शनिवार, 27 सितंबर 2014

आ जाओ मेरे बच्चे एक बार फिर दुबारा,

श्रद्धांजलि!
(एक नन्हीं सी परी को) 27 सितम्बर, 2014

आ जाओ मेरे बच्चे एक बार फिर दुबारा,
एक हूक सी उठी है दिल ने तुम्हें पुकारा।

आँखों को नम किये हैं आंसू के चंद कतरे,
मिटने नहीं हैं देते ये ख़याल भी तुम्हारा।


बचपन की शोखियां वो मासूम सी अदाएं,
किलकारियों की गूंजे देना सदा तुम्हारा।

दागे-जिगर छुपा लूँ मगर अश्क बोलते हैं,
कैसे भुला दूँ उसको जो साथ था हमारा।

एक-एक लम्हा अब भी सीने को चीरता है,
रातों के धुंधलके में वो घूमना तुम्हारा।

आँखों की सादगी-ओ-चेहरे का नूर तेरा,
सूनी है गोद मेरी और कंधे भी हैं आवारा।

तेरी तोतली जुबां से इतराके बोलना वो,
कहना ये बड़े पापा हाफ़िज़ खुदा तुम्हारा।

तेरे ही अक्श अब भी बाकी मेरे जिगर में,
कोई चीर के तो देखे जख्मे-जिगर हमारा।

खुशियाँ रहीं न कायम आंसू न मिट सकेंगे,
दिल को सकूँ नहीं तो जीना है क्यों गबारा।

घबराके ख्वाब जब भी रातों को टूटते हैं,
आता लबों पे सोनम बस नाम ही तुम्हारा।

धरती 'अली' वतन की रोकर पुकारती है,
आता है याद जब भी तेरा गाँव वो जरारा।

शोखियां = चंचलता, अक्श = छवि/परछाईं, जरारा = पैतृक गाँव का नाम

(ये कविता मेरी 'सोनम' को उसके छठवें जन्मदिन पर समर्पित है, जिसकी मात्र 4 वर्ष की अल्पायु में आकष्मिक मृत्यु हो गई थी)

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