बुधवार, 21 नवंबर 2018

कोई जी के तो बताये ........2

हर पल सपना जैसे ,मेरा जीवन सारा...
एक तुम हो साथ मेरे ,सबसे वेहतर साथ हमारा |
अभी जो भी कुछ हो रहा है लगभग सब कुछ ख़ास हीहो रहा है  ..यक़ीनन सब बकबॉस है लेकिन फिर भी नजाने क्यूँ लगता है कि सब कुछ खास हैं ..|
मेरी समझ और दिमाग का लगभग दिवालियापन बाला समय है ...आज कल बैसेभी आपके सिवा कुछ सूझ ही कहाँ रहा हैं मुझे ...बैसेभी आप आदत बन कर मेरी रूह में बस गयीं थी ...मेरी जिजीविषा का एक अभिन्न हिस्सा बन गयी थी और आज भी है .... पिछले जितने भी वर्ष आपके साथ जिए ,,,,और फिर आपके बिना जिये हैं न उनमें सबस से ज्यादा याद आपको आपके बिना बाले वर्षों में ही किया हैं |आपका साथ मेरी हिम्मत ,मेरी ताकत दोनों ही था ....दोनों ही रहा और मुझे मजबूती देता रहा है  .... |जब भी खुद को अकेला पाताहूँ तो तुमको याद कर लेता हूँ और तुम्हारे साथ बिताए हसीं और वेहतरीन पलों में खोकर तुमको याद करके ...खुद को करीब मान लेता हूँ ...|पिछले ३ वर्षों में शायद ही कोई ऐसा वक्त रहा हो जब आपको याद किये बिना हमने गुज़ारा हो ...... तुम्हारे बिना कुछ इलाकों के नाम से ही नफरत करने लगा हूँ ... जहाँ भी हमने साथ वक़्त गुज़ारा ... वो जगह याद जरुर करता हूँ लेकिन तुम्हारी यादों के साथ दुबारा से फिर से वही जीना चाहता हूँ ......
२ साल हो चुके हैं भोपाल १० य ११ बार गया हूँ लेकिन कभी अपने आशियाने य कोलेज के आस आस भी नही गया .... डरता हूँ यहाँ अगर कुछ याद आ गया तो खुद को कंट्रोल नही कर पाऊंगा और ....शायद जज्बात बाहर निकल आयेंगे .....
सोनल एक बात तो साफ है  ये दुनियां आपकी मुस्कुराहट पर तो आपके साथ है लेकिन आपके दर्द में आपको न साथ देना चाहती है और न ही आपका दर्द बांटना चाहती हैं.....इसलिए अक्सर खुद के जज्बातों को सार्वजनिक जगहों पर बाहर नही आने देता हूँ |
लिखना तो जैसे आपके जाने के बाद छुट ही गया था ...और बैसे भि लिखता किसके लिए
जिनके लिए सजाई दुनियां,जिनके लिए जीना सिखा था
वो दुनियां छोड़ गए ...अब किसके लिय लिखना था
बड़ा मुश्किल हुआ बिना लिखे जीना मुझे .....एक तो आपका जाना उपर से मेरा लिखना छोड़ देना ....दोनों ही वजहों ने मुझे तोड़ सा दिया है ...
अब नही बनते भाव ... नही मिलते शब्द ....अब नही लिख पता ...नही हो आती है तुक बंदी ...शब्दों के भाव बदल जाते हैं ....जिस एहसास को व्यक्त करना चाहते हैं ....उसके अर्थ बदल जाते हैं.... नही बिठा पात़ा हूँ सामंजस्य शब्दों के बीच में ...... विद्रोह करने लगते हैं अब ...किसी को यकीं ही नही होता है ...कि जो कलम कल तक इश्क लिखती थी वो आज नफरत भी नही लिख पा रही है .... हकीकत कहूँ तो मुझे सिर्फ इश्क हुआ और उसके बाद सिर्फ दर्द
....इसके अतिरिक्त न मुझे कुछ हुआ ...न मैं किसी को मेहसूस कर पाया .....किसी से नफरत करने का कभी वक़्त नही मिला ....उस शक्स के साथ भी नफरत नही कर सका ...जिसने मुझे मारने के लिए किराए के कुत्ते भेजे थे और न ही उस शक्स से जिसकी बदौलत मेरे मिशन कि सफलता असफलता में तब्दील हो गयी थी ..... लेकिन अब आपके जाने के बाद मुझको सब कुछ होने लगा है ... अब दर्द से  ज्यदा क्रोध और क्रोध से ज्यादा नफरत होने लगी है ..... अब खडूस हो गया हूँ .... नही करता अब हर किसी से सीधे मुंह बात ....अब नही करता किसी को माफ़ चाहे वो कोई भी क्यूँ न हो.... चाहे उसकी गलती कितनी भी और कैसी भी क्यूँ न हो |
वो चंद शब्द वहुत मिस करता हूँ आपके ,जब तुम  गा कर कहती थी कि
जब हो कभी तन्हा खुद ही ..
मुझको पास न पाओं...
तब क्या करना है तुमको ..
आओ तुम्हें बतलाएं
आओ मेरे प्रियतम ....तुमको एक गीत सुनाएँ ..
खुद में मुझको खोजना ....
फिर खुद से मेरा पता पूंछना ....
जब मुखातिब हो आईने से आप ...
फिर  आइना तुमको ,मेरा अक्श दिखाए ...
आओ मेरे प्रियतम ....तुमको एक गीत सुनाएँ ...
काश इस गीत का अर्थ हम उस वक्त समझ जाते ....काश इन शब्दों का हकीकत से भी वास्ता हो सकता है ये हम जान जाते .....कभी न गाने देते तुमको ...कभी न गाने देते तुमको ये शब्द .......

अंतर्द्वंद

मेरी सोची हुई हर एक सम्भावना झूटी हो गई, उस पल मन में कई सारी बातें आई। पहली बात, जो मेरे मन में आई, मैंने उसे जाने दिया। शायद उसी वक्त मु...