शनिवार, 31 मई 2014

यारों विदा लेना मगर अलविदा न कहना

बापू ने दी जिम्मेदारी
पढ़ लिए हम दुनिया दारी
वहुत कठिन था कोर्स हमारा
हमने जीती दुनिया सारी

आठ आठ सेमेस्टर
चालीस बार दिया परचा
हर छ माह में एक सत्र
तब हुयी पढाई हमारी

वक़्त गुज़र गया लेकिन
वहुत याद आएगी यारों की यारी
हर मुशीबत को संग झेला
संग कटी हर रात हमारी

दुनियां से की पंगे बाजी
खुलकर हमने निभाई यारी
वहुत किये है ऐश हमने
जी भर भर देखि कुड़ी कुवांरी

सिगरेट के कश के संग
चाय बिना बिस्कुट के ,
बियर दुसरे के पैसे की
हर बात में दोस्ती यारी

उधार लिए तो पैसे
लौटाए नही कभी हमने
जब भी गया माँगा
सच्ची नही हैं ...कसम तुम्हारी

असईटमेंट को कोपी करना ,
प्रोजेक्ट चोरी करना
लेब से उठाया वहुत सामान
हर प्रेक्टिकल का सत्यानाश

किया कड़ाई मैनेजमेंट
तुरंत लगायी जी.टी यार
खूब किया हुआ हल्ला
अपनी बात मनबाई यार

कुछ भी रहा हो
कैसा भी रहा हो
मगर चार साल का सफ़र
कभी भुलाया न जा सकेगा

यहीं का पहला प्यार
किसी और की अमानत बनेगा
अपने संग का कोई
किसी और कम्पनी का चीफ बनेगा

बिखर जायेंगे सब
खो जायेंगे दुनियां में
मगर भुला न पाएंगे जो
वो सभी यारों का प्यार

कितनी भी हसीं दुनिया में
जाकर बस जाए कोई
मगर याद जरुर करेगा
एक दिन फिर कोलेज लाईफ को तरस जाएगा

फेसबुक वहात्सअप का जमाना
हमारे बीच आ जायेगा
वक़्त एक दीवार बनकर
हमारी मित्रता की दूरी बढ़ाएगा

फिर किसी अखवार /पत्रिका में
किसी अपने यार का नाम आएगा
उसकी कटिंग दीवार पर सजेगी
गर्व से उसका परिचय दिया जाएगा

जी.आर. ने वहुत मिस किया
यारों तुम सबको दिल से
उम्मीद है तुम्हारे दिलों में रहूँगा
मैं भी तुमसे भुलाया न जाऊँगा

इतना कमीना जो ठहरा में
जब भी जिक्र होगा याद जरुर आऊंगा
देखते हैं वक़्त पर छोड़ते हैं
फिर कब कैंटीन की चाय का जमाना आएगा

यारों डिग्री मिल गयी आपको
अपने सपने पूरे कर लेना
खूब नाम कमाना जहाँ भी जाना
पर एक बार याद जरुर कर लेना

हमारी यादों को दिल में सजोंय रखना
अपने यार को यादों में जिन्दा रखना
भुला कर भूल मत जाना मेरे दोस्त
एक कप चाय को चार गिलासों में लेना

कोलेज के दिन ख़त्म हुए
अब जिन्दगी की नई पारी है
सामने है कैरियर का रास्ता
मंजिल पास हमारी है

लिख रहा हूँ शव्द भले ही
पर दिल का दर्द समेंटे हैं
अपनेपन और परायेपन के
वहुत सारे हाल समेंटे हैं

बेशक भाबुक हो गया हूँ कुछ
आँखों से आसू भी आये हैं
पर क्या करूँ यारों
वो यारी बाले दिन,वहुत सताए हैं

कितने वर्षों से मन में दबा एक विदार्थी
 आज फिर से जाग गया है ,
भूली बिसरी यादों ने मुझे याद कराया है
वो कॉलेज लाएफ़ का समय याद आया है ||

वहुत वहुत शुभकामनायें आने बाले भविष्य के लिए |

जी.आर.दीक्षित
दाऊ जी 

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