शुक्रवार, 20 दिसंबर 2019

तू हो मेरे रुबरू, न शिकयतें न गुफ्तगू ,

आ तुझे पा लूँ , और फिर से तुझे खोऊँ मैं,
तू भी जागे मेरी याद में, तुझे भूल कर के सोऊँ मैं।

तू हो मेरे रुबरू, न शिकयतें न गुफ्तगू ,
न फासला हो दरमियाँ,तुझसे लिपट के रोऊँ मैं।

इक चाँदनी सी रात हो, तेरा और मेरा साथ हो
ये जनम जनम की बात हो इक ख्वाब ये सजाऊँ मैं।

कैसे कहूं तू दूर है, क्यूँ मान लूँ कि जुदा हैं हम,
तू साँसों में थी खो गई, तुझे धड़कनों में पाऊँ मैं।

मेरा ख्वाब तू, दीदार तू, तू मुक्ति है, संसार तू,
तू आती है हर साँस में, कैसे तुझे भुलाऊँ मैं।

अब तुझको क्यूँ याद करूँ, क्यूँ फिर से तुझे बुलाऊँ मैं
तू चली गई तो चली गई, क्यूँ अपना दिल जलाऊँ मैं।

अंतर्द्वंद

मेरी सोची हुई हर एक सम्भावना झूटी हो गई, उस पल मन में कई सारी बातें आई। पहली बात, जो मेरे मन में आई, मैंने उसे जाने दिया। शायद उसी वक्त मु...