सोमवार, 20 जनवरी 2020

प्यार का दरिया बहाये

कौन अपनी सोच में अब
प्यार का दरिया बहाये
कौन अपनी हर उदासी
मुस्कुराकर फिर घटाये
कौन अन्तर भावना से
आरती आकर सजाये
कौन मन्दिर की परिधि में
नेह का दीपक जलाये
प्रार्थना में ड़ूबकर जो
ये सबेरे फिर जगाये
ये हवायें तन बदन से
क्यों लिपटती जा रही हैं
क्यों अचेतन धमनियों में
प्राण भरती जा रही हैं
कौन से वे पुन्य हैं जो
कम्पनों से थरथराये
हम निबिड़ में गुनगुनाकर
मुक्त अनुभव कर रहे हैं
क्यों अजानी राह पर हम
मौन चिंतन कर रहे हैं
ये हजारों फूल किसने
क्यों यहां पर हैं खिलाये
हम जगत की उलझनों को
बस वहीं पर छोड़ आये
यह गुजरता वक्त हमसे
प्रश्न कितने कर रहा था
मंत्र हम जो जप रहे थे
तंज उनपर कस रहा था

अंतर्द्वंद

मेरी सोची हुई हर एक सम्भावना झूटी हो गई, उस पल मन में कई सारी बातें आई। पहली बात, जो मेरे मन में आई, मैंने उसे जाने दिया। शायद उसी वक्त मु...