जलती-तपती दोपहर
वो भूँखा गरीब बेचारा,
दिन भर लहू सा पसीना वहाता फिरता हैं,
खाने को खुद मोहताज बच्चो को क्या देता है,
वस्त्र तन पर वही चिथड़े बच्चो को क्या परवरिश देता हैं
सर्दी में कपड़े नही तन ढकने करने को,
कैसे कहदे वो बच्चो को स्कूल चलने को,
कटती रातें सपनो से पूरे एक नही होते
गरीब बेचारे जो ठहरे अपनी किस्मत पर रोते,
हम करते हैं उनके सपने पूरे अपना हाथ बढ़ा कर,
दिलवाते हैं उसको सफलता, अपने काँधो पर चढा कर,
एक सीढी का हम काम करते हैं,
कुछ के पथ-प्रदर्शक बनते हैं,
हम उन्हें अपना समझ उनका दर्द समझते हैं,
इसी वजह से हम उनके अपने बनतेहैं,
हम युवराज नही,युराज हैं दोस्त
जो सिर्फ राष्ट्र हित में जीते मरते हैं।
दाऊ जी
दिन भर लहू सा पसीना वहाता फिरता हैं,
खाने को खुद मोहताज बच्चो को क्या देता है,
वस्त्र तन पर वही चिथड़े बच्चो को क्या परवरिश देता हैं
सर्दी में कपड़े नही तन ढकने करने को,
कैसे कहदे वो बच्चो को स्कूल चलने को,
कटती रातें सपनो से पूरे एक नही होते
गरीब बेचारे जो ठहरे अपनी किस्मत पर रोते,
हम करते हैं उनके सपने पूरे अपना हाथ बढ़ा कर,
दिलवाते हैं उसको सफलता, अपने काँधो पर चढा कर,
एक सीढी का हम काम करते हैं,
कुछ के पथ-प्रदर्शक बनते हैं,
हम उन्हें अपना समझ उनका दर्द समझते हैं,
इसी वजह से हम उनके अपने बनतेहैं,
हम युवराज नही,युराज हैं दोस्त
जो सिर्फ राष्ट्र हित में जीते मरते हैं।
दाऊ जी
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