मंगलवार, 27 नवंबर 2018

मेरा दिले नादान मुझे खोजे कहां कहां

देखा तो फरिश्तों के भी आँसूं हुये रवां
कहने को दिल जला मगर रूह से उठा धुआं

होगी तुम्हारे पास दुनिया भर की डिगरियां
पर वो है डिग्री और मरे है जिसपे छोरियां

जो जख्मे वफा राहे मुहब्बत मे मिले है
उस से बडा जमाने मे नही कोई रहनुमां

होगी जिधर नज़ाकत उधर आयेगी बहार
बैठे रहे मगरुर लिये दौलत की तख्तियां

इस इश्को मुहब्बत की अजमत है बला की
सर अपना झुकाती है इसे देख बिजलियां

अपनी मजबूरियाँ पर दिल बताता किसे
रह गया ताकता जानिबे आसमां

तनहा सुकुते शाम के संग हुं और घर पे हुं
पर मेरा दिले नादान मुझे खोजे कहां कहां

अंतर्द्वंद

मेरी सोची हुई हर एक सम्भावना झूटी हो गई, उस पल मन में कई सारी बातें आई। पहली बात, जो मेरे मन में आई, मैंने उसे जाने दिया। शायद उसी वक्त मु...