उनको आये हुए काफी वक़्त बीत चूका था ,लेकिन अभी
तक वो मुझसे मिलने नही आई थी ...मैं इतना जरुर जानता था की वो मुझसे मिलने जरुर
आएगी..लेकिन कब शाम के छ: तो बज चुके हैं अभी नही आई तो फिर कब आएगी ........ अभी
हम उनका ढंग से दीदार ही कहाँ कर पाए थे जो उनके बिना मन लग जाता |सारा दिन उल्टा
ही कटा अभी भी मुझे चैन नही मिल रहा था अभी भी मुझे लग रहा था की मुझे उनसे जाकर
मिलना चाहिए .......किसी भी काम में न मन लग रहा था और न ही कोई काम करने का दिल
कर रहा था .......एक एक पल बड़ी सिद्दत के साथ और बेसब्री भरे लहजे में काट रहा था
|
जब मेरे सब्र का इम्तिहान फ़ैल हो गया और मेरा मन उनसे मिलने को कुछ ज्यादा ही लालियत हो उठा तो मैंने खुद उनके पास जाने का निश्चय किया |
दिल में दबी हुयी लाखों हसरतों के बीच हज़ारों
सवाल थे हमारी जुदाई के बीच के कारणों के साथ वहुत साड़ी बातें जो हमने उनकी जुदाई
के बाद सोचकर राखी हुयी थी आज सब करने का दिल कर रहा था |मुझे खुद पर यह सोच सोच
कर हसी आती है की मेरी हमसफ़र और मेरी जिन्दगी आज किसी ऐशे सखस के हाथ में है जो
पूरी तरह उनसे अपरचित है |
मेरा सब्र ख़त्म हो चूका था इसलिए मैंने अपने
कदम उसके कमरे की तरफ बाढा दिए ......हमारे कदमो की आहाट न हो इसलिए हम आहिस्ता
आहिस्ता कदमो को रखते हुए उनके कमरे के दरवाजे तक पहुंचे |वहुत दिनों बाद एस तरफ
आये थे कुछ भी नयापन नही था बस दरवाज को पहले खटखटाने का मन किया लेकिन फिर सोचा
अगर चुपके से जाते हैं तो देखेंगे क्या रिएक्ट होता है |
मैंने हलके से पंजे के सहारे दरवाजे को अन्दर की तरफ धकेला और हलकी सी साँस मिलने के बाद पहले अपने चेहरे को अन्दर जाकर कमरे की हालत और उनकी स्थानापस्थिति की जानकारी ली ..मगर जैसे ही अन्दर चेहरा धसाया था की मुझे लगा जैसे हम फिर पुराने दिनों में लौट चुके हैं बही पुरानी खुशबू बही पुरानी रंगत ...............कमरे का कुछ भी नही बदला था ...हर सामान ज्यूँ का ट्यून पूरी तरह से व्यवस्थित था ......उस नज़ारे को देखकर मेरे चेहरे पर मुस्कान तैर गयी कहाँ मेरा अब रहने लगा अव्यवस्थित कमरा कहाँ उनका ??
मैंने अपने कदम चुपके से अन्दर बढ़ाये और ज्यूँ ही सामने का नज़ारा देखा तो ठिठक गया ....... कुछ ही दूरी पर वो एक स्टूल पर बैठकर सामने के आईने में खुद को निहारते हुए अपने केशुओं को कंघी कर रही थीं| आइनें के सामने अपने आपको निहारती अपने रूप सौन्दर्य पर स्वंय ही मुग्ध हुए जा रही थी। अपनी कदली स्तम्भ सी सुन्दर टाँगें और स्कॉर्फ के बंधन से मुक्त लम्बी केशराशि को देखकर वह स्वयं ही हलकी हलकी मुसुकुरा रही थीं | उनके केशुओं से टपकती मोतिओं के समान पानी की बूंदे मुझे पुराने दिनों की याद दिला गयीं जब हर सुबह इन केशुओं के साथ होती थी ...मुझे हर रोज सुबह इन्ही रेशमी जुल्फों के सहारे सुबह सुबह जगाया जाता और मुझे पूरा वक़्त मिलता उनमें उँगलियाँ फिराने का उनसे उठकर सम्पूर्ण वातावरण को सुगन्धित करती सुगंध को महसूस करने का |
मैंने हलके से पंजे के सहारे दरवाजे को अन्दर की तरफ धकेला और हलकी सी साँस मिलने के बाद पहले अपने चेहरे को अन्दर जाकर कमरे की हालत और उनकी स्थानापस्थिति की जानकारी ली ..मगर जैसे ही अन्दर चेहरा धसाया था की मुझे लगा जैसे हम फिर पुराने दिनों में लौट चुके हैं बही पुरानी खुशबू बही पुरानी रंगत ...............कमरे का कुछ भी नही बदला था ...हर सामान ज्यूँ का ट्यून पूरी तरह से व्यवस्थित था ......उस नज़ारे को देखकर मेरे चेहरे पर मुस्कान तैर गयी कहाँ मेरा अब रहने लगा अव्यवस्थित कमरा कहाँ उनका ??
