शनिवार, 31 अक्तूबर 2015

हुस्नो-जमाल अब तो खिलता गुलाब होगा।

छूकर ये जिस्मे-मखमल पानी शराब होगा,
नज़रें ही जब नशे में और क्या खराब होगा।

मौजों में खलबली मची आगोश में आने की,
नज़रें हों तेरी जिस पे, गुल पुर-शबाब होगा।

सांसे रुकीं हैं मानो कलियाँ हैं मुन्तजिर सी,
मुश्के-बदन से दरिया खुश बे-हिसाब होगा।

कब से खड़े किनारे पाने को झलक हम भी,
जो भीगी हुई जुल्फों में रूखे-माहताब होगा।

रुखसार की आतिश तेरी दहका हुआ है पानी,
अक्शे-रूखे-दिलदार से अब सुर्ख-आब होगा।

मनिन्दे-सदफ तेरी दांतों की चमक बल्लाह!
होटों पे तबस्सुम का हसीं शीरीं-आब होगा।

कई बार तेरे जलबों से, हैरान-ओ-परेशां सा,
दिखता फकत नहीं है मगर आफ़ताब होगा.

राहे-फना में तेरी जो कहे खुशनसीब खुद को,
छू कर बदन जो जाता हर एक हबाब होगा।

धुल कर बदन चमकता मनिन्दे-सीमतन है,
हुस्नो-जमाल अब तो खिलता गुलाब होगा।

मंजर हसीं बहुत है कहने को 'अली' मगर ये,
जाने खुदा कितनों का यूं खाना खराब होगा।

जिस्मे-मखमल = कोमल शरीर, पुर-शबाब = पूरा खिला, मुन्तजिर = प्रतीक्षा में, मुश्के-बदन = शरीर की सुगंध, रूखे-माहताब = चाँद सा चेहरा, रुखसार = मुखमंडल, अक्शे-रूखे-दिलदार = प्रेयसि के चेहरे की परछाईं, सुर्ख-आब = लाल पानी/गर्म, मनिन्दे-सदफ = मोती की तरह, शीरीं-आब = मीठा पानी/शहद, आफ़ताब = सूर्य, राहे-फना = मृत्यु के मार्ग पर/अंत, हबाब = बुलबुला, मनिन्दे-सीमतन = चाँदी जैसे बदन के सामान, हुस्नो-जमाल = सुंदरता और चमक,

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