उस रोज मस्ती में डूबा था मै हर्षित अपार,
जिस रोज देखी तेरी तस्वीर पहली बार।
था उत्साह मेरा बढ़ा हुआ, मन में उमंग थी खास
तस्वीर में ही हो गया तेरे मिलने का अहसास
चन्द्र मनोहर तेरा रंग, नेत्रो में प्रेम का प्रकाश
परिधानों में अधरों का रंग, कपोलो पर सौंदर्य वास।
केशो की अनुपम छटा,
कपोलो पर लटकती लटा
दर्पण बीच प्रतिबिम्बित होती नेत्रो की व्याकुलता,
रसिको को आकर्षित करती अधरों की मादकता।
योगी को भी मोहित करता तेरे यौवन का श्रृंगार
कैसे संभाला होगा कवि ने अपने हृदय का अतल प्यार
जब सन्मुख प्रस्तुत हुआ रूप का मनोहारी अवतार।
हाला के सेवन से होता मादकता का जो आनन्द अपार,
वही मिला आनन्द मुझे जब देखि तस्वीर पहली बार।
मस्ती में था डूबा मै उन्मत्त हर्षित अपार,
जब देखि तेरी तस्वीर पहली बार.........।।
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