गुरुवार, 19 जून 2014

लङकी जन्म से ही संस्कारों की छांव में पाली जाती है लङकी समाज के रिति रिवाजों के संग चलने को मजबूर की जाती है लङकी सदैव मर्यादा की जंजीरों से जकङी जाती है लङकी उच्च शिक्षा से अक्सर वंचित की जाती है लङकी कम उम्र में ही ब्याह दी जाती है लङकी मायके के संस्कार अपने संग लिए चलती है लङकी ससुराल में अपने पूर्व संस्कारो के बीज बोती है लङकी अगर शिक्षित हो तो अपने नए परिवार में शिक्षा का प्रकाश फैलाती है लङकी मुस्कुराते हुए हर जिम्मेदारी निभाती है कठोर पुरूष हृदय को वह मृदुल बनाती है लङकी हर कदम पर तराशी जाती है जागरूक वही लङकी अब अपने हक के लिए लङती है पुरूष प्रधान मानसिकता की छवि धूमिल वह करती है बढा कदम ऐसे ही वो अपनी चमक बिखेरती है गायत्री शर्मा


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