मेरे प्रिय!
दिल पर मत लेना ....मेरे प्रिय लिखने को .../बहुत भावुक हो न इसीलिए पहले ही बोल देती हूं.... !
हम्म...तो बहुत दिनो बात तुम्हारे नाम की चिट्टी लिख रही हूं, बस अंत मे वही करूंगी इसका भी जैसा मेरी हर चिट्टीयों के साथ मैने किया ...! क्या नही पता तुम्हे.... ? अरे लिख के इस पन्ने को अपनी डायरी मे दबा के रख लुंगी।पर इस बार इस चिट्टी का तुम्हे पता चलेगा ,हां ... यही पता चलेगा कि मुझ सरफिरी को तुम याद हो ,ऐसे जैसे किसी इंसान को उसका नाम ।
हां तो बात कहां से शुरू करूं,शिकवो-शिकायतों की कोई फेहरिस्त नही जिन्हे मै तुमसे कहूं।और अगर होती भी तो न कहती,वो भी तुमसे..... ओह न्नो... बिल्कुल भी नही । किसी वक्त की थी,ढेरो शिकायतें पर उस शिकायत के बाद फिर कभी कोई मौका ही नही आया कि तुमसे फिर कभी कोई बात(शिकवा,शिकायत,प्यार,मुहोब्बत कुछ भी) कहूं ।तो बस उस अंतिम शिकायत के बाद मै अब जाके तुम्हे चिट्टी लिख रही हूं ...तुम्हे कुछ याद दिलाने को और बहुत कुछ तुम्हे भुला देने को.....
पिछली साल 8अक्टूबर की शाम याद है तुमको?हां आज ही का दिन,पूरे एक साल हो गए ..?अरे यार .... याद तो होनी ही चाहिए तुमको।वही दिन जब मैने तुमसे अंतिम बार ,तुम्हारी प्रेमिका की तरह बात की थी या यूं कहो कि गिड़गिड़ाया था तुम्हारे सामने । उसके बाद दिल पर हाथ रख कर कह रही हूं कि मुझे याद नही कि फिर कभी तुमपर भरोसे वाला प्यार आया था ! उस दिन के बाद सब बदल गया, है न ...!
खैर.... ये सब कहने का फायदा क्या ,छोडो़ इन बातों को ! ये बताओ कैसे हो ? स्वस्थ-सुखी तो हो न? .... मै? मै तो पहले से काफी ठीक हूं!तुम तो हमेशा से ही जरूरत से ज्यादे ठीक थे,तो जरूर अब भी ठीक होगे। जानते हो तुम ? मै कभी तुम्हारी तरह अपना ईगो सेटिस्फाई करने की फिराक मे नही होती ,न कल न आज ,कभी नही । इसलिए आज तक जो दिल मे आया वो कहा,जो मन चाहा वही किया। हां , एक बीच मेरा ईगो भी मेरे मन के आड़े आ रहा था,मै बहुत कुछ लिखना चाहती थी... लिखा भी पर अगले ही पल उसे आग के हवाले कर दिया.. या उस कागज को फाड़ के फेंक दिया। अब याद करती हूं तो कुछ याद नही आता कि उन सभी पन्नो में मैने क्या लिखा था,जिसे मैने अपने अहम् की वजह से या शायद अपने दुख के कारण बरबाद कर दिया।कई-कई बार उन फटे कागजों के चिथड़ों को मैने बटोरकर पढने की कोशिश तक की ,पर सब बेकार..... । और अब कभी-कभी अकेले बैठ के यही सोचती हूं कि काश की मैने अपनी लिखी रचनाओं को यूं बरबाद न किया होता तो आज कितनी ही कविताएं मेरे नाम होतीं।काश की मै खुद को इतना कमजोर न बनाती .. तो कितनी खुश रहती !
जानते हो..? कई बार अपने मन के भी साथ मैने न्याय नही किया, वो बातें लिखी जो मैने नही बल्कि मेरे अहंकार ने मुझसे कही ।और उस दौरान तुमपर प्यार भी आता था तो मेरा अहम ही उसे रौंद देता था,बिल्कुल वैसे ही जैसे तुमने उस शाम रौंदा था। धीरे धीरे वक्त बीतता चला गया,मै तबतक कई कविताओं को नाश कर चुकी थी .... पर फिर यू ही बैठे बैठे एक बात मन मे आई.. कि तुम भी तो अपने ईगो को खुद पर हावी रखते हो, तो मुझसे मिलने से पहले और मुझसे अलग होने के बाद और बल्कि अब तक लगातार, तुमने अपना कितना कुछ खुद के अहंकार को संतुष्ट करने के लिए बर्बाद किया होगा .....
