रविवार, 15 दिसंबर 2019

स्त्री और प्रकृति

. . . . . " प्रकृति/ स्त्री ". . . .

' मुझे अच्छा लगता है . . .

  झुंड बनाकर / दौड़ती
  गिरती /बढ़ती/ लड़ती
  रोती/ हंस पड़ती बच्चियों को निहारना. . .

 मुझे अच्छा लगता  है. . .

 युवतियों के अल्हणपन
 उनके संकोच / अंहकार
 अजीब से व्यवहार / और
 योजनाबद्ध श्रृंगार को ताड़ना . .

 मुझे अच्छा लगता है . . .

 वयस्क स्त्रियों के तानों-बानो
 सच-झूठ के स्वलिखित अफसानो
कुछ गंभीर तो कुछ बनावटी चेहरों
 व्यवस्थित /अव्यवस्थित पर्तो को उघाड़ना. .

 मुझे अच्छा लगता है. .

 पोंपले मुंह वाली बूढ़ी औरतों के बुढ़ापे
 कभी दुआंये देते तो कभी खिसियाये सठियापे
 स्मृतियों को दुलारते, वर्तमान को लताड़ते
 झुर्रियों के पीछे खड़े पिछले समय को झाड़ना . . .

 मुझे अच्छा लगता है. .

 मुझे और भी अच्छे लगते हैं. .

 नदी / रेगिस्तान
 झील/ पहाड़
 झरने / जंगल
 सन्नाटा/ हलचल
 पेड़ / झाड़ियाँ
खेत / क्यारियाँ
 निर्जन/ उपवन
 पतझड़ / सावन
 घर / खंडहर
 फूल / पत्थर
 मैदान / गुफायें
 घुटन / हवायें

मुझे सम्पूर्ण प्रकृति ही अच्छी लगती है
एक मुकम्मिल स्त्री की तरह

प्रकृति ही स्त्री
या स्त्री में ही प्रकृति . .
खैर . .दोनो को ही पढ़ना
मुझे अच्छा लगता है. . .. . . .


अंतर्द्वंद

मेरी सोची हुई हर एक सम्भावना झूटी हो गई, उस पल मन में कई सारी बातें आई। पहली बात, जो मेरे मन में आई, मैंने उसे जाने दिया। शायद उसी वक्त मु...