मंगलवार, 14 अक्तूबर 2014

लिख के तुम्हे खत

लिख के तुम्हे ख़त
हम गुनाह कर बैठे हैं
अपने दिल के हाल को
उसमें जो लिख बैठे हैं

वहुत कोशिश करली
खुद को रोक सकने की
मगर हम रोक न सके
और हाल-ए-दिल कह बैठे हैं

मुहोब्बत के रास्तों से गुजरकर
तय कर लिया फांसला हमने
मगर मंजिलों पर आकर
अपने मकसद भुला बैठे हैं

अपनी जिन्दगी के सबसे हसीं
पलों को हमने जी तो लिया
लेकिन भूल से एक भूल
हम खुद से कर बैठे हैं

लिख के तुम्हे ख़त
हम गुनाह कर बैठे हैं
अपने दिल के हाल को
उसमें जो लिख बैठे हैं

दाऊ जी

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