और मेरा अहम् तो फिर भी खतम हो गया ,जब एक दिन मैने अपनी कविताओं को शुरू से पढ़ना शुरू किया ।अब लगता है अगर उस वक्त मैने अपनी कृतियों को जलाया या फाड़ा नही होता तो शायद वो सब मेरी लिखी उत्तम रचनाओं मे से एक होतें।इस पछतावे के साथ ... मैने अपना अहं छोड़ा और तब से वो लिखती हूं जो मै महसूस करती हूं।
अगर मै तुमसे अब भी प्यार करती हूं तो उसमे आपत्ती क्या है,ये क्यों सोचूं कि आज जो मैने ये प्रेम तुम्हारे नाम लिखा और कल को जब दुनिया के किसी कोने मे तुम इसे पढ़ोगे तो तुमको स्वयं पर अभिमान होने लगेगा,तुम खुद को उच्च समझने लगोगे... क्यों सोचूं ये ओछी बातें ..इन्ही बातो ने तो सब बरबाद किया है । इसलिए अगर मुझे लगता है कि तुम्हारे आलिंगन मे मै हर दुख भूल सकती हूं तो मै वो लिखती हूं ; तुम्हारे साथ अपना पूरा जीवन जी सकती हूं ,तो ये भी लिखती हूं ; तुम्हारे साथ चुप-चाप पहरों तक बैठ सकती हूं ,तो मै वो लिखती हू ; तुम्हारे मात्र एक स्पर्श से खुद को तुम्हारी अमानत समझ सकती हूं ,तो मै वो तक लिखती हूं,बिना ये सोचे की इसमें मेरा मान है या अपमान ।कई बार मैने तुम्हारी पत्नी बनकर लिखा है .../तुम्हे शायद बुरा लगे ,पर कई बार तुम्हारी विधवा बनकर भी अपने अनगिनत आंसू लिखे हैं ।इसलिए क्योंकि इन हर विचारों को लिखने मे ही मुझे सुख है ,तुमको फर्क नही पड़ता ,ये सोचकर मै लिखना क्यो बंद करूं ।दो अलग इंसान हैं हम ,किसी एक को जो फर्क नही पड़ता तो इससे क्या फर्क पड़ता है।
सुनो ! प्यार तो तुमको भी मुझसे था,और बिना शक के आज भी कह सकती हूं कि वो प्यार आज भी है । कहीं न कहीं,कभी न कभी तुम भी ठहर जाते होगे उसी दौर में जब हमने हमारा प्रेम स्वीकार किया था । बेशक मैने तुमको डार्लिंग ,सोना,बेबी ,जानू नही कहा,पर मैने तुमको आराध्य कहा था,जिसके आगे तुमको कुछ और कहना छोटी बात लगती थी।
तुमको याद है.... मेरे नेटवर्क से तुम्हे हमेशा शिकायत रहती थी,और कभी-कभी तो तुम बहुत गुस्सा भी हो जाते थे।नेटवर्क की खराबी से ऊबकर मै अक्सर ही तुमको बाय-बाय बोल के फोन रख देती थी,पर जब जब नेटवर्क आता था मै तुमको आनलाइन दिखती थी,और तुम चिडचिडे से अंदाज मे अगले दिन बात करते थे। मुझे तुम्हारी इस अदा पर हसी भी आती थी और प्यार भी।
पर क्या कर सकते हैं,सुना था फिल्मों मे कि दो प्रेमी जुदा होके जी नही सकते।पर मै जी रही हूं,तुम जी रहे हो ... पर कैसे जी रहे है,ये अलग मसला है पर सच तो ये है कि जी तो रहे हैं।शायद प्रेम नही था,या प्रेम है ...पर और प्रेम करना बाकी है ,शायद उसी प्रेम को पूरा करने को दोनो जिन्दा है।
जानते हो ?तुम्हारी कोई आदत नही थी मुझे,मुझे कोई फर्क नही पडता था जब तुमसे मेरी कई दिनो तक बात नही होती थी। मुझे तुमसे किसी तरह के तौहफे की दरकार नही थी ,न ही किसी सिनेमाहाल मे तुम्हारे पैसे के टिकट से मुझे कोई रोमैन्टिक फिल्म ही दोखने का शौक था।शौक का तो छोड़ो दो मुलाकातें ही तो मुयस्सर हुई थी,वो भी तब जब तुमसे हमे इश्क नही था। जब इश्क हुआ तबसे कहां मिल सकें हम !
