जुल्म की इस दुनिया में
हम हर पल मरकर जीते हैं
हैवानियत के साये में अब
बेफिक्र कहाँ हम सोते हैं
लूटपात दुष्कर्म हत्याएँ प्रवृति
कहाँ अब थमती है
नैतिकता का ह्वास तो देखो
इंसानियत भी शर्मसार है
खुद को इंसान हम कैसे कह दें
उस फर्ज को जब हम निभा न सके !
गायत्री शर्मा
हम हर पल मरकर जीते हैं
हैवानियत के साये में अब
बेफिक्र कहाँ हम सोते हैं
लूटपात दुष्कर्म हत्याएँ प्रवृति
कहाँ अब थमती है
नैतिकता का ह्वास तो देखो
इंसानियत भी शर्मसार है
खुद को इंसान हम कैसे कह दें
उस फर्ज को जब हम निभा न सके !
गायत्री शर्मा
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