इन आँखो ने वहुत से
मंजर देखे है,
लहु के समन्दर
वहते देखे है,
जिन्हे हम अपना यार
समझते रहे ता-उम्र,
उनके दिलो में भी
अपने लिये शूल देखे है,
लोग कहते है हमसे,
तुम लीक से क्युँ हट गये अपनी?,
हमने इस राह में दोस्त भी
दुश्मन देखे है,
वो कह रहे हमसे कि तेरे
ख्यालात् क्यु पुराने है,
क्या बताऊँ उनको
इन आँखो ने वही स्वप्न पुराने देखे है
,अक्सर जो कहते है
आप क्यु मायूस रहते हैं इतना ,
उनसे बस चन्द लब्जों
में कुछ कहना है
जिनके आने का किया इतंजार वर्षो,
उनकी निगाहो में किसी गैर के स्वप्न देखे है,
जी.आर. दीक्षित
(अपने निजी जीवन पर)
मंजर देखे है,
लहु के समन्दर
वहते देखे है,
जिन्हे हम अपना यार
समझते रहे ता-उम्र,
उनके दिलो में भी
अपने लिये शूल देखे है,
लोग कहते है हमसे,
तुम लीक से क्युँ हट गये अपनी?,
हमने इस राह में दोस्त भी
दुश्मन देखे है,
वो कह रहे हमसे कि तेरे
ख्यालात् क्यु पुराने है,
क्या बताऊँ उनको
इन आँखो ने वही स्वप्न पुराने देखे है
,अक्सर जो कहते है
आप क्यु मायूस रहते हैं इतना ,
उनसे बस चन्द लब्जों
में कुछ कहना है
जिनके आने का किया इतंजार वर्षो,
उनकी निगाहो में किसी गैर के स्वप्न देखे है,
जी.आर. दीक्षित
(अपने निजी जीवन पर)
http://puran-asija.blogspot.com/2012/02/naam-simran.html
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