रविवार, 19 अक्तूबर 2014

तेरा दीदार हो गया

कुछ लब्ज़ झरने लगे
अपने आप खुद ही
बस तेरा दीदार हो गया

बस गए नज़रों में
आप हमारी एक पल में
बस तेरा दीदार हो गया

निकलने के लिए रोज
अपने घर से दफ्तर को
तुम्हे देखने का आदि हो गया

अब नही कटता दिन
और नही कटती कभी रात
तेरा दीदार जरुरी हो गया

कमबख्त दिल ने जाने कैसे
चख लिया स्वाद मुहोब्बत का
तबी से बस पगला गया

लिखनी थी एक ग़ज़ल
मगर अँधेरा था उस वक़्त ,
पर आपका दीदार हो गया

ग़मों के समन्दर में हिचकोले लेती
हमारी कस्ती सम्हाल गयी
जो तेरा दीदार हो गया

दाऊ जी

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