गुरुवार, 22 नवंबर 2018

कोई जी के तो बताये ......3

तुम जब तक हमसे नही मिले थे मेरे कोई भाव नही थे,मेरा कोई मन नही था लेकिन अब है ... वहुत करीब बाला ...|तुमसे बिछड़ने के बाद मुझे याद आया है कि मैं कभी मै नही था ... बल्कि हम था क्यूंकि हमसे तो सबकुछ था लेकिन मैं से सिर्फ मैं हीं हूँ...और मैं शायद वहुत बुरा है ...हमसे |
रोज सोकर जागकर तुमको देखने कि आदत ने मुझे रोज सुबह से ही तुम्हारी जरूरत मेहसूस होने लगती है लेकिन तुम्हें अपने करीब न पाकर झुंझला जाता हूँ |कभी कभी लगता है तुम वहुत  दूर हो...इतने दूर कि अनंत आकाश के उस पार। इतने दूर कि दोनों आँखों से तुम्हें ठीक से देख नही पाता हूँ। एक आंख बंद करके तुम्हें देखने की कोशिश करता  हूँ और ये कोशिश भी तब करता  हूँ जब तुम सामने नही होती। तुम्हारी तस्वीर को एक आँख बंद करके देखता हूँ ठीक वैसे ही जैसे किसी को अच्छा खासा नशा हो गया हो। कभी कभी किसी शायर की शेर की शक्ल में दी गई नसीहत याद   आ जाती है कि  
बनके नशा जो आँखों में उतर आया है
वो दुनियां में नही तो क्या ,वो दिल में समाया है |
तुम्हें नजर के ज्यादा करीब ले आया हूँ  मैं एक हद होती है दिखाई देने की। खाली वक्त में कभी कभी अपनी उंगलिया चटकाते हुए ऐसा लगता है जैसे कुछ हसीन लम्हो को चटकाकर तोड़ रहा हूँ,कभी आईने के सामने खड़ा होकर खुद को ताककर मुझे खुद के खुद से जुदा होकर ऐसा बन जाने पर अचरज हो जता है | मुझे खुद की क्रूरता पर आश्चर्य होता है मै खुद के प्रति इतना निर्मम कब से हुआ मुझे खुद ही पता न चला। तुम सच में बहुत दूर हो? या यह मेरा महज एक वहम है! मेरा दिल इसे वहम ही करार देता है मगर दिमाग कहता है जो दिल में है, सिर्फ वही करीब है! !
मैं तुम्हें परछाईयों में नही तलाशना चाहता ना तुम्हारी छाया की पीछा करना चाहता हूँ, हो सके तो मुझसे किसी दिन अँधेरे में मिलो मैं तुम्हारी उपस्थिति महसूसना चाहता हूँ इसके लिए मुझे रोशनी की जरूरत नही है क्योंकि रोशनी में केवल तुम्हारी छाया दिखाई देती है तुम नही।
मैं चन्द्रमा के शुक्ल पक्ष से कृष्ण पक्ष में जाने तक प्रतिक्षा करूंगा,मैं तुम्हें अँधेरे में खुली आँखों से देखना चाहता हूँ ये चाह थोड़ी अजीब जरूर है मगर मुझे रोशनी में तुम्हें एक आँख से देखने में अब अच्छा नही लगता यदि तुम सोच रही हो कि मै कहूंगा कि मुझे ऐसा करके डर लगता है तो ये सच नही है तुम्हारे साथ मुझे इतनी आश्वस्ति है कि अब मुझे डर किसी बात का नही लगता।जैसे तुमको मेरे साथ चलने में ...घुमने में फिरने में ,किसी भी तरह कि कोई दिक्कत नही थी ...कोई डर नही था ...किसी का डर नही था | फ़िलहाल जगजीत की एक गजल बज रही है
 अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना...

मैं खुदकी ऐसी मासूम तमन्ना पर हंस रहा  हूँ, मुझे पता है तुम जाने के लिए ही आओगे मगर मैं पूरे दिल से चाहता हूँ तुम जरूर आओ उसे पूरा करने के लिए जो सिर्फ तुम्हारे बिन अधूरा है और इस दुनिया मे सिर्फ तुम से ही पूरा होगा......

अंतर्द्वंद

मेरी सोची हुई हर एक सम्भावना झूटी हो गई, उस पल मन में कई सारी बातें आई। पहली बात, जो मेरे मन में आई, मैंने उसे जाने दिया। शायद उसी वक्त मु...