अमेरिका जाने
से पहले मोदी ने अपने मेड इण्डिया प्रोजेक्ट को तो मंजूरी दे दी लेकिन क्या हकीकत
में वो एषा कर पायेंगे ये तो वक़्त बताएगा लेकिन एस समय मोदी ने अपनी चुनावी रैलियों
को दोहराते हुए एक बार फिर कई जुम्ले सुनाए। लेकिन इन जुम्लों में कहीं भी
घरेलू स्तर पर आर्थिक चुनौतियों से निपटने का कोई संकेत नहीं मिला। अमेरिकी
यात्रा से पहले मोदी ने लूक ईस्ट को लिंक वेस्ट के साथ जोड़ दिया। जापान से 35 अरब डॉलर और चीन से 20 अरब डॉलर के निवेश का वादा लेने के बाद
अमेरिका से भी बड़ी मात्रा में निवेश मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।
हमें ख़ुशी होगी
अगर मोदी अपने मिशन में सफल होंगे लेकिन हकीकत और आंकड़े तो कुछ और ही बयाँ कर रहे
हैं | अगर हकीकत में बात की जाए मोदी के पिछले दिनों में सत्ता
में आने के बाद से जो काम किये हैं उनमे और उनके चुनावी बादो में क्या अंतर है तो बात
करना ही बेकार होगा क्यूंकि वो अपने वादों से कोसों दूर हैं अभी |
हो सकता है आने बाले समय में वो
अपने वादे पूरे करें लेकिन इससे वो जो खोने बाले हैं इसका उन्हें जरा भी अंदाज़ा
नही है |पिछले दिनों उपचुनावों ने उन्हें बताने की कोशिश की है की हकीकत में उनकी
छवि को जनता के बीच में कितना नुक्सान हुआ है |
पिछले २० सालों के बाद भारत को
कोई एषा प्रधानमंत्री मिला है जिसे पूर्ण वहुमत वहुमत मिला हो और जिस करोणों
लोंगों ने केंद्र में रख कर वोटिंग की हो और उसे केंद्र तक पहुँचाया हो ...मगर सच
में मोदी ने जनमत द्वारा दिए गए अब तक के समय को बर्बाद ही किया है क्यूंकि देश की
जनता को अगर उनसे किसी खास विषय में कोई उम्मीद थी तो वो थी देश की अर्थव्यवस्था
में सुधर और देश की सीमा विवाद का हल ....और उन दोनों में ही मोदी को वहुत ज्यादा
निरास किया है |
हर पार्टी चुनाव से पहले वादे
करती है और बाद में उसको भुला देती है हो सकता है मोदी आने बाले समय में अपने बादो
को पूरा करें भी लेकिन तब तक वहुत देर हो
चुकी हो गयी होगी |
आश्चर्य की बात यह है कि मोदी ने जहां अपेक्षित से कम प्रदर्शन किया
है वह उनकी महारत का केंद्रीय विषय है-अर्थव्यवस्था! वे प्रमुख सुधारों की घोषणा
करने में सुस्त रहे हैं। उनका पहला बजट तो निराशाजनक रहा और कैबिनेट में
उनकी कई नियुक्तियां भी फीकी रही हैं। सुधार की उम्मीद लगाए बैठे लोगों में
जिन्हें सब्सिडी, व्यापार नीति या लेबर मार्केट में महत्वपूर्ण बदलाव की अपेक्षा थी, उन्हें बहुत निराशा हुई।
लेकिन हा मोदी ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर
बहुत कुशलता दिखाई है। उन्होंने जापान को लुभाया और चीन की हलके शब्दों में आलोचना
कर दी। फिर पीछे हटकर बीजिंग को गले लगा लिया। इस तरह से उन्होंने दोेनों से निवेश
हािसल कर लिया। हालांकि, यह अपेक्षआ से कम रहा। वे सीधे-सीधे अमेरिका समर्थक हैं और लगभग एक
