सोमवार, 20 जनवरी 2020

प्यार की नदियां मिलेंगी

आज की सारी उमीदें
कल यहां खोई मिलेंगी
कौन सा आँचल मिलेगा
कौन सी आँखें मिलेंगी
प्यार के सारे खिलोने
कल यहां टूटे मिलेंगे
कौन सा आंगन मिलेगा
कौन सी बांहें मिलेंगी
कल यहां पर जो बहारें
मुस्कुराकर खिल रहीं थीं
वो यहां पर किस तरह से
गुनगुना कर फिर खिलेंगी
यह घनी सी धुंध मन पर
जो घहरकर घिर रही हैं
क्या इसी में सुष्मितायें
वो तुम्हारी फिर मिलेंगी
चाँद का आधा कटोरा
जो यहां पर रिस रहा है
क्या इसी के रूप रस में
रातरानी भी खिलेंगी
कल यहां पूरी धरा पर
फाग का मौसम भरा था
क्या कहीं पर अब छलकते
प्यार की नदियां मिलेंगी

अंतर्द्वंद

मेरी सोची हुई हर एक सम्भावना झूटी हो गई, उस पल मन में कई सारी बातें आई। पहली बात, जो मेरे मन में आई, मैंने उसे जाने दिया। शायद उसी वक्त मु...