बुधवार, 15 अक्तूबर 2014

रास नहीँ आती मुनाफाखोरी, मुहब्बत के बाजार मेँ

रास नहीँ आती मुनाफाखोरी, मुहब्बत के बाजार मेँ
बेझिझक सह लूंगा नुकसान, इस मखमली व्यापार मेँ ।

कोई कहे,मुझे मिलेगा दर्द, रुसवाई,बेवफाई,
जवाब होगा,सब कुछ उनकी नजर,उनके प्यार मेँ ।


यूं तो तोड़ दूँ,फौलाद की जंजीरोँ को पल भर मेँ
पर क्या करुँ? इस कदर बंध गया हूं रेशमी तार मेँ ।


सुबह उनसे,शाम उनसे,रात उनसे,उनकी वफाओँ से,
सजने लगने साज धड़कनोँ के, इश्क के इजहार मेँ ।


फर्क नहीँ पड़ता,वक्त की चाल का मेरी तसल्ली पर
बेशक गुजर जाऐ,उम्र तमाम उनके इंतजार मेँ ।

-Pradeep Dixit

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