बुधवार, 1 अक्तूबर 2014

न मेरी लाश को बरबाद करना दफ़्न करके तुम,

न मेरी लाश को बरबाद करना दफ़्न करके तुम,
छोड़ना नोंचने को चील-ओ-कौओं के बरमला,
मेरा बहम है यकीनन न वो मुर्दे को नोंचेंगे ऐसे,
जिस तरह आजतक ज़िंदा नोंचा लोगों ने मुझे।

तुम अपनी रश्मों से कोई परहेज न करना कभी,
उढ़ा के पाक सी चादर मेरी किताबों को ढँक लेना,
यकीं पुख्ता बनाये रखना जब उतारो कब्र में इन्हें,
कसम परवरदिगार की हर्फ़-दर-हर्फ़ मरा हूँ इनमें।

मेरी तहरीर तसब्बुर की मातहत न रही थी कभी,
अक्सर ये दिल ही कमजोर रहा कुछ इस कदर,
न जज्बे रोकने की ताब न अश्कों को छुपाने की,
जमाने भर के कागज, रोशनाई खर्च कर डाली।

जिंदगी चंद सवालो-जबाबों का मसला नहीं होती,
एक और उम्र चाहिए पिछली के दर्द रोने के लिए,
जहाँ गिनकर मिली थीं साँस वहाँ मजबूर ही रही,
मगर ये जिंदगी कभी इतनी भी आसां नहीं होती।

मुर्दा आँखें तो खुश्क हो जाएंगी मेरी चंद लम्हों में,
मगर सीलन ये कागज की एक सैलाब ला देगी,
न मेरे अश्क जिनको उम्र भर आये नज़र 'अली',
ताज्जुब कुछ नहीं गर वो नज़रें फेर लें अब भी.

बरमला = सामने/आगे, हर्फ़-दर-हर्फ़ = एक-एक अक्षर, तहरीर = लिखित बयान, तसब्बुर = कल्पना, मातहत = अधीन/गुलाम, ताब = शक्ति, रोशनाई = स्याही

फ़ोटो: न मेरी लाश को बरबाद करना दफ़्न करके तुम,
छोड़ना नोंचने को चील-ओ-कौओं के बरमला,
मेरा बहम है यकीनन न वो मुर्दे को नोंचेंगे ऐसे,
जिस तरह आजतक ज़िंदा नोंचा लोगों ने मुझे।

तुम अपनी रश्मों से कोई परहेज न करना कभी,
उढ़ा के पाक सी चादर मेरी किताबों को ढँक लेना,
यकीं पुख्ता बनाये रखना जब उतारो कब्र में इन्हें,
कसम परवरदिगार की हर्फ़-दर-हर्फ़ मरा हूँ इनमें।

मेरी तहरीर तसब्बुर की मातहत न रही थी कभी,
अक्सर ये दिल ही कमजोर रहा कुछ इस कदर,
न जज्बे रोकने की ताब न अश्कों को छुपाने की,
जमाने भर के कागज, रोशनाई खर्च कर डाली।

जिंदगी चंद सवालो-जबाबों का मसला नहीं होती,
एक और उम्र चाहिए पिछली के दर्द रोने के लिए,
जहाँ गिनकर मिली थीं साँस वहाँ मजबूर ही रही,
मगर ये जिंदगी कभी इतनी भी आसां नहीं होती।

मुर्दा आँखें तो खुश्क हो जाएंगी मेरी चंद लम्हों में,
मगर सीलन ये कागज की एक सैलाब ला देगी,
न मेरे अश्क जिनको उम्र भर आये नज़र 'अली',
ताज्जुब कुछ नहीं गर वो नज़रें फेर लें अब भी.

बरमला = सामने/आगे, हर्फ़-दर-हर्फ़ = एक-एक अक्षर, तहरीर = लिखित बयान, तसब्बुर = कल्पना, मातहत = अधीन/गुलाम, ताब = शक्ति, रोशनाई = स्याही

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