ये कैसा मशविरा है ये कैसा ख्वाब है,
तालाब तो हाजिर है मगर बे-आब है.
तालाब तो हाजिर है मगर बे-आब है.
दुनिया में आदमी और सिबाये-फ़िक्र,
ये कैसी हकीकत है, ये कैसा ख्वाब है,
ये कैसी हकीकत है, ये कैसा ख्वाब है,
आती कहाँ से हैं ये फ़िक्र-ओ-मुश्किलें,
खुद आदमी करता इनका इंतखाब है.
खुद आदमी करता इनका इंतखाब है.
जिंदगी की कैद कि बंदिश हो ग़मों की,
जीते जी हट न पायेगा ये वो हिज़ाब है.
जीते जी हट न पायेगा ये वो हिज़ाब है.
कभी झांक कर तो देख तू अपना बजूद,
तुझमें रोशन है कहीं, यही आफताब है.
तुझमें रोशन है कहीं, यही आफताब है.
ये मुश्किलें नहीं हैं सरूर-ए-हयात हैं,
जोशे-जनूने-खूं है, न नशा-ए-शराब है.
जोशे-जनूने-खूं है, न नशा-ए-शराब है.
कायम है जहां का बजूद मुश्किलों से ही,
वरना ये जिंदगी तो मानिन्दे-हबाब है.
वरना ये जिंदगी तो मानिन्दे-हबाब है.
कितनो ने पाल रक्खा जिंदगी का बहम,
हकीकत ही नहीं जिसकी ये वो सराब है.
हकीकत ही नहीं जिसकी ये वो सराब है.
साये हैं जुल्मतों के दुनिया में बे-हिसाब,
सबको न मिल सकेगा कि ये माहताब है.
सबको न मिल सकेगा कि ये माहताब है.
भर गया जब से है नज़रों में गर्दे-फितूर,
कैसे देखेगा 'अली' जो हर तरफ सेराब है.
कैसे देखेगा 'अली' जो हर तरफ सेराब है.
मशविरा = सुझाव, बे-आब = सूखा/बिना पानी, सिबाये-फ़िक्र = कष्टों के बिना, इंतखाब = चुनाव, हिजाब = परदा, आफताब = सूर्य, सरूर-ए-हयात = जिंदगी का नशा/खुमार, जोशे-जनूने-खूं = रक्त का उबाल और उन्माद, मानिन्दे-हबाब = बुलबुले के समान, सराब = मृतृष्णा, जुल्मतों = अंधेरों, माहताब = चन्द्रमा, गर्दे = फितूर = धुंधलापन, सेराब = हरियाली।
ऐ एस खान जी
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