जानते हो? ,तुम आदत नही एक हरकत थे,जो मेरे सोने पर मेरे साथ सोता था,और मेरे उठने के साथ उठता था।तुम मेरी हसी मे,मेरी खुबसूरती में थे.... हां खूबसुरती में ! तुमने मुझे खूबसूरत बनाया था,पर मैने भी तो तुमको भीड़ की आम सूरत से निकालकर एक बेहद खास इंसान बनाया ।
तुमको चिट्टी लिखने का मन किया,ताकी तुम्हे बता सकूं की अध्याय भले ही खत्म हो चुका,मगर उस अध्याय से मिली सीख को अबतक याद रखा है मैने।शायद तुमने भी... और हां,एक और बात कहनी थी,तुमने कभी मेरे हाथ की कलाकारी देखते हुए कहा था कि "कोई ऐसी कलाकारी मेरी शादी पर मुझे गिफ्ट करता तो कितना अच्छा होता !" तो तुम चिन्ता न करो तुम्हारी शादी मे तुम बुलाओ या न बुलाओ,मै मेरा तोहफा तुम तक पहुचाने की पूरी कोशिश करूंगी ।
और एक और बात,तुम कोई ऐसी कहानी नही जो किसी के मुह से सुनी है मैने ,तुम मेरी कहानी थे जिसे मै मेरे अंत तक याद रखुंगी,और अपनी लिखी हर रचनाओं से मेरी कहानी,कहीं न कहीं हमारी कहानी बनकर सदियों तक कही जाएगी ,सुनी जाएगी,पढ़ी जाएगी एक गाथा की तरह... प्रेम गाथा की तरह।और जानते हो इस गाथा मे खास बात क्या होगी... पढने वाले को ये हमारी कहानी अधूरी नही लगेगी ...बिल्कुल भी नही ...
चलो अब तुमको अल्विदा कहने का वक्त आ गया, बहुत देर हो गई तुमसे बात करते-करते....बहुत कर ली न मैने अपनी बातें...तुम भी कभी मन चाहे तो कर लेना,ऐसे ही। चलो ,चलती हूं,खयाल रखना अपना ....बाय /
तुम्हारी _ ?
दिल पर मत लेना ....मेरे प्रिय लिखने को .../बहुत भावुक हो न इसीलिए पहले ही बोल देती हूं.... !
हम्म...तो बहुत दिनो बात तुम्हारे नाम की चिट्टी लिख रही हूं, बस अंत मे वही करूंगी इसका भी जैसा मेरी हर चिट्टीयों के साथ मैने किया ...! क्या नही पता तुम्हे.... ? अरे लिख के इस पन्ने को अपनी डायरी मे दबा के रख लुंगी।पर इस बार इस चिट्टी का तुम्हे पता चलेगा ,हां ... यही पता चलेगा कि मुझ सरफिरी को तुम याद हो ,ऐसे जैसे किसी इंसान को उसका नाम ।
हां तो बात कहां से शुरू करूं,शिकवो-शिकायतों की कोई फेहरिस्त नही जिन्हे मै तुमसे कहूं।और अगर होती भी तो न कहती,वो भी तुमसे..... ओह न्नो... बिल्कुल भी नही । किसी वक्त की थी,ढेरो शिकायतें पर उस शिकायत के बाद फिर कभी कोई मौका ही नही आया कि तुमसे फिर कभी कोई बात(शिकवा,शिकायत,प्यार,मुहोब्बत कुछ भी) कहूं ।तो बस उस अंतिम शिकायत के बाद मै अब जाके तुम्हे चिट्टी लिख रही हूं ...तुम्हे कुछ याद दिलाने को और बहुत कुछ तुम्हे भुला देने को.....
पिछली साल 8अक्टूबर की शाम याद है तुमको?हां आज ही का दिन,पूरे एक साल हो गए ..?अरे यार .... याद तो होनी ही चाहिए तुमको।वही दिन जब मैने तुमसे अंतिम बार ,तुम्हारी प्रेमिका की तरह बात की थी या यूं कहो कि गिड़गिड़ाया था तुम्हारे सामने । उसके बाद दिल पर हाथ रख कर कह रही हूं कि मुझे याद नही कि फिर कभी तुमपर भरोसे वाला प्यार आया था ! उस दिन के बाद सब बदल गया, है न ...!
