बुधवार, 28 नवंबर 2018

खंडहर

अजीब होती है खंडहर की तकदीर 
देखने सब आते है बसता कोई नहीं 
कभी देखो इस रंगमहल के अंदर झाँककर सिसकियां लेते है एहसास,
दफ़न पडी है जो अंदर एक आत्मा सदियों से
एक दिल जो धड़कता था किसीकी बेपनाह मोहब्बत में 
हाँ वो चाहती थी मुझे बेइन्तेहाँ,
चाँदनी सा उजला तन, चंदन सी खूशबू से महकता हुश्न बेनज़ीर,
हिरनी सी चंचल एक नवयौवना,
मिलने आ रही थी एक दिन अपने मेहबूब से की मृत्यु के महारथी ने दबोच लिया
पलभर को तड़पकर अनंत की गोद में छुप गई
हमने बड़ी हिफ़ाज़त से दफनाया है, संजोये रखा है अपनी जाँन को
तब से वो बसती है इस खंडहर से रंगमहल में गुंजती है उसकी आवाज़ें,सिसकियां,तड़प जो मुझे झकझोरते रहते है दिन रात,
पर मेरी आँखों में अटका है सदियों से एक अनमोल आँसू,
जिसे मैं बहने नहीं देता
मेरा रोना उसे हंमेशा बेकल कर देता था
मेरे बोल में अटकी है वो गीतों सी,क्यूंकि मेरा गाना उसे पागल कर देता था
मेरे दिल की विरान सी बंज़र ज़मीन में हरी जड़ की तरहा पनप रही है वो,
ये खंडहर मेरी स्मृतियों का मंदिर है जिसमे मौजूद है वो देवी की मूरत सी,
मैं जीता हूँ उसके साथ बिताये लम्हों की स्मृतियों के साथ जो ठहरी हूई है मेरी रुह में अलक्षित॥

अंतर्द्वंद

मेरी सोची हुई हर एक सम्भावना झूटी हो गई, उस पल मन में कई सारी बातें आई। पहली बात, जो मेरे मन में आई, मैंने उसे जाने दिया। शायद उसी वक्त मु...