कुछ लब्ज़ झरने लगे
अपने आप खुद ही
बस तेरा दीदार हो गया
बस गए नज़रों में
आप हमारी एक पल में
बस तेरा दीदार हो गया
निकलने के लिए रोज
अपने घर से दफ्तर को
तुम्हे देखने का आदि हो गया
अब नही कटता दिन
और नही कटती कभी रात
तेरा दीदार जरुरी हो गया
कमबख्त दिल ने जाने कैसे
चख लिया स्वाद मुहोब्बत का
तबी से बस पगला गया
लिखनी थी एक ग़ज़ल
मगर अँधेरा था उस वक़्त ,
पर आपका दीदार हो गया
ग़मों के समन्दर में हिचकोले लेती
हमारी कस्ती सम्हाल गयी
जो तेरा दीदार हो गया
दाऊ जी
अपने आप खुद ही
बस तेरा दीदार हो गया
बस गए नज़रों में
आप हमारी एक पल में
बस तेरा दीदार हो गया
निकलने के लिए रोज
अपने घर से दफ्तर को
तुम्हे देखने का आदि हो गया
अब नही कटता दिन
और नही कटती कभी रात
तेरा दीदार जरुरी हो गया
कमबख्त दिल ने जाने कैसे
चख लिया स्वाद मुहोब्बत का
तबी से बस पगला गया
लिखनी थी एक ग़ज़ल
मगर अँधेरा था उस वक़्त ,
पर आपका दीदार हो गया
ग़मों के समन्दर में हिचकोले लेती
हमारी कस्ती सम्हाल गयी
जो तेरा दीदार हो गया
दाऊ जी
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