शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

हम 'हम' जो ठहरे।

कल सुबह स्वाभावगत टहलने के लिए निकल था कि अचानकर बीच रास्तें में लगाये गये एक सरकारी पत्थर से मेरा पैर टकरा गया। दुर्घटना गम्भीर थी। पत्थर कई टुकडों में बट गया,जिससे उसकी क्वालिटी का पता चल गया और साथ ही मेरा पैर भी लहुलुहान हो गया। मैंने तत्काल सरकारी अस्पताल को दौड़ लगाई। सारे डॉक्टर नदारद। कम्पाउन्डर से मिला उसने बिना देखे ही पुलिस कैस घोसित कर दिया। पुलिस को सूचित करने के वास्ते फोन किया ।मालूम हुआ दरोगा जी सुबह सुबह चार देशी पउवे चढाये आराम फरमा रहे हैं। दर्द और खून के स्त्राव में बढोत्तरी निरन्तर जारी थी।अत: हमने प्रआईवेट डॉ. से ईलाज कराना उचित समझा। परन्तु तब तक कुछ नेता टाईप आ गये(भाजपा)। लगे भाषड झाडने पर ईलाज न होने दें।ईधर दर्द से बुरा हाल और वो सरकार(कॉग्रेंस) पर भ्रष्टाचार का आरोप लगायें। सारा दिन गुजर गया। अब तो जख्म मुझ पर तरस खा गये और रक्त बहना बन्द हो गया।मुझे तो आज समझ आया हमारे देश का गरीब छोटे मोटे घाव क्युँ आसानी से सह जाता हैं। उस पत्थर की कहानी ये थी कि सरकारी योजनाऔं की जानकारी देने वास्ते ये पत्थर सडक किनारे लगाये जाने थे।आधा पैसा मन्त्री खा गये,कुछ ठेकेदार।सडक किनारे की जमीन वर्तमान राज्य सरकार(भाजपा) के मुख्यमंत्री के साले की थी।योजना केन्द्र और जमीन राज्य सरकार की तो पत्थर केन्द्र का वहाँ कैसे लगता ।अत: बीच सडक पर ही लगा दिया गया क्युँकि कागजो में तो पहले ही लगाया हूआ दिखाया जा चुका था।योजना लागत खपत के हिसाब से पत्थर भी छोटा ही रह गया। मैंने दोनो के खिलाफ मोर्चा खोलने का प्लान अभी अभी बनाया हैं। सुनने में आया हैं चुनाव बाद मुझ पर सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाने और लोगो को भडकाने के एवज में देशद्रोह का मुकद्दमा चलाने पर विचार किया जा रहा हैं। #कलीम_अव्वल जी से प्रेरित दाऊ जी

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