खैर.... ये सब कहने का फायदा क्या ,छोडो़ इन बातों को ! ये बताओ कैसे हो ? स्वस्थ-सुखी तो हो न? .... मै? मै तो पहले से काफी ठीक हूं!तुम तो हमेशा से ही जरूरत से ज्यादे ठीक थे,तो जरूर अब भी ठीक होगे। जानते हो तुम ? मै कभी तुम्हारी तरह अपना ईगो सेटिस्फाई करने की फिराक मे नही होती ,न कल न आज ,कभी नही । इसलिए आज तक जो दिल मे आया वो कहा,जो मन चाहा वही किया। हां , एक बीच मेरा ईगो भी मेरे मन के आड़े आ रहा था,मै बहुत कुछ लिखना चाहती थी... लिखा भी पर अगले ही पल उसे आग के हवाले कर दिया.. या उस कागज को फाड़ के फेंक दिया। अब याद करती हूं तो कुछ याद नही आता कि उन सभी पन्नो में मैने क्या लिखा था,जिसे मैने अपने अहम् की वजह से या शायद अपने दुख के कारण बरबाद कर दिया।कई-कई बार उन फटे कागजों के चिथड़ों को मैने बटोरकर पढने की कोशिश तक की ,पर सब बेकार..... । और अब कभी-कभी अकेले बैठ के यही सोचती हूं कि काश की मैने अपनी लिखी रचनाओं को यूं बरबाद न किया होता तो आज कितनी ही कविताएं मेरे नाम होतीं।काश की मै खुद को इतना कमजोर न बनाती .. तो कितनी खुश रहती !
जानते हो..? कई बार अपने मन के भी साथ मैने न्याय नही किया, वो बातें लिखी जो मैने नही बल्कि मेरे अहंकार ने मुझसे कही ।और उस दौरान तुमपर प्यार भी आता था तो मेरा अहम ही उसे रौंद देता था,बिल्कुल वैसे ही जैसे तुमने उस शाम रौंदा था। धीरे धीरे वक्त बीतता चला गया,मै तबतक कई कविताओं को नाश कर चुकी थी .... पर फिर यू ही बैठे बैठे एक बात मन मे आई.. कि तुम भी तो अपने ईगो को खुद पर हावी रखते हो, तो मुझसे मिलने से पहले और मुझसे अलग होने के बाद और बल्कि अब तक लगातार, तुमने अपना कितना कुछ खुद के अहंकार को संतुष्ट करने के लिए बर्बाद किया होगा .....
और मेरा अहम् तो फिर भी खतम हो गया ,जब एक दिन मैने अपनी कविताओं को शुरू से पढ़ना शुरू किया ।अब लगता है अगर उस वक्त मैने अपनी कृतियों को जलाया या फाड़ा नही होता तो शायद वो सब मेरी लिखी उत्तम रचनाओं मे से एक होतें।इस पछतावे के साथ ... मैने अपना अहं छोड़ा और तब से वो लिखती हूं जो मै महसूस करती हूं।
अगर मै तुमसे अब भी प्यार करती हूं तो उसमे आपत्ती क्या है,ये क्यों सोचूं कि आज जो मैने ये प्रेम तुम्हारे नाम लिखा और कल को जब दुनिया के किसी कोने मे तुम इसे पढ़ोगे तो तुमको स्वयं पर अभिमान होने लगेगा,तुम खुद को उच्च समझने लगोगे... क्यों सोचूं ये ओछी बातें ..इन्ही बातो ने तो सब बरबाद किया है । इसलिए अगर मुझे लगता है कि तुम्हारे आलिंगन मे मै हर दुख भूल सकती हूं तो मै वो लिखती हूं ; तुम्हारे साथ अपना पूरा जीवन जी सकती हूं ,तो ये भी लिखती हूं ; तुम्हारे साथ चुप-चाप पहरों तक बैठ सकती हूं ,तो मै वो लिखती हू ; तुम्हारे मात्र एक स्पर्श से खुद को तुम्हारी अमानत समझ सकती हूं ,तो मै वो तक लिखती हूं,बिना ये सोचे की इसमें मेरा मान है या अपमान ।कई बार मैने तुम्हारी पत्नी बनकर लिखा है .../तुम्हे शायद बुरा लगे ,पर कई बार तुम्हारी विधवा बनकर भी अपने अनगिनत आंसू लिखे हैं ।इसलिए क्योंकि इन हर विचारों को लिखने मे ही मुझे सुख है ,तुमको फर्क नही पड़ता ,ये सोचकर मै लिखना क्यो बंद करूं ।दो अलग इंसान हैं हम ,किसी एक को जो फर्क नही पड़ता तो इससे क्या फर्क पड़ता है।
