मंगलवार, 19 मई 2015

लिख दिया तुझको चाँद तो चाँद शर्मा गया, 

लिख दिया तुझको चाँद तो चाँद शर्मा गया, 
छुप गया बादलों की ओट में,अंधेरा छा गया, 

चाँदनी थी कुछ इतराई बुरा मानकर, 
एक चातक रात भर राह तकता रह गया, 

 कोई कवि लिए कागज और कलम साथ था, 
कोई भाव न बना ,खाली कागज रह गया, 

 रात भर ताकता रहा राह मैं नींद आने की, 
वो न आई,वक्त मालूम नही कहाँ निकल गया। 

 ये मुहोब्बत जो कर बैठे थे हम तुम्हारे नाम से, 
तेरी राह तकता,तेरा नाम लेता रह गया। 

 कभी तो समझोगी हाल ए दिल हमारा, पास आओगी 
इसी आस में ,अहसास में मुर्दा होकर भी जी गया। 

 चले जाते हमतो कब के छोडकर जमाना, 
मगर एक जुगनू मुझको जीना सिखा गया। 

 जी रहा था बनकर एक मुर्झाया फूल सा, 
याद आई तेरी तो देखो फिर से खिल गया 

 लिख दिया तुझको चाँद तो चाँद शर्मा गया, 
छुप गया बादलों की ओट में,अंधेरा छा गया,

 दाऊ जी

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