हो गये समंदर भी पराये,नदियों पे उनका डेरा है,
मेरा तो रब भी न रहा,बस परछाई का सहारा हैं।
फाड़ कर धरती,उगा लाया था सोना,
छीन लिया हमसे,उस पर कहाँ हक हमारा हैं।
बहती हैं नदियाँ वैसे तो मेरी भी वस्ती से,
मगर कहाँ हक मेरा,हमें तो गंदे नालों का सहारा है।
दाऊ जी
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सोमवार, 10 अगस्त 2015
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