मैंने अपने कदम चुपके से अन्दर बढ़ाये और ज्यूँ ही सामने का नज़ारा देखा तो ठिठक गया ....... कुछ ही दूरी पर वो एक स्टूल पर बैठकर सामने के आईने में खुद को निहारते हुए अपने केशुओं को कंघी कर रही थीं| आइनें के सामने अपने आपको निहारती अपने रूप सौन्दर्य पर स्वंय ही मुग्ध हुए जा रही थी। अपनी कदली स्तम्भ सी सुन्दर टाँगें और स्कॉर्फ के बंधन से मुक्त लम्बी केशराशि को देखकर वह स्वयं ही हलकी हलकी मुसुकुरा रही थीं | उनके केशुओं से टपकती मोतिओं के समान पानी की बूंदे मुझे पुराने दिनों की याद दिला गयीं जब हर सुबह इन केशुओं के साथ होती थी ...मुझे हर रोज सुबह इन्ही रेशमी जुल्फों के सहारे सुबह सुबह जगाया जाता और मुझे पूरा वक़्त मिलता उनमें उँगलियाँ फिराने का उनसे उठकर सम्पूर्ण वातावरण को सुगन्धित करती सुगंध को महसूस करने का |
भले ही हम आपस में कई कई दिन बात न करें लेकिन
हमसे हमारा ये अधिकार नही छीना जाता था .....मगर आज ये रेशमी जुल्फें छूने को
हांथों की उँगलियाँ तरस गयीं थी .....मेरे हाँथ फड़क उठे उंगलिया मचलने लगीं दिल
किया की जाकर उनके पीछे जाकर उनके हाँथ से कंघे को हटाकर अपनी उँगलियों से उनके
बाल सम्हाल लूँ इससे मेरे दिल को सुकों और उँगलियों की हसरत पूरी हो जायेगी |मुझे
नही मालूम की हारी बीच क्या बिगड़ा की आज हमसे हमारा अधिकार छीन लिया गया कभी एन
रेशमी जुल्फों और उस मोहक मुस्कान के बिना एक पल भी जीना मुझे नागवार लगता था पर
पता नही क्यूँ और कैसे मैं अब तक जी रहा था |
मैं बस ज्यादा सोचना नही चाहता था इसलिए मैंने
फैसला किया की उनके पास चुपके से जाकर उनको बाहों में जकड लेंगे और उन्हें अपने
दिल से लगाकर दिल के मिलन का रास्ता साफ़ कर देंगे |वहुत दिनों से तन्हाई में जी
रहा था बेचारा उसे भी अपनी मालकिन से मिलने आखिर अधिकार तो है ही न |
मैंने अपने कदम बढ़ाये और चुपके से उनकी तरफ बढ़ चला लेकिन उनको मेरा प्रितिविम्व शायद आईने में दिख गया और वो एक दम झट से खड़ी हो गयी |मेरे कदम ठिठक गए मुझे लगा जैसे मेरा कोई सपना टूट गया हो अरे यार क्या सोचा था और ये क्या हो गया है मेरी पूरी उम्मीदों पर अब पानी फिर गया था |
मैं अभी वहीँ जडवत हो कुछ सोच ही रहा था की उन्होंने मुझे अपने गले से लगा लिया उनके गले लगते ही एषा लगा मानो एक मृत्य शरीर में आत्मा का पुन: आगमन हो गया हो मुझे उस वक़्त तो ये लगा जैसे सारी दुनियां की खुशियाँ मुझे आज उस भगवान् ने एक ही बार में दे दी हों|
मैंने अपने हाँथ उपर उठाये और उनको अपनी बाहों के आगोश में जकड लिया |उनकी पकड़ तो इतनी मजबूत थी की मुझे लगा जैसे मुझे किसी अजगर ने जकड लिया हो |मेरी आँखों से ख़ुशी दर्द निकलकर पानी बनकर के आशुओं के सहारे कुछ मोती से स्वरुप झलक पड़े इधर मेरे सीने पर भी मुझे कुछ गीले पन का अहसास हुआ |
मैंने अपने कदम बढ़ाये और चुपके से उनकी तरफ बढ़ चला लेकिन उनको मेरा प्रितिविम्व शायद आईने में दिख गया और वो एक दम झट से खड़ी हो गयी |मेरे कदम ठिठक गए मुझे लगा जैसे मेरा कोई सपना टूट गया हो अरे यार क्या सोचा था और ये क्या हो गया है मेरी पूरी उम्मीदों पर अब पानी फिर गया था |
मैं अभी वहीँ जडवत हो कुछ सोच ही रहा था की उन्होंने मुझे अपने गले से लगा लिया उनके गले लगते ही एषा लगा मानो एक मृत्य शरीर में आत्मा का पुन: आगमन हो गया हो मुझे उस वक़्त तो ये लगा जैसे सारी दुनियां की खुशियाँ मुझे आज उस भगवान् ने एक ही बार में दे दी हों|
मैंने अपने हाँथ उपर उठाये और उनको अपनी बाहों के आगोश में जकड लिया |उनकी पकड़ तो इतनी मजबूत थी की मुझे लगा जैसे मुझे किसी अजगर ने जकड लिया हो |मेरी आँखों से ख़ुशी दर्द निकलकर पानी बनकर के आशुओं के सहारे कुछ मोती से स्वरुप झलक पड़े इधर मेरे सीने पर भी मुझे कुछ गीले पन का अहसास हुआ |
मेरे हाँथ उसकी पीठ से होते हुए उसकी रेशमी
जुल्फों में खोते जा रहे थे मुझे फिर बही पुराने अहसासों में खो जाने का एक सुनहरा
अवसर मिला था|पता नही क्यूँ आज मेरे मन के अन्दर बसा हुआ कोई कविस्वरूप जाग्रत
होता जा रहा था मन में न जाने कितनी साड़ी पंक्तियाँ बन रहीं थी |ये पल जिसे मैं खोना नही चाहता था |अनायाश ही मेरे
मुंह से निकल गया -
एक मुद्दत से इस अहसास के लिए तडपे हैं,
एक मुद्दत से इस अहसास के लिए तडपे हैं,
पाने को तुम्हारी चाहत,क्या क्या कर बैठे हैं ,
आज जब आप मिली तो लगा ,जैसे जन्नत मिली हो ,
इतने दिन तो बिना जान के गुजरे हैं |
इतना कहकर मैंने उसके सर पर मुंह रखकर बालों की
एक किस लेली ......मालूम नही उसे किस अच्छा नही लगा या फिर पंक्तियाँ या फिर उसे
इसकी उम्मीद नही थी उसने अपना सर उठाया और मुझे घूर कर देखा उसने मेरी आँखों में
बहते हुए आंशुओं को अपने नाजुक हांथों से साफ़ किया |और उसके बाद वो हलके से
मुस्कुराते हुए बोली-
दर्द अगर इतना ही था
तो एक बारी कह देते ,
हम भी अपना दर्द बांटकर ,
तुममे ही जी लेते |
उनके ये शव्द सुनकर दिल को लगा जैसे मैंने खोई
हुयी अपनी सारी दौलत पाली हो .....मुझे उनका ये शायराना अंदाज वहुत अच्छा लगता था
ये हमारी हमेशा से ही पहली पसंद थी | मैंने उनकी पंक्तियों का जवाब दिया –
मेरे अह्वाब कहते हैं ,हम लौट कर आ जाते ,
अरे गए ही क्यूँ थे,इतने दिन तो जहन्नुम से न
जाते||
आये हाय .......बस करिए जी .......इतना कहकर
उन्होंने हमारी पकड़ एक हाँथ से ढीली कर दी और अपने हाँथ को साने लाते हुए करीने से
अपनी जुल्फों को अपने चेहरे से हटाकर ज्युन्ही अपने आशुओं को पोंछने के लिए आंगे
बढ़ी ........ मैंने उनका हाँथ थम लिया .............
शेष जल्द