गुरुवार, 13 नवंबर 2014

समझ के बात खामोश रह जाना भी हुनर है,

समझ के बात खामोश रह जाना भी हुनर है,
समझ आ जाय जो न पूछ पाना भी हुनर है.

जुल्म सहकर भी रहना चुप गुनाह है बेशक,
जुल्म होने से पेश्तर रोक पाना भी हुनर है.

मुझमें क्या खूबियां हैं दे सोचने जमाने को,
नुख्स खुद अपने मुझे समझाना भी हुनर है.

काम कोई हो जमाने में कमतर नहीं होता,
रोटी अपने लिए मेहनत से कमाना भी हुनर है.

न लाया साथ अपने कुछ न लेकर गया कोई,
निज़ामे-कुदरत है ये आना-जाना भी हुनर है.

मसर्रत का सबब गर न बना तो भी गम नहीं,
जहां में दिल किसी का न दुखाना भी हुनर है.

तमन्ना हर कोई जन्नत की सीने में लिए हुए,
है किन क़दमों में जन्नत ढूंढ पाना भी हुनर है.

ख़ुशी से कर चुके कुर्बान अपनी जिंदगी हम पर,
उन बुजुर्गों की दुआएं और पा जाना भी हुनर है.

जमीं पर आदमी हैं सब न अब आते हैं फ़रिश्ते,
इस हकीकत को 'अली' समझ जाना भी हुनर है.

पेश्तर = पहले, कमतर = निम्न स्तरीय/छोटा, निज़ामे-कुदरत = प्रकृति का नियम, मसर्रत = प्रसन्नता,

ऐ. एस. खान जी 

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