सोमवार, 30 नवंबर 2015

अतीत के पन्नों से लिपटी

अतीत के पन्नों से लिपटी
याद तेरी आ रही है,
धुँधलीँ-धुँधली तस्वीरे
धीरे-धीरे साफ हो रही हैं। 

आज मेरे मन के बीच तेरी
यादो ने घर बना लिया हैं,
नयनो ने भी डूब कर गम में
एक मोती टपका दिया हैं। 

हो रहा न जाने क्या
मेरे बैचेन दिल को,
अब तेरी ही शक्ल मुझको
सब जगह ही दिख रही हैं। 

आ रही है न जाने क्युँ कुछ
अलग सी खुशबुँ साँसो में,
तेरी छुअन की महक उनमें
शायद शामिल हो रही हैं। 

बदलियों-सी याद तेरी
सिसकियों से लड़ रही है,
लग रहा है मुझको जैसे
तु पास मेरे आ रही हैं। 

जी.आर.दीक्षित


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अंतर्द्वंद

मेरी सोची हुई हर एक सम्भावना झूटी हो गई, उस पल मन में कई सारी बातें आई। पहली बात, जो मेरे मन में आई, मैंने उसे जाने दिया। शायद उसी वक्त मु...