जिन्दगी को जिन्दगी जीने का सहारा मिल गया,
मुझको फिर से मुस्कुराने का बहाना मिल गया।
खो गया था जो चैनो-सुकूं राहों में ही कहीं,
आ के दिलों में बसके अपनी मंजिल पा गया।
तुम मिली तो दिल खिला,जहाँ मिल गया,
मेरा तुझको पाने का ख्याब मुकम्मल हो गया।
सोचता हूँ तेरी मुस्कुराहट पे क्या निछावर करुँ,
दिल तो तेरा था ,अब जान भी हो गया।
तेरे आने की खुशी में झूम लूँ या जशन करुँ,
मेरा इश्क अपनी खोई हुई मंजिल पा गया।
था अकेला नाव पर तुफानों के बीच,बिना पतवार के ,
बीच मझदार में ही मुझको साहिल मिल गया।
जिन्दगी को जिन्दगी जीने का सहारा मिल गया।
मुझको फिर से मुस्कुराने का बहाना मिल गया।
जी.आर.दीक्षित
दाऊ जी
ब्लॉग पर प्रकाशित हर लेख कॉपीराइट अधिनियम के तहत आता है एवम् हर रचना का कॉपीराइट अधिकार उसके पास सुरक्षित है। बिना अनुमाति किसी भी रचना को प्रकाशित करने या कॉपी पेस्ट करने पर आपको कॉपीराइट अधिनियम की धारा के उलंघन का दोषी समझा जाएगा और आप पर कानूनी कार्यवाही करने के लिए हम पूर्ण तौर पर स्वतन्त्र है। जी.आर.दीक्षित
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अंतर्द्वंद
मेरी सोची हुई हर एक सम्भावना झूटी हो गई, उस पल मन में कई सारी बातें आई। पहली बात, जो मेरे मन में आई, मैंने उसे जाने दिया। शायद उसी वक्त मु...
-
एक गाँव की समस्या 14 हजार लोगो के बीच की रुकावट बनी हुई थी।सरकारी पैसा मेरे किसी काम का नही था मगर हम सिर्फ उतना काम करना चाहते थे जितना उत...
-
वहुत बार सुन चुका था कि ये आत्मायें रात के बारह बजे के बाद ही सक्रिय होती हैं।अभी तो वही समय ही हुआ था।मन में अब लालसा सी होने लगी थी की और...
-
मेरी डायरी का वो आखिरी पन्ना -4 • मेरी डायरी का वो आखिरी पन्ना-3 • मेरी डायरी का वो आखिरी पन्ना-2 • मेरी डायरी का वो आखिरी पन्ना-1 वो ...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें