मद भरी तेरी अखियों से,
हो गई मुहोब्बत है।
तंग तंग तेरे शहर की गलियों से,
हो गई हैं चाहत है।
तेरे गोरे-गोरे गालों से,
हटती नही मेरी नजरें हैं,
देखकर तुझको,
मुझको मिल जाती राहत है।
तेरी रेशमी जुल्फों में
झाँका करता सावन हैं,
वारिशें हो जाती हैं स्वप्नों की,
भींगा करता तनमन हैं।
अपनी यौवन के गागर से,
कुछ बूँदे तुम झलका देना,
प्यास बुझाऊँगा दिलकी,
वहुत ही प्यासा रहता है।
दाऊ जी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें