गुरुवार, 7 जुलाई 2016

तू जो नक़ाब हटाये तो हमारी ईद हो जाए

आज ईद और बारिश के हंसी मौके पर पेश हे खिदमत में आपकी ये गजल

तू जो नक़ाब उठाये तो हमारी ईद हो जाए
तू जो छुपके शरमाये तो हमारी ईद हो जाए
सेवइयां कहाँ मीठी हे शककरे शहद की तरह
तू जो मुस्कुराये तो सेवइयां शहद हो जाएँ

शब् ओ सहर ये झुकी पलकें ख्वाब देखती हैं
कदम रख मेरे रास्तों पे निगाहें राह तकती हैं
मेरे रास्तों की उड़ती धूल कीचड़ से सन जाए
तू जो नक़ाब उठाये तो हमारी ईद हो जाए

तेरी मंजिल हे कहाँ ये तुझको मालुम नहीं
नजर आती हे काली घटा नीला आसमाँ नही
बरस जाए मुहब्बत दिले ज़मी हरी हो जाए
तू जो नक़ाब उठाये तो हमारी ईद हो जाए

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