - एक दम हीरो ...
सुनने को कान तरसने लगें हैं ....जानता है दिल की अब ये नही सुनने को मिलेगा लेकिन फिर भी कभी कभी साला मुंह पर आ ही जाता है - सोनल कैसा लग रहा हूँ मैं ...?
और एक अनंत खामोशी के साथ आँखों में आंसू लिए कुछेक छण के लिए स्तब्ध हो जाता हूँ मैं ...
लेकिन अगले ही पल कलाई से पोंछ लेता हूँ आंसू आर मुस्कुराने लगता हूँ ...हंसने लगता हूँ एक झूठी हसी ......
तुमसे कोई शिकायत नही मुझे .... लेकिन प्रेम जरुर है ....और वो तुम्हारे जाने के बाद भी कम नही होगा ...ये तो लगभग तय हो चूका है .....|
अच्छा सुनो ,जिस तौलिये के लिए तुमने हमें पचासों बार आँखे दिखाई थी ....अब उसको करीने से टांगना आ गया है .... लेकिन आज भी कभी फेंक देता हूँ इधर उधर एक उम्मीद से ....कि शायद तुम फिर डांटने लगों ....|
खिड़की के पर्दे .. किताओं बाली रेग ... हमारे जीते हुई त्रोफियाँ ... सब तुमको वहुत मिस करते होने लेकिन बेजान हैं न ससुरे इसलिए साले बता नही पाते अपनी फिलिंग को ...
ये जो हरामखोर आइना है न जिसमे देखकर तुमने खुद को न जाने कितनी बार तैयार किया था ...साला जब देखो तब साला रोता रहता हैं... मैं कितना भी मुस्कुराऊं लेकिन ऐसा लगता है ..जैसे उसमें दिखने बाला शख्स श्याद रो रहा है .....
अच्छा सुनो, अब बदल भी गया हूँ थोडा सा ... अब किसको फ़िक्र है ...और किसकी मुझको फ़िक्र करना है ..इसलिए थोडा सा लापरवाह हो गया हूँ ..थोडा सा ....डांटना नही प्लीज
चार महीने से क्लीन सेव नही कराया है ...दाड़ी बढ़ा ली है थोड़ी सी ....हेयर स्टाइल भी कुछ अटपटा हो गया है ......
मेरे बाद अगर किसी ने तुमको सबसे ज्यादा मिस किया है तो मेरे बाल हैं.... तुम जब अपनी गोद में मेरा सर रखकर मेरे बालों पर अपनी उँगलियाँ फिराती थी न तो साला कंघी भी खुद ही हो जाते थे .....|
कुछ दिन पहले हमने चाय बनाई और उसको २ कपों में डालकर ले आया ..तुमको चार पांच बार आवाज दी मगर अफ़सोस तुम नही आईं.... रो पड़े हम अपनी नादानी पर ..अपनी वेवकूफी पर ..अपने आप पर .... वहुत देर तक याद नही कितनी देर ....लेकिन वहुत देर तक ....रोते रोते ...वहीँ सो गये ....
बस उस दिन के बाद हमने चाय बनाना भी छोड़ दिया ..
अब नही रुकता हूँ घर पे ...ज्यादा देर तक ...नही मिला पाता तुम्हारी तस्वीरों से आँखे .... नही सम्हाल पा रहा हूँ खुद को .... जब भी घर में जता हूँ काटने को दौड़तीं हैं तुम्हारी बातें ...तुम्हारी यादें ....
हर कौना ,हर हिस्सा मुझे तुमसा लगता है ,
कोई सपना हो सच जैसा ऐसा दिल कहता है .....