दशक तक उन्हें वीजा देने से इनकार करने के बाद भी अमेरिका के लिए उनके मन में
दुर्भावना नहीं है। और फिर भी उन्होंने भारत के पुराने सहयोगी रूस को छोड़ा नहीं है
तथा यूक्रेन में उनकी कार्रवाइयों पर चुप्पी साधे रखी है और इस तरह उसकी सद्भावना
बनाए रखी। लेकिन इस सद्भावना के बीच वो देश की सीमा पर हो रहे आये दिन विवादों को ढंग
से उठाने और करारा जवाव देने में नाकाम रहे हैं |
भारत के आर्थिक रास्ते पर अब भी कई गतिरोध है और प्रमुख व आवश्यक
सुधार लागू करने में देरी आगे जाकर मोदी की परेशानी की वजह बन सकती है। मॉर्गन
स्टेनली के इमर्जिंग मार्केट्स के प्रमुख रुचिर शर्मा ने पिछले दो दशकों में
दुिनया के 20 सबसे बड़े लोकतंत्र के नेताओं के हश्र का अध्ययन किया है। इसमें
उन्हें खास पैटर्न दिखाई देता है। वे नेता, जो सत्ता में आने के बाद जल्द ही
सुधार लाते हैं, उन्हें बाद के वर्षों में इसका फायदा मिलता है। समझा जाता है कि
आंशिक रूप से ऐसा इसलिए है कि कष्टदायक बदलाव लाने के लिए उनके पास पहले वर्ष में
राजनीतिक पूंजी होती है। दूसरा वर्ष आते-आते, उन देशों में जहां के नेताओं ने
शुरुआती हनीमून अवधि को बर्बाद किया और आर्थिक सुधारों को जरूरत से ज्यादा देर तक
टाला, बाजार पीछे हटने लगते हैं व शुरुआत में उन्होंने जो भी हासिल किया
होता है, वह खो देते हैं। शर्मा जापान का उदाहरण देते हैं, जहां सरकार की ओर से वास्तविकता
से ज्यादा सुधारों का वादा कर दिया गया। नतीजा यह हुआ कि अब तक जापान में आर्थिक
वृद्धि और बाजार का प्रदर्शन उत्साहहीन रहा है।
अभी कुछ मुद्दों पर तो मोदी ने ध्यान देना भी
शुरू नही किया है ...पता नही उनका सच क्या है लेकिन हकीकत में मेड एन इण्डिया और
फर्स्ट मेड इण्डिया जैसे नारों के बीच कुछ जरुरी मुद्दों पर बात न करना उनमे सुधार
लाने का प्रयास न करना ........
सीमा सुरक्षा विवाद
भारत चीन सीमा और पाकिस्तानी सीमा पर आये दिन
होती मुठभेड़ें ...रोज होती घुसपैठ ने न सिर्फ आमजन को परेशां कर रखा है वल्कि
जवानों की जान पर बनी हुयी है लेकिन इस तरफ प्रधानमंत्री महोदय का जरा भी ध्यान
नही .................उन्होंने चुनाव से पहले कहा था की हम देश के दुश्मनों से को
कदा जवाब देनेगे लेकिन आज तक कोई कडा जवाब तो दूर वो इसका कूटनीतिक हल भी नही कर
पाए हैं |
कोयले का संकट
सुप्रीम कोर्ट ने 1993 के बाद के निजी कंपनियों को आबंटिक 214 कोल ब्लॉक को रद्द कर दिया। यदि सरकार को
इस बात की आशंका पहले से ही थी कि कोल ब्लॉक का संकट सामने आ सकता है तो उन्होंने
अब तक इसके लिए कोई स्पष्ट रणनीति क्यों नहीं बनाई। आने वाले दिनों में देश
भर में कोयले की कमी का सामना करना पड़ सकता है।
जिसके दूरगामी परिणाम सामने आ सकते है मंहगाई और बढ़ जायेगी
और आमजन फिर से त्राहि त्राहि कर उठेगा |
बैंकों की बिगड़ी
हालत
देश के सुधार और प्रगति के लिए बैंको की मजबूती भी प्रमुख