सुनो ! प्यार तो तुमको भी मुझसे था,और बिना शक के आज भी कह सकती हूं कि वो प्यार आज भी है । कहीं न कहीं,कभी न कभी तुम भी ठहर जाते होगे उसी दौर में जब हमने हमारा प्रेम स्वीकार किया था । बेशक मैने तुमको डार्लिंग ,सोना,बेबी ,जानू नही कहा,पर मैने तुमको आराध्य कहा था,जिसके आगे तुमको कुछ और कहना छोटी बात लगती थी।
तुमको याद है.... मेरे नेटवर्क से तुम्हे हमेशा शिकायत रहती थी,और कभी-कभी तो तुम बहुत गुस्सा भी हो जाते थे।नेटवर्क की खराबी से ऊबकर मै अक्सर ही तुमको बाय-बाय बोल के फोन रख देती थी,पर जब जब नेटवर्क आता था मै तुमको आनलाइन दिखती थी,और तुम चिडचिडे से अंदाज मे अगले दिन बात करते थे। मुझे तुम्हारी इस अदा पर हसी भी आती थी और प्यार भी।
पर क्या कर सकते हैं,सुना था फिल्मों मे कि दो प्रेमी जुदा होके जी नही सकते।पर मै जी रही हूं,तुम जी रहे हो ... पर कैसे जी रहे है,ये अलग मसला है पर सच तो ये है कि जी तो रहे हैं।शायद प्रेम नही था,या प्रेम है ...पर और प्रेम करना बाकी है ,शायद उसी प्रेम को पूरा करने को दोनो जिन्दा है।
जानते हो ?तुम्हारी कोई आदत नही थी मुझे,मुझे कोई फर्क नही पडता था जब तुमसे मेरी कई दिनो तक बात नही होती थी। मुझे तुमसे किसी तरह के तौहफे की दरकार नही थी ,न ही किसी सिनेमाहाल मे तुम्हारे पैसे के टिकट से मुझे कोई रोमैन्टिक फिल्म ही दोखने का शौक था।शौक का तो छोड़ो दो मुलाकातें ही तो मुयस्सर हुई थी,वो भी तब जब तुमसे हमे इश्क नही था। जब इश्क हुआ तबसे कहां मिल सकें हम !
जानते हो? ,तुम आदत नही एक हरकत थे,जो मेरे सोने पर मेरे साथ सोता था,और मेरे उठने के साथ उठता था।तुम मेरी हसी मे,मेरी खुबसूरती में थे.... हां खूबसुरती में ! तुमने मुझे खूबसूरत बनाया था,पर मैने भी तो तुमको भीड़ की आम सूरत से निकालकर एक बेहद खास इंसान बनाया ।
तुमको चिट्टी लिखने का मन किया,ताकी तुम्हे बता सकूं की अध्याय भले ही खत्म हो चुका,मगर उस अध्याय से मिली सीख को अबतक याद रखा है मैने।शायद तुमने भी... और हां,एक और बात कहनी थी,तुमने कभी मेरे हाथ की कलाकारी देखते हुए कहा था कि "कोई ऐसी कलाकारी मेरी शादी पर मुझे गिफ्ट करता तो कितना अच्छा होता !" तो तुम चिन्ता न करो तुम्हारी शादी मे तुम बुलाओ या न बुलाओ,मै मेरा तोहफा तुम तक पहुचाने की पूरी कोशिश करूंगी ।
और एक और बात,तुम कोई ऐसी कहानी नही जो किसी के मुह से सुनी है मैने ,तुम मेरी कहानी थे जिसे मै मेरे अंत तक याद रखुंगी,और अपनी लिखी हर रचनाओं से मेरी कहानी,कहीं न कहीं हमारी कहानी बनकर सदियों तक कही जाएगी ,सुनी जाएगी,पढ़ी जाएगी एक गाथा की तरह... प्रेम गाथा की तरह।और जानते हो इस गाथा मे खास बात क्या होगी... पढने वाले को ये हमारी कहानी अधूरी नही लगेगी ...बिल्कुल भी नही ...
चलो अब तुमको अल्विदा कहने का वक्त आ गया, बहुत देर हो गई तुमसे बात करते-करते....बहुत कर ली न मैने अपनी बातें...तुम भी कभी मन चाहे तो कर लेना,ऐसे ही। चलो ,चलती हूं,खयाल रखना अपना ....बाय /
तुम्हारी _ ?