बुधवार, 20 मई 2015

जिन्दगी को जिन्दगी जीने का सहारा मिल गया

जिन्दगी को जिन्दगी जीने का सहारा मिल गया, मुझको फिर से मुस्कुराने का बहाना मिल गया। खो गया था जो चैनो-सुकूं राहों में ही कहीं, आ के दिलों में बसके अपनी मंजिल पा गया। तुम मिली तो दिल खिला,जहाँ मिल गया, मेरा तुझको पाने का ख्याब मुकम्मल हो गया। सोचता हूँ तेरी मुस्कुराहट पे क्या निछावर करुँ, दिल तो तेरा था ,अब जान भी हो गया। तेरे आने की खुशी में झूम लूँ या जशन करुँ, मेरा इश्क अपनी खोई हुई मंजिल पा गया। था अकेला नाव पर तुफानों के बीच,बिना पतवार के , बीच मझदार में ही मुझको साहिल मिल गया। जिन्दगी को जिन्दगी जीने का सहारा मिल गया। मुझको फिर से मुस्कुराने का बहाना मिल गया। जी.आर.दीक्षित दाऊ जी

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