है ... प्रधानमंत्री जनधन योजना के माध्यम से लोगों को बैंको से जोड़ने का मोदी ने
सराहनीय काम किया लेकिन वो बैंको की हालत को भुला बैठे |
बैंकों को बेसल 3 मानकों को पूरा करने के लिए 2.2 लाख करोड़ रुपए जुटाने की जरूरत है। वहीं, रिजर्व बैंक के मुताबिक, बैंकों के पास रीस्ट्रक्चरिंग करने के लिए
8 लाख करोड़ रुपए का लोन पाइप लाइन में फंसा
हुआ है। ऊपर से कोयला ब्लॉक रद्द होने की वजह से बैंकों के करीब 3 लाख करोड़ रुपए का कर्ज और फंस गया है।
सरकार की ओर से अब तक बैंकों की आर्थिक हालत को ठीक करने लिए कोई प्रभावी कदम
नहीं उठाया।
गैस की कीमत
चार सचिवों की
समिति ने अपनी रिपोर्ट दे दी है। माना जा रहा है कि रिपोर्ट में गैस की
कीमतों को दोगुने से कम रखने की सिफारिश की गई है। रिलायंस इंडस्ट्री को
लगातार सरकार पर गैस की कीमतों को बढ़ाने के लिए दबाव बना रही है। ऐसे में सरकार
बीच का रास्ता अपनाने की कोशिश कर रही है। जिससे उपभोक्ताओं और इंडस्ट्री पर
ज्यादा बोझ न पड़े। सरकार ने 15 नवंबर तक नई गैस कीमतों पर फैसला टाल दिया गया।
24 घंटे बिजली
नरेंद्र मोदी की
सरकार चुनाव से लेकर अब तक पूरे देश को 24 घंटे और सातों दिन बिजली देने का दावा कर रहे हैं। ऊर्जा मंत्री पीयुष गोयल
ने कहा है कि कोल इंडिया का प्रोडक्शन 50 करोड़ टन से बढ़ाकर 1 अरब टन हो जाएगा जिससे अगले पांच साल में
सबको 24 घंटे बिजली मिलेगी।लेकीन हकीकत तो ये है
की ये सिर्फ स्वप्न ही क्यूंकि हकीकत में इसको संभव करने के लिए जितनी मात्र कोयले
की चाहिए या संसाधनों की उसका आधा भी नही रह जाएगा सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद |
पावर संयंत्रों के पास कोयला नहीं है, निजी कंपनियां पावर सेक्टर से बाहर निकलना चाहती हैं, हाइड्रो, सोलर और विंड पावर की उत्पादन क्षमता कम है।
महंगाई
मोदी ने चुनाव
में महंगाई को बड़ा मुद्दा बनाया था। लेकिन नई सरकार बनने के बाद भी महंगाई के स्तर
पर कोई राहत नहीं मिली। अगस्त में खाद्य महंगाई दर बढ़कर 9.42 फीसदी हो गई है। वहीं, रिटेल महंगाई दर 7.8 फीसदी रही है।
सरकार के अपने निजी आंकड़े है जो
पिछली सरकार की तरह ही हैं हकीकत से दूर |
गंगा स्वक्षता
मोदी के बनारस से चुनाव जीतने और गंगा के शुधि करण के लिए जरुरी कदम उठाने के
वादे के साथ गंगा को सुध्द करने एवं बचाने जैसे वादों ने जनता से उम्मीद जगाई थी
लेकिन हकीकत में कुछ नही हुआ ...सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के द्वारा प्रस्तुत
रिपोर्ट आऔर प्रोजेक्ट को गलत बताया और दूसरा एजेंटे को प्रस्तुत करने को कहा|अपने पहले कार्यकाल में
गंगा को शुद्ध करने की बात करने बाले मोदी की ही सरकार ने स्वीकार है की १८ साल
लगेंगे गंगा को स्वाक्ष बनाने में |
शेष जल